तिब्बत की घाटियों में बनता चीन का जल महाकाय: एक भविष्य की चेतावनी
ब्रह्मपुत्र नदी: संक्षिप्त संरचित विवरण
1. उद्गम (Source of Brahmaputra)
स्थान: हिमालय के उत्तर में तिब्बत के पुरंग जिले में मानसरोवर झील के निकट।
ब्रह्मपुत्र नदी का कूटनीतिक रास्ता: चीन, भारत और बांग्लादेश की भूमिका
चीन
चीन ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी हिस्से का स्रोत है, और उसने नदी पर बांध बनाने की योजनाएं बनाई हैं, जिससे भारत और बांग्लादेश में चिंताएं पैदा हुई हैं।
भारत
भारत ब्रह्मपुत्र नदी का मध्यवर्ती हिस्सा है, और वह नदी के जल संसाधनों का उपयोग करता है। भारत ने चीन द्वारा बांधों के निर्माण पर चिंता व्यक्त की है, और नदी के प्रबंधन के लिए एक बहुपक्षीय ढांचे की वकालत की है।
बांग्लादेश
बांग्लादेश ब्रह्मपुत्र नदी के निचले हिस्से का हिस्सा है, और वह नदी के जल संसाधनों पर निर्भर है। बांग्लादेश ने भी चीन द्वारा बांधों के निर्माण पर चिंता व्यक्त की है, और नदी के प्रबंधन के लिए एक बहुपक्षीय ढांचे की वकालत की है।
China Builds Dam on River Brahmaputra: क्यों यह खबर में है?
चीन ने तिब्बत में भारतीय सीमा (अरुणाचल प्रदेश) के करीब ब्रह्मपुत्र नदी पर 167.8 अरब अमेरिकी डॉलर की लागत से बांध के निर्माण की औपचारिक शुरुआत की है। इससे निचले प्रवाह वाले देशों, भारत और बांग्लादेश में चिंता बढ़ गई है।
मुख्य बिंदु: China Builds Dam on River Brahmaputra
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चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग ने बांध के निर्माण की शुरुआत की घोषणा तिब्बत में न्यिंगची शहर में की, जहाँ इस नदी को यारलुंग जांग्बो के नाम से जाना जाता है।
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यह हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट दुनिया की सबसे बड़ी आधारभूत संरचना परियोजनाओं में से एक मानी जा रही है, जिसमें पांच चरणों में जलविद्युत स्टेशन बनाए जाएंगे। इसकी अनुमानित लागत लगभग 1.2 ट्रिलियन युआन (लगभग 167.8 अरब अमेरिकी डॉलर) बताई गई है।
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ब्रह्मपुत्र नदी पर यह नया प्रस्तावित बांध “ग्रेट बेंड” के पास स्थित है, जहाँ 50 किलोमीटर में नदी की ऊँचाई में लगभग 2000 मीटर की गिरावट होती है, जो जलविद्युत उत्पादन के लिए उपयुक्त माना जा रहा है।
क्या तिब्बत में बन रहा यह बांध भारत के लिए एक रणनीतिक खतरा है?
तिब्बत की घाटियों में बनता चीन का जल महाकाय: एक भविष्य की चेतावनी
तिब्बत के बर्फीले पहाड़ों में, जहां से ब्रह्मपुत्र नदी निकलती है, वहां चीन ने दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बनाने का ऐलान किया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सिर्फ ऊर्जा का सपना है या किसी बड़ी रणनीति की शुरुआत?
चीन का दावा बनाम कूटनीतिक वास्तविकता
चीन का कहना है कि वह 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बनने की दिशा में काम कर रहा है। लेकिन कूटनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह जल संसाधनों पर नियंत्रण की रणनीति है, जिससे भारत और बांग्लादेश को खतरा है।
China Builds Dam on River Brahmaputra: जलवायु लक्ष्य या भू-राजनीति?
यह बांध जब पूरा होगा, तो इससे उत्पन्न बिजली की मात्रा थ्री गॉर्जेस डैम से तीन गुना होगी। पर यह सिर्फ “हरित विकास” की बात नहीं, बल्कि रणनीतिक लोकेशन पर चीन की योजना है।
भूकंपीय खतरा और पर्यावरणीय चिंता
इस बांध को भूकंप संभावित क्षेत्र में बनाया जा रहा है। हिमालयी संवेदनशीलता को देखते हुए, यह लाखों लोगों के जीवन और पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।
भारत और बांग्लादेश की बढ़ती चिंता: पानी के बहाव पर चीन का शिकंजा
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने इस बांध को “जल बम” कहा। चीन बिना किसी समझौते के जब चाहे पानी रोक या छोड़ सकता है, जिससे बाढ़ या सूखे की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
ब्रह्मपुत्र पर चीन के बांध से भारत-बांग्लादेश को क्या होगा नुकसान?
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असम, अरुणाचल, बांग्लादेश में बाढ़ की आशंका
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कृषि क्षेत्रों में पानी की भारी कमी
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जलीय जीवों की प्रजातियों पर खतरा
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जल नियंत्रण से चीन का कूटनीतिक दबाव
भारत की रणनीति: सियांग मल्टीपर्पस प्रोजेक्ट से जवाबी तैयारी
भारत ने सियांग मल्टीपर्पस प्रोजेक्ट की योजना बनाई है, जिससे:
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चीन द्वारा छोड़े गए पानी को रेगुलेट किया जा सके
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कम और अधिक बहाव में स्थिति नियंत्रित की जा सके
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11,000 मेगावॉट बिजली पैदा की जा सके
क्या जल युद्ध की तैयारी में है चीन?
Sino-India Border Dispute का नया मोर्चा: जल संघर्ष
बॉर्डर विवाद अब सिर्फ जमीन तक सीमित नहीं, बल्कि जल पर भी है। जल संसाधनों पर नियंत्रण, नीति और शक्ति संतुलन को चुनौती दे रहा है।
अब क्या करना होगा भारत को? एक जल-सुरक्षा नीति की ज़रूरत
भारत को इन तीन मोर्चों पर काम करना होगा:
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जल सुरक्षा को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ना
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सियांग डैम जैसे प्रोजेक्ट्स को तेज़ी से लागू करना
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अंतरराष्ट्रीय मंचों पर चीन की रणनीति को उजागर करना
निष्कर्ष: ब्रह्मपुत्र सिर्फ एक नदी नहीं, रणनीतिक रेखा है
ब्रह्मपुत्र नदी अब जल का स्रोत ही नहीं, कूटनीति और शक्ति संतुलन का केंद्र बन चुकी है। इसका भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि कौन इसका बहाव नहीं, बल्कि नियंत्रण करता है।