Baisakhi 2025: जानिए 13 अप्रैल को क्यों मनाया जाएगा यह त्यौहार, क्या है इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
हर साल अप्रैल की एक सुनहरी सुबह, जैसे ही सूरज की किरणें खेतों को चूमती हैं, पंजाब के गांवों में ढोल की थाप गूंजने लगती है। गेहूं की बालियाँ लहराती हैं और किसान मुस्कुराकर कहते हैं – आज बैसाखी है!
बैसाखी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है, यह सवाल हर साल अप्रैल के महीने में फिर से जीवंत हो उठता है। Baisakhi 2025 सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जो 13 अप्रैल को मेष संक्रांति के साथ मनाया जाएगा। यही दिन है जब खेतों में फसल पकती है, गुरुद्वारों में अरदास होती है और समाज एक नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ता है।
बैसाखी कब है? (baisakhi kab hai)
हर साल अप्रैल महीने में जब सूरज गर्मी का पहला संकेत देता है, बैसाखी Baisakhiका पर्व मनाया जाता है। ये वही समय होता है जब मेष संक्रांति होती है।
इस साल बैसाखी 13 अप्रैल 2025 को मनाई जाएगी।
Baisakhi 2025 Date and Time (baisakhi 2025 date and time)
ब्रह्ममुहूर्त से लेकर दिन भर उत्सव चलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बैसाखी (Baisakhi) का दिन सूर्य के मेष राशि में प्रवेश को चिह्नित करता है।
बैसाखी 2025 की पूजा तिथि और समय:
– तारीख: 13 अप्रैल 2025
– मेष संक्रांति आरंभ: सुबह 8:24 बजे
– पूजन का श्रेष्ठ समय: प्रातःकालीन सूर्य पूजन और गुरुद्वारा दर्शन
बैसाखी किसका त्यौहार है?
बैसाखी एक ऐसा पर्व है जो किसान, सिख समुदाय, और भारतीय संस्कृति – तीनों के दिलों को छूता है।
- किसानों के लिए यह नई फसल की कटाई का दिन है।
- सिखों के लिए यह खालसा पंथ की स्थापना का दिन है।
- सांस्कृतिक रूप से यह नृत्य, संगीत और मेलों का पर्व है।
बैसाखी का त्यौहार क्यों मनाया जाता है?
- नई फसल की शुरुआत – किसान का उत्सव
- खालसा पंथ की स्थापना – सिख धर्म की क्रांति
- सामाजिक एकता – जात-पात से ऊपर उठने का संकल्प
- धार्मिक पूजा और आस्था का दिन
हर वर्ष जब किसान फसल काटता है, वो धरती माँ को धन्यवाद कहता है। जब सिख गुरुद्वारे में अरदास करता है, वो गुरु को स्मरण करता है। यही तो है बैसाखी की आत्मा – मेहनत, श्रद्धा और समर्पण।
बैसाखी का धार्मिक महत्व (खालसा पंथ और गुरु गोबिंद सिंह जी)
1699 में, आनंदपुर साहिब में एक ऐतिहासिक दिन था।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की और कहा –
“जो धर्म के लिए लड़े, अन्याय के खिलाफ खड़ा हो – वही खालसा है।”
इस दिन उन्होंने पांच प्यारों को चुना और उन्हें अमृत पिलाकर एक नई सामाजिक व्यवस्था की नींव रखी – जहाँ कोई ऊँच-नीच नहीं, कोई भेदभाव नहीं।
इसलिए सिख धर्म में बैसाखी सिर्फ त्योहार नहीं, बल्कि आस्था, साहस और समर्पण का पर्व है।
7. बैसाखी का सांस्कृतिक महत्व
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में बैसाखी ग्रामीण जीवन और संस्कृति की आत्मा है।
– खेतों में झूमते किसान
– ढोल की थाप पर ‘भांगड़ा’ और ‘गिद्दा’
– मेलों में रंग-बिरंगी चूड़ियां, झूले और स्वादिष्ट पकवान
यह दिन है परिवार, समाज और परंपराओं को एक धागे में पिरोने का।
कैसे मनाते हैं बैसाखी? (विवरण)
- सिख समुदाय: गुरुद्वारों में विशेष अरदास, नगर कीर्तन, भजन-कीर्तन
- किसान समुदाय: खेतों में फसल की पूजा, नई फसल का पहला हिस्सा ईश्वर को अर्पित
- समाज में: सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य, मेले, पारंपरिक पोशाकें और भोज
लोग एक-दूसरे को “बैसाखी दी लाख-लाख वधाईयां” कहते हैं और एक-दूसरे के गले लगकर खुशियां बांटते हैं।
बैसाखी का आधुनिक संदेश
आज जब हम आधुनिकता की ओर बढ़ रहे हैं, बैसाखी हमें याद दिलाती है कि हमारी जड़ें खेतों में हैं, हमारे संस्कार गुरु की शिक्षा में हैं।
बैसाखी का पर्व हमें सिखाता है –
- मेहनत का सम्मान करो
- समाज में एकता लाओ
- परंपराओं को संजो कर रखो
- और सबसे जरूरी – खुश रहो, साथ रहो!
बैसाखी सिर्फ एक दिन नहीं, एक भावना है।
यह दिन हमें हमारी संस्कृति, धर्म, मेहनत और एकता की याद दिलाता है।
तो आइए इस बैसाखी 2025 पर हम सब मिलकर खुशहाली का स्वागत करें, एकता का संदेश फैलाएं और गुरु गोबिंद सिंह जी की शिक्षाओं को अपनाएं।
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