भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर पत्थर में इतिहास, हर मंदिर में दर्शन और हर शिल्प में कला जीवित है। ऐसा ही एक अद्भुत और प्राचीन मंदिर है — वृहदेश्वर मंदिर, जिसे भारतीय वास्तुकला और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम माना जाता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि चोल राजवंश का मंदिर होने के कारण ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
वृहदेश्वर मंदिर का परिचय:-
वृहदेश्वर मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर शहर में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, और इसे स्थानीय रूप में राजराजेश्वर मंदिर या भगवान शंकर का मंदिर तंजावुर भी कहा जाता है। यह मंदिर भारत के उन गिने-चुने मंदिरों में से एक है, जिन्हें यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया है।
इस भव्य मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी के प्रारंभ में हुआ था और यह अपनी ऊँची गगनचुंबी शिखर, उत्कृष्ट मूर्तिकला, और विशाल परिक्रमापथ के लिए प्रसिद्ध है। दक्षिण भारतीय द्रविड़ वास्तुकला का यह सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है।
इतिहास और निर्माण: चोल साम्राज्य की महान उपलब्धि:-
वृहदेश्वर मंदिर का निर्माण चोल राजवंश के महान शासक राजराज चोल प्रथम ने 1010 ईस्वी में करवाया था। यह मंदिर चोल राजवंश का मंदिर होने के कारण उस काल की शक्ति, समृद्धि और सांस्कृतिक श्रेष्ठता का प्रतीक है।
राजराज चोल के शासनकाल में दक्षिण भारत ने कला, संस्कृति और धर्म के क्षेत्र में असाधारण प्रगति की थी। वृहदेश्वर मंदिर उस युग की स्थापत्य प्रतिभा और धार्मिक भक्ति की साक्षी है। यह मंदिर न केवल वास्तुशास्त्र की दृष्टि से अनूठा है, बल्कि इसका धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी अतुलनीय है।
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चोल राजवंश की अनुपम कृति तंजावुर का वृहदेश्वर मंदिर
(अंजनी सक्सेना)
तमिलनाडु के जनपद तंजावुर यानी तंजौर में चोल राजवंश की अनुपम कृति के रुप में भगवान शंकर का मंदिर है। वहाँ के सभी मंदिरों में यह मंदिर सबसे विशाल है। अतः इसे वृहदेश्वर भी कहते हैं। चोल राजा राजराजेश्वर मुदलियार द्वारा इसका निर्माण कराया गया था इसलिए इसे राज राजेश्वर मंदिर भी कहा जाता है। यह भारत में भगवान शंकर के सर्वाधिक विशाल मंदिरों में से एक है। वृहदेश्वर मंदिर को सन् 1987 में यूनेस्को द्वारा विश्व-विरासत सूची में सम्मिलित किया गया।
इसके गर्भगृह में विराजमान ‘शिवलिंगम’ 3.66 मीटर ऊँचा है