भारतीय लोकतंत्र : संविधान की आत्मा

Aanchalik Khabre
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भारतीय लोकतंत्र

भारतीय लोकतंत्र विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जो संविधान द्वारा निर्देशित है और “जनता की, जनता के लिए, जनता द्वारा” शासन की अवधारणा पर आधारित है। 26 जनवरी 1950 को जब भारत गणराज्य बना, तभी से लोकतंत्र की नींव मजबूत हुई। भारत में प्रत्येक नागरिक को समान अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मतदान का अधिकार तथा न्यायिक संरक्षण प्राप्त है।

यहां की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में आम जनता की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। पंचायत से लेकर संसद तक जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है। भारतीय लोकतंत्र बहुदलीय व्यवस्था, स्वतंत्र न्यायपालिका, निष्पक्ष चुनाव आयोग और स्वतंत्र मीडिया जैसे स्तंभों पर टिका है।

लोकतंत्र का वास्तविक स्वरूप तब सफल होता है जब सरकार पारदर्शी हो, जवाबदेह हो, और जनहित में कार्य करे। विरोधी दलों की भी इसमें अहम भूमिका होती है, जो सत्ता की नीतियों पर निगरानी रखते हैं।

हालांकि भ्रष्टाचार, जातिवाद, क्षेत्रवाद और धन-बल की राजनीति लोकतंत्र के लिए खतरा हैं, फिर भी भारत की जनता बार-बार यह साबित करती है कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षक है।

भारतीय लोकतंत्र न केवल शासन का एक माध्यम है, बल्कि यह एक जीवनशैली बन चुका है।

 

लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका:-

राष्ट्रवाद केवल सत्ता पक्ष की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि विपक्ष की भूमिका भी उसमें महत्वपूर्ण होती है। एक जिम्मेदार विपक्ष सरकार की गलतियों को उजागर कर राष्ट्रवाद को और प्रबल करता है।

जब विपक्ष जनहित में प्रश्न उठाता है, सरकार की जवाबदेही तय करता है, तो यह राष्ट्रवाद की एक व्यावहारिक अभिव्यक्ति होती है। लोकतंत्र में राष्ट्रवाद का सही स्वरूप तभी सामने आता है जब सभी दल देशहित में एकमत हों।

आज जब विपक्ष नकारात्मक राजनीति छोड़कर राष्ट्रहित में योगदान देता है, तो लोकतंत्र अधिक मजबूत और राष्ट्रवाद से परिपूर्ण बनता है।

 

 

राष्ट्र की एकता व अखंडता सर्वोपरि

(डॉ. सुधाकर आशावादी-विनायक फीचर्स)

 

मुद्दे चाहे कितने भी राष्ट्र हित के हों, किंतु देश में एक ऐसा वर्ग सक्रिय है, जिसका मुख्य उद्देश्य ही सत्य से आँख फेरकर केवल विरोध के नाम पर विरोध करना  है। वह विकास के मुद्दों को नकार कर अनेक ऐसे मुद्दों पर अपना समय व श्रम बर्बाद करता है, जिन मुद्दों का विकास या राष्ट्रीय एकता व अखंडता से कोई सरोकार नहीं होता। जबकि देश के विभिन्न प्रांतों में सत्ता की बागडोर संभालने वाले अनेक राजनेता आज भी ऐसे हैं, जो सत्य का समर्थन करने से नहीं कतराते तथा ग़लत बात का किसी भी सूरत में समर्थन नहीं करते।

इस दृष्टि से जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला लीक से हटकर प्रतीत होते हैं। जहां एक ओर कश्मीर के कुछ अलगाववादी नेता बार बार पाकिस्तान से वार्ता करके पाकिस्तान का विश्वास अर्जित करने की बात करते हैं। वहीं उमर अब्दुल्ला को कश्मीर का सच स्वीकारने में कोई आपत्ति नहीं होती। कहना गलत न होगा कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर अपनी आदत के अनुसार भले ही विपक्ष प्रश्न चिन्ह खड़े करे, किंतु उसके उपरांत कश्मीर का पर्यटन उद्योग प्रभावित हुआ है। जिसके लिए जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री ने पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों को प्रदेश के विकास में बाधक माना है। यदि ऐसा न होता तो मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को यह नहीं कहना पड़ता कि पाक की भारत विरोधी नीतियों के चलते जम्मू कश्मीर आतंक से मुक्त नहीं हो पाया है। उन्होंने पाकिस्तान को दो टूक कहा है कि किसी भी आतंकी हमले को युद्ध माना जाएगा तथा उसके जिम्मेदारों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाएगी। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर विचार किया जाए, तो स्पष्ट होगा कि जिनके लिए राष्ट्र की एकता व अखंडता सर्वोपरि है, उनकी दृष्टि में अराजक और आतंकवादी गतिविधियाँ राष्ट्र विरोधी कृत्य ही हैं, जिनका किसी भी स्थिति में समर्थन नहीं किया जा सकता।

विडंबना यह है कि शांति और सद्भाव की दिशा में अग्रसर कश्मीर कुछ विपक्षी दलों को रास नहीं आ रहा है। वे पग पग पर कश्मीर मुद्दे को उछालकर केंद्र सरकार के विरुद्ध नकारात्मक विमर्श प्रस्तुत करने के अवसर की तलाश में रहते हैं। सड़क से लेकर संसद तक उनका कार्य ही विरोध के नाम पर विरोध व्यक्त करना है। यह चिंतनीय व विचारणीय बिंदु है कि संकीर्ण दलगत राजनीति के चलते राष्ट्रीय एकता व अखंडता के विरुद्ध कुछ राजनीतिक दल राष्ट्र भक्ति की मूल धारा के विरुद्ध आचरण करने से बाज क्यों नही आते। (विनायक फीचर्स)

 

 

राष्ट्रवाद क्या है?

राष्ट्रवाद एक ऐसी विचारधारा है जो अपने राष्ट्र के प्रति गहरी निष्ठा, गर्व और समर्पण की भावना को दर्शाती है। यह भावना नागरिकों को एकता, संस्कृति, भाषा, इतिहास और साझा मूल्यों के आधार पर जोड़ती है। राष्ट्रवाद का उद्देश्य देश की स्वतंत्रता, संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करना तथा नागरिकों में राष्ट्रीय चेतना को जागृत करना होता है।

इतिहास में राष्ट्रवाद ने कई स्वतंत्रता आंदोलनों को जन्म दिया है। भारत में भी राष्ट्रवाद की भावना ने स्वतंत्रता संग्राम को एकजुट किया और महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस जैसे नेताओं ने इसी विचारधारा को लेकर जनता को प्रेरित किया। राष्ट्रवाद सामाजिक समरसता और देश की प्रगति में सहायक बन सकता है।

हालांकि, यदि यह अंध राष्ट्रवाद या अतिराष्ट्रवाद का रूप ले ले, तो यह अन्य राष्ट्रों या अल्पसंख्यकों के प्रति असहिष्णुता को जन्म दे सकता है। अतः संतुलित और समावेशी राष्ट्रवाद आवश्यक है जो सभी समुदायों को साथ लेकर चले।

राष्ट्रवाद देश के प्रति गर्व और सेवा की भावना है, जो एकजुट समाज और सशक्त राष्ट्र के निर्माण की आधारशिला है।

 

राष्ट्रीय एकता पर निबंध:-

राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय एकता एक-दूसरे के पूरक हैं। राष्ट्रीय एकता किसी भी देश की शक्ति और स्थायित्व की रीढ़ होती है। जब देश के नागरिक राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होकर धर्म, भाषा, जाति, क्षेत्र और संस्कृति के भेदभाव से ऊपर उठते हैं, तब वास्तविक एकता साकार होती है।

भारत विविधताओं से भरा हुआ देश है – यहाँ अनेक धर्म, भाषाएँ, जातियाँ और परंपराएँ हैं। फिर भी जब सभी नागरिक एक झंडे, एक संविधान और एक पहचान के साथ राष्ट्रवाद को अपनाते हैं, तब यह हमारी अखंडता का प्रतीक बनता है।

स्वतंत्रता संग्राम में राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होकर सभी वर्गों ने अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुटता दिखाई। गांधी, नेहरू, भगत सिंह, पटेल जैसे नेताओं ने राष्ट्रवाद के बल पर जनता को संगठित किया।

हालांकि क्षेत्रीयता, सांप्रदायिकता, और भाषाई भेदभाव आज भी राष्ट्रीय एकता को चुनौती देते हैं। इनसे लड़ने के लिए शिक्षा, संवाद और समावेशी राष्ट्रवाद की आवश्यकता है।

राष्ट्रवाद को केवल भावनात्मक नारे से नहीं, बल्कि व्यवहारिक जिम्मेदारी से भी जोड़ना चाहिए। हर नागरिक को यह समझना होगा कि एकता में ही शक्ति है और यही राष्ट्रवाद की असली पहचान है।

 

जम्मू-कश्मीर का इतिहास:-

जम्मू-कश्मीर का इतिहास राष्ट्रवाद की भावना से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र सांस्कृतिक रूप से सदियों से भारत का हिस्सा रहा है – मौर्य, कुषाण, मुग़ल, डोगरा शासकों ने इसे गौरव प्रदान किया।

1947 में भारत में विलय और 1990 के दशक में आतंकवाद के दौर में राष्ट्रवाद को सबसे बड़ी चुनौती मिली। कश्मीरी पंडितों का पलायन और पाकिस्तान प्रायोजित हिंसा ने पूरे देश में राष्ट्रवाद की चेतना को झकझोर दिया।

2019 में अनुच्छेद 370 हटाकर यह सिद्ध किया गया कि भारत का हर हिस्सा समान है और सभी नागरिकों को एक समान राष्ट्रवाद की भावना से जोड़ना आवश्यक है।

 

कश्मीर समस्या क्या है?

कश्मीर समस्या न केवल भौगोलिक या राजनीतिक है, बल्कि यह भारत की अखंडता और राष्ट्रवाद की परीक्षा भी है। 1947 में जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के साथ ही यह भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया, जिसे राष्ट्रवाद की भावना से देखना आवश्यक है।

पाकिस्तान की ओर से लगातार हस्तक्षेप और आतंकवाद ने इस समस्या को और गंभीर बना दिया है। 1990 के दशक से आतंकवाद ने घाटी को हिंसा और अलगाव का केंद्र बना दिया, जिससे राष्ट्रवाद की भावना को ठेस पहुँची।

भारत सरकार द्वारा 2019 में अनुच्छेद 370 हटाना राष्ट्रवाद का मजबूत संकेत था कि जम्मू-कश्मीर भारत से पूरी तरह जुड़ा है और वहां विकास के नए द्वार खुलेंगे।

स्थायी समाधान तभी संभव है जब वहां के नागरिक राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होकर शांति, संवाद और विकास को अपनाएँ।

 

 

 भारत में आतंकवाद की समस्या:-

भारत में आतंकवाद केवल सुरक्षा का नहीं बल्कि राष्ट्रवाद की भावना पर भी सीधा हमला है। जब निर्दोष नागरिकों पर हमले होते हैं, तो न केवल जान-माल का नुकसान होता है, बल्कि राष्ट्रवाद की आत्मा भी आहत होती है।

1990 के बाद से भारत को आतंकवादी घटनाओं ने बुरी तरह प्रभावित किया है – जैसे संसद हमला, मुंबई हमले, पुलवामा हमला। इन घटनाओं ने राष्ट्रवाद को और मजबूत करने की प्रेरणा भी दी है।

भारत सरकार ने आतंकवाद से निपटने के लिए सशस्त्र बलों को सशक्त किया, खुफिया तंत्र को आधुनिक बनाया और अंतरराष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित किया। लेकिन केवल सैन्य प्रयास पर्याप्त नहीं, हमें समाज में राष्ट्रवाद आधारित शिक्षा और जागरूकता भी फैलानी होगी ताकि युवाओं को कट्टरपंथ से बचाया जा सके।

जब समाज का हर वर्ग राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत होकर एकजुट होता है, तभी आतंकवाद के विरुद्ध स्थायी विजय प्राप्त की जा सकती है।

 

 

 

भारत-पाकिस्तान संबंध:-

भारत-पाकिस्तान संबंधों में राष्ट्रवाद एक निर्णायक भूमिका निभाता है। जब देश पर आतंकवाद का हमला होता है, तब राष्ट्रवाद के साथ भारत एकजुट होता है और अपनी सुरक्षा व संप्रभुता की रक्षा करता है।

भारत हमेशा से राष्ट्रवाद के सिद्धांतों पर अडिग रहा है – शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, संवाद और संप्रभुता का सम्मान। लेकिन पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन मिलने से राष्ट्रवाद की भावना बार-बार आहत हुई है।

हाल की सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयरस्ट्राइक भारत के सक्रिय राष्ट्रवाद का प्रतीक हैं – जो यह दिखाती हैं कि भारत अपनी सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।

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