नई दिल्ली, 5 अगस्त 2025 |
देश की राजनीति में एक बड़ा और भावनात्मक मोड़ आ गया है। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का आज दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में निधन हो गया। वे 79 वर्ष के थे और लंबे समय से गंभीर किडनी संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे।
उनकी निधन की खबर उनके निजी सचिव केएस राणा ने पुष्टि करते हुए बताया कि मलिक जी ICU में लंबे समय से भर्ती थे और उनका इलाज चल रहा था।
दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल ने एक बयान में बताया कि “सत्यपाल मलिक का आज दोपहर 1:10 बजे निधन हो गया।” यह खबर पूरे राजनीतिक और सामाजिक जगत में शोक की लहर बनकर दौड़ गई।
क्या यह सिर्फ एक संयोग है?
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि सत्यपाल मलिक का निधन उसी तारीख को हुआ है जिस दिन अनुच्छेद 370 हटाया गया था — यानी 5 अगस्त 2019।
और अनुच्छेद 370 को हटाने के वक्त वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे। यह महज एक संयोग है या कोई संकेत — यह तो इतिहास ही तय करेगा। मगर इस तिथि ने एक बार फिर लोगों को याद दिला दिया उस दिन की ऐतिहासिक घटना को, जब जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किया गया था।
कौन थे सत्यपाल मलिक?
सत्यपाल मलिक का जीवन एक राजनैतिक यात्रा की मिसाल है। वे न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि बिहार, गोवा, मेघालय और ओडिशा के राज्यपाल भी रह चुके हैं। उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा — दोनों सदनों में देश का प्रतिनिधित्व किया और कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे।
सत्यपाल मलिक का राजनीतिक जीवन: एक नजर
1965-66: राजनीति में प्रवेश, मेरठ कॉलेज स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष चुने गए।
1968-69: मेरठ विश्वविद्यालय (अब चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी) के स्टूडेंट यूनियन अध्यक्ष बने।
1974: उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए बागपत सीट से विधायक बने।
1975: लोक दल के अखिल भारतीय महासचिव बनाए गए।
1980-84 व 1986-89: राज्यसभा सांसद रहे।
1989-91: अलीगढ़ से लोकसभा सांसद चुने गए।
1990: केंद्र सरकार में पर्यटन और संसदीय कार्य राज्य मंत्री बनाए गए।
1984-87: कांग्रेस में शामिल हुए और यूपी कांग्रेस के महासचिव बने।
1987: बोफोर्स घोटाले के बाद कांग्रेस व राज्यसभा से इस्तीफा दिया।
1988: जन मोर्चा से जुड़े, फिर जनता दल में विलय हुआ।
2004: भारतीय जनता पार्टी (BJP) में शामिल हुए, बागपत से चुनाव लड़ा।
2005-06: यूपी बीजेपी के उपाध्यक्ष बने।
2009: बीजेपी किसान मोर्चा के अखिल भारतीय प्रभारी बने।
2012: बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने।
2017: बिहार के राज्यपाल नियुक्त किए गए।
2018-2019: जम्मू-कश्मीर के अंतिम राज्यपाल रहे।
अनुच्छेद 370 और सत्यपाल मलिक की भूमिका
23 अगस्त 2018 को सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में शपथ ली। उनके कार्यकाल के दौरान ही 5 अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने का ऐतिहासिक फैसला लिया। उस समय, जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया और राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर दिया गया।
इस घटना के समय सत्यपाल मलिक राज्य के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में तैनात थे। उन्होंने उस समय के हालात को संभालने में महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका निभाई थी।
साफ-सुथरी छवि, बेबाक बोल
सत्यपाल मलिक को बेबाक बोल के लिए जाना जाता था। उन्होंने कई बार सरकार की नीतियों पर सवाल उठाए, यहां तक कि किसान आंदोलन के समर्थन में भी आवाज उठाई थी।
उनका कहना था कि “मैं राज्यपाल जरूर हूं, लेकिन चुप नहीं रहूंगा जब गलत होगा।”
उनकी इसी साफगोई के कारण वे जनता के बीच खासे लोकप्रिय हो गए थे।
अंतिम समय तक सक्रिय
हालांकि बीमारी से जूझ रहे थे, लेकिन सत्यपाल मलिक अंतिम समय तक राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर सक्रिय रहे। वे टीवी इंटरव्यू और सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार अपनी बात रखते रहे।
राजनेताओं ने जताया शोक
पूर्व प्रधानमंत्री, वर्तमान राष्ट्रपति, और कई राज्यों के मुख्यमंत्री एवं विपक्षी नेताओं ने सत्यपाल मलिक के निधन पर शोक व्यक्त किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा,
“सत्यपाल मलिक जी एक अनुभवी राजनीतिज्ञ और स्पष्ट वक्ता थे। देश के कई राज्यों में उन्होंने कुशल प्रशासन किया। उनका जाना देश के लिए अपूरणीय क्षति है। ॐ शांति।”
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा,
“सत्यपाल मलिक जी ने सत्ता के खिलाफ सच बोलने का साहस दिखाया। उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।”
अंतिम यात्रा की तैयारी
सत्यपाल मलिक का पार्थिव शरीर उनके दिल्ली स्थित आवास पर लाया जाएगा, जहां आज शाम और कल सुबह लोग अंतिम दर्शन कर सकेंगे। उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव हिसावदा, जिला बागपत (उत्तर प्रदेश) में किया जाएगा। अंतिम यात्रा में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार की पूरी तैयारी की जा रही है।
अंत नहीं, एक विरासत की शुरुआत
सत्यपाल मलिक का निधन सिर्फ एक नेता के जीवन का अंत नहीं है, बल्कि यह एक विचारधारा की विरासत की शुरुआत है — जहाँ सत्ता के सामने सच कहना, ईमानदारी से देश सेवा करना और जनता के मुद्दों के लिए लड़ना सबसे ऊपर रखा गया।
उनकी राजनीतिक यात्रा से युवा नेताओं को न केवल मार्गदर्शन मिलेगा, बल्कि यह भी सिखने को मिलेगा कि राजनीति सिर्फ पद और सत्ता नहीं होती, यह सेवा और साहस का माध्यम भी हो सकती है।
Also read this- Mother Teresa: एक करुणा की प्रतीक और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मिशनरी