अशफ़ाक उल्ला ख़ान: क्रांतिकारी वीर की अमर गाथा

Aanchalik Khabre
6 Min Read
ashfaqulla-khan-krantikari-jeevan-katha

परिचय

भारत की आज़ादी का इतिहास वीर बलिदानियों के रक्त से लिखा गया है। इन्हीं में एक नाम है अशफ़ाक उल्ला ख़ान — एक ऐसे क्रांतिकारी, जिन्होंने न केवल अंग्रेज़ी हुकूमत को खुली चुनौती दी, बल्कि अपने आखिरी सांस तक मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे। उनका नाम काकोरी कांड के नायकों में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। वे न सिर्फ़ एक स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक भी थे।


प्रारंभिक जीवन और जन्म

अशफ़ाक उल्ला ख़ान का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में हुआ। उनके पिता का नाम शफ़ीउल्ला ख़ान और माता का नाम मजहूर-उन-निसा बेगम था। बचपन से ही उनमें तेज़ दिमाग, साहस और निडरता के गुण दिखाई देते थे।
उनकी शिक्षा स्थानीय स्कूल से शुरू हुई और बाद में मिशन हाई स्कूल, शाहजहाँपुर से हुई। अंग्रेज़ी भाषा में उनकी अच्छी पकड़ थी और उन्हें उर्दू शायरी का भी शौक था।


क्रांतिकारी विचारों की ओर झुकाव

जब वे किशोर अवस्था में थे, तब देश में बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय और महात्मा गांधी के विचारों का प्रभाव बढ़ रहा था। अशफ़ाक उल्ला ख़ान भी गांधीजी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित हुए, लेकिन 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद आंदोलन वापस लेने पर वे निराश हुए और सशस्त्र क्रांति के मार्ग को अपनाने का निर्णय लिया।


हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल होना

1923 में वे राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आए। बिस्मिल के देशभक्ति के विचार और क्रांतिकारी कार्यों ने अशफ़ाक उल्ला ख़ान के जीवन की दिशा बदल दी। वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल हो गए।
यह संगठन अंग्रेज़ी हुकूमत को उखाड़ फेंकने और देश में स्वतंत्र गणराज्य स्थापित करने के लिए समर्पित था।


काकोरी कांड की योजना

HRA को क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन की आवश्यकता थी। इसी उद्देश्य से 9 अगस्त 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला ख़ान, राजेंद्र लाहिड़ी और अन्य साथियों ने काकोरी कांड को अंजाम दिया।
योजना के तहत, लखनऊ के पास काकोरी रेलवे स्टेशन पर सरकारी खजाना लूट लिया गया। यह घटना अंग्रेज़ी शासन के लिए एक बड़ा झटका थी।


गिरफ्तारी और मुकदमा

काकोरी कांड के बाद अंग्रेज़ी पुलिस ने बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी अभियान चलाया। कई महीनों तक पुलिस अशफ़ाक उल्ला ख़ान को पकड़ नहीं पाई, क्योंकि वे उत्तर भारत के विभिन्न स्थानों में भूमिगत रहते थे।
लेकिन बाद में एक परिचित की गद्दारी के कारण उन्हें दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया।


अदालत में बयान

मुकदमे के दौरान अशफ़ाक उल्ला ख़ान ने अंग्रेज़ी अदालत में निडरता से अपने विचार रखे। उन्होंने कहा:

“हमने कोई चोरी नहीं की, हमने जो भी किया वह देश की स्वतंत्रता के लिए किया। अगर यह गुनाह है तो मुझे फांसी मंज़ूर है।”


मृत्युदंड और अंतिम क्षण

अशफ़ाक उल्ला ख़ान को 19 दिसंबर 1927 को फैज़ाबाद जेल में फांसी दी गई। फांसी से पहले उन्होंने नमाज़ अदा की और देशवासियों के नाम यह संदेश छोड़ा:

“मेरी एक ही तमन्ना है — भारत आज़ाद हो।”


व्यक्तित्व और विचारधारा

  • वे धर्मनिरपेक्ष सोच के थे और हिंदू-मुस्लिम एकता को सबसे महत्वपूर्ण मानते थे।

  • शायरी में गहरी रुचि रखते थे और “हसरत” उपनाम से कविताएँ लिखते थे।

  • उनके विचार में स्वतंत्रता बिना संघर्ष के संभव नहीं थी।


अशफ़ाक उल्ला ख़ान और हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक

उनकी सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वे राम प्रसाद बिस्मिल जैसे हिंदू क्रांतिकारी के सबसे करीबी मित्र थे। दोनों ने साथ मिलकर अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ कई योजनाएँ बनाई।
उनकी दोस्ती उस समय के सांप्रदायिक माहौल में एक मिसाल थी।


अशफ़ाक उल्ला ख़ान का योगदान

  1. काकोरी कांड के मुख्य योजनाकार और क्रियान्वयनकर्ता।

  2. युवाओं को क्रांतिकारी आंदोलन में जोड़ने में अहम भूमिका।

  3. देश में धार्मिक एकता और भाईचारे का संदेश फैलाना।


फांसी के बाद प्रभाव

अशफ़ाक उल्ला ख़ान की शहादत ने देशभर के युवाओं में क्रांति की चिंगारी जगा दी। भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारी उनके बलिदान से प्रेरित हुए।
उनकी याद में कई शहरों में सड़कें, पार्क और संस्थान का नाम रखा गया है।


प्रमुख तथ्य (Quick Facts)

  • जन्म: 22 अक्टूबर 1900, शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश

  • संगठन: हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA)

  • मुख्य घटना: काकोरी कांड (1925)

  • गिरफ्तारी: 1926, दिल्ली

  • शहादत: 19 दिसंबर 1927, फैज़ाबाद जेल

  • उपनाम: “हसरत”


FAQs: अशफ़ाक उल्ला ख़ान

Q1: अशफ़ाक उल्ला ख़ान कौन थे?
अशफ़ाक उल्ला ख़ान भारत के क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी थे, जो काकोरी कांड के नायकों में से एक थे।

Q2: उनका जन्म कब और कहाँ हुआ?
22 अक्टूबर 1900 को शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश में।

Q3: अशफ़ाक उल्ला ख़ान किस संगठन से जुड़े थे?
वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) से जुड़े थे।

Q4: उन्हें कब फांसी दी गई?
19 दिसंबर 1927 को फैज़ाबाद जेल में।

Q5: वे किस उपनाम से शायरी लिखते थे?
“हसरत” उपनाम से।

Share This Article
Leave a Comment