Bihar शिक्षा और ज्ञान की भूमि रही है। प्राचीन काल में नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय विश्व के सर्वोत्तम शिक्षा केंद्रों में गिने जाते थे, जहाँ चीन, कोरिया, जापान और अन्य एशियाई देशों से विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते थे। इन विश्वविद्यालयों में गणित, खगोलशास्त्र, चिकित्सा, व्याकरण, तर्कशास्त्र, बौद्ध दर्शन और कला जैसे विषयों की गहन शिक्षा दी जाती थी। लेकिन मध्यकालीन आक्रमणों और राजनीतिक अस्थिरता के कारण ये गौरवशाली संस्थान नष्ट हो गए।
- 1. बिहार शिक्षा प्रणाली का ढांचा (Education Structure)
- (क) प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 1–5)
- (ख) उच्च प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 6–8)
- (ग) माध्यमिक शिक्षा (कक्षा 9–10)
- (घ) उच्चतर माध्यमिक शिक्षा (कक्षा 11–12)
- (ङ) उच्च शिक्षा
- 2. Bihar Education System की प्रमुख शैक्षिक संस्थाएं
- 3. Bihar Education System द्वारा बनाई गई योजनाएं और पहल
- 4. Bihar Education System – हाल में हुए सुधार और भविष्य की दिशा
- 5. Bihar Education System की प्रमुख चुनौतियाँ
- (क) बुनियादी ढांचे की कमी (Lack of Infrastructure)
- (ख) शिक्षक की कमी और प्रशिक्षण
- (ग) परीक्षा कदाचार (Exam Malpractice)
- (घ) विद्यालय छोड़ने की दर (High Dropout Rate)
- (ङ) शिक्षा की गुणवत्ता (Quality of Education)
- बिहार में शिक्षा का संकट: फाइलों में अटका बच्चों का भविष्य
- यह सिर्फ सुपौल की कहानी नहीं है
स्वतंत्रता के बाद बिहार ने शिक्षा के क्षेत्र में कई चुनौतियों का सामना किया, लेकिन अब यह राज्य आधुनिक तकनीक और सरकारी पहलों के माध्यम से Bihar Education System को सुधारने का प्रयास कर रहा है।
1. बिहार शिक्षा प्रणाली का ढांचा (Education Structure)
Bihar education system को पाँच चरणों में बांटा गया है:
(क) प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 1–5)
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बच्चों की शिक्षा का पहला चरण है, जहाँ साक्षरता (पढ़ना, लिखना, गिनती) और बुनियादी सामाजिक ज्ञान सिखाया जाता है।
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सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना (Mid-Day Meal) का संचालन होता है, जिससे बच्चे नियमित रूप से स्कूल आएं और कुपोषण की समस्या कम हो।
(ख) उच्च प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 6–8)
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इस स्तर पर विषय-आधारित ज्ञान दिया जाता है।
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हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों की गहरी समझ पर जोर दिया जाता है।
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राज्य सरकार ने इस स्तर के छात्रों के लिए मुफ्त किताबें और यूनिफॉर्म उपलब्ध कराने की योजना बनाई है।
(ग) माध्यमिक शिक्षा (कक्षा 9–10)
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छात्र बोर्ड परीक्षाओं (मैट्रिक) की तैयारी करते हैं।
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व्यावहारिक शिक्षा और प्रयोगशालाओं की महत्ता अधिक होती है।
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ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त प्रयोगशालाओं और विज्ञान उपकरणों की कमी एक बड़ी समस्या है।
(घ) उच्चतर माध्यमिक शिक्षा (कक्षा 11–12)
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छात्र विज्ञान, वाणिज्य या कला के विकल्प चुनते हैं।
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इसी समय छात्र JEE, NEET, UPSC, SSC जैसी प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की तैयारी शुरू करते हैं।
(ङ) उच्च शिक्षा
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पटना विश्वविद्यालय, मगध विश्वविद्यालय, नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी, IIT पटना, NIT पटना, AIIMS पटना जैसे संस्थान उच्च शिक्षा के प्रमुख केंद्र हैं।
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तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के लिए ITI, पॉलिटेक्निक और डिप्लोमा कॉलेज बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
2. Bihar Education System की प्रमुख शैक्षिक संस्थाएं
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बिहार स्कूल परीक्षा बोर्ड (BSEB): मैट्रिक (10वीं) और इंटर (12वीं) की परीक्षाओं का संचालन करता है।
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बिहार बोर्ड ऑफ ओपन स्कूलिंग एंड एग्जामिनेशन (BBOSE): दूरस्थ शिक्षा के लिए विशेष व्यवस्था करती है।
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नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी: कामकाजी और दूर-दराज के छात्रों के लिए ऑनलाइन एवं ऑफलाइन शिक्षा प्रदान करती है।
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तकनीकी संस्थान: IIT पटना, NIT पटना, BCE, BIT और कई इंजीनियरिंग कॉलेज भी उपलब्ध हैं।
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चिकित्सा संस्थान: AIIMS पटना, PMCH और DMCH जैसे मेडिकल कॉलेज भी यहाँ उपलब्ध हैं।
3. Bihar Education System द्वारा बनाई गई योजनाएं और पहल
बिहार सरकार ने शिक्षा के विस्तार और गुणवत्ता सुधार के लिए कई योजनाएं लागू की हैं:
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मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना:
लड़कियों को मुफ्त साइकिल देकर स्कूल छोड़ने की दर (dropout rate) घटाना। -
मध्याह्न भोजन योजना:
बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना और उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करना। -
छात्रवृत्ति योजनाएं:
गरीब और मेधावी छात्रों को आर्थिक सहायता देना। -
डिजिटल लर्निंग और स्मार्ट क्लासरूम:
कई सरकारी स्कूलों में प्रोजेक्टर, टैबलेट और ई-कंटेंट उपलब्ध कराया जा रहा है। -
कुशल युवा कार्यक्रम:
युवाओं को कंप्यूटर स्किल, इंग्लिश स्पीकिंग और सॉफ्ट स्किल्स सिखाकर रोजगार के अवसर बढ़ाना।
4. Bihar Education System – हाल में हुए सुधार और भविष्य की दिशा
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नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण: अंतरराष्ट्रीय स्तर के शोध और उच्च शिक्षा का केंद्र बनने की दिशा में कदम बढ़ाये गये हैं।
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डिजिटलाइजेशन: ऑनलाइन शिक्षा, स्मार्ट क्लास और डिजिटल बोर्ड का उपयोग बढ़ा है।
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स्किल डेवलपमेंट: युवाओं के लिए कंप्यूटर कोर्स, ITI और पॉलिटेक्निक कोर्स उपलब्ध करवाया गया है।
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बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ: लड़कियों को स्कूल में टिकाने के लिए विशेष कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं।
5. Bihar Education System की प्रमुख चुनौतियाँ
(क) बुनियादी ढांचे की कमी (Lack of Infrastructure)
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ग्रामीण इलाकों के कई सरकारी स्कूलों में कक्षाओं की संख्या सीमित है।
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बिजली, इंटरनेट, शौचालय और साफ पेयजल जैसी सुविधाओं की कमी है।
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आधुनिक प्रयोगशालाएं, पुस्तकालय और स्मार्ट क्लासरूम का अभाव।
(ख) शिक्षक की कमी और प्रशिक्षण
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शिक्षक-छात्र अनुपात राष्ट्रीय औसत से कम।
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प्रशिक्षण पुरानी पद्धतियों पर आधारित; डिजिटल शिक्षा की समझ और कौशल की कमी।
(ग) परीक्षा कदाचार (Exam Malpractice)
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नकल, पेपर लीक जैसी घटनाएं।
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छात्रों में प्रतिस्पर्धा की जगह शॉर्टकट लेने की प्रवृत्ति।
(घ) विद्यालय छोड़ने की दर (High Dropout Rate)
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गरीबी, बाल विवाह और बाल श्रम मुख्य कारण।
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लड़कियों की पढ़ाई अक्सर कक्षा 8 के बाद बंद हो जाती है।
(ङ) शिक्षा की गुणवत्ता (Quality of Education)
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रटने की प्रवृत्ति।
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समस्या समाधान, रचनात्मक सोच और डिजिटल टूल्स की कमी।
बिहार में शिक्षा का संकट: फाइलों में अटका बच्चों का भविष्य
बिहार के सुपौल जिले के नरहैया गांव में यह वाक्य एक हकीकत बन गया है। जहाँ बाढ़ ने स्कूल को निगल लिया, वहाँ शिक्षा विभाग की सुस्ती बच्चों के भविष्य को निगल रही है।
1956 से गाँव की उम्मीद बना प्राथमिक विद्यालय नरहैया पिछले साल कोसी नदी की बाढ़ में समा गया। विभाग ने पढ़ाई का “जुगाड़” किया और स्कूल को पाँच किलोमीटर दूर पिपराखुर्द भेज दिया। गाँव के छोटे-छोटे बच्चे कंधों पर बस्ता टाँगे खेत-पगडंडियों और जलजमाव से लड़ते हुए पाँच किलोमीटर आने-जाने में थककर लौट आते हैं, पढ़ नहीं पाते।
गाँव वालों ने खुद चंदा कर, ईंटा-गारा जुटाकर, जनवरी 2025 में नया स्कूल भवन तैयार कर दिया।
लेकिन शिक्षा विभाग की फाइलें इतनी धीमी चल रही हैं कि बच्चे अब भी पाँच किलोमीटर दूर अस्थायी केंद्र में पढ़ने को मजबूर हैं।
गाँव के महादेव यादव कहते हैं,
“हमने स्कूल खड़ा कर दिया, सरकार स्कूल खोल नहीं पा रही। हम क्या करें?”
स्कूल में चार शिक्षक पदस्थापित हैं, लेकिन भवन की उपलब्धता के बावजूद विभाग ने विद्यालय को पुराने स्थान पर शिफ्ट नहीं किया।
जब हमारे संवाददाता ने जिला शिक्षा पदाधिकारी संग्राम सिंह से इस मुद्दे पर बात की, तो उन्होंने बताया:
“बीईओ को जांच के लिए भेजा था, वहाँ सुविधाएँ पूरी नहीं मिलीं। अब डीपीओ को भेजा जाएगा। रिपोर्ट आने के बाद ही निर्णय लिया जाएगा।”
सवाल यह है:
अगर गाँव वाले भवन तैयार कर सकते हैं, तो सरकार क्यों नहीं बिजली-पानी और अन्य सुविधाएँ जल्दी उपलब्ध करा सकती?
यह सिर्फ सुपौल की कहानी नहीं है
बिहार के हजारों गाँवों में स्कूल भवनों की कमी, अस्थायी संचालन और शिक्षा विभाग की धीमी कार्यशैली बच्चों की शिक्षा के रास्ते में बड़ी बाधा बन रही है।
आँकड़े कहते हैं कि राज्य में लाखों बच्चे नियमित स्कूल नहीं जा पा रहे, लेकिन फाइलों पर दस्तखत का इंतजार करते बच्चों के आँकड़े किसी रिपोर्ट में नहीं आते।
“स्कूल की इमारत नहीं, भविष्य की इमारत है यह”
ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से अनुरोध किया है कि प्राथमिक विद्यालय नरहैया को तत्काल उसके नए भवन में शिफ्ट किया जाए, ताकि बच्चे सहज, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पा सकें।
वरना कोसी की बाढ़ में डूबा यह स्कूल बिहार में शिक्षा व्यवस्था के डूबने का प्रतीक बन जाएगा।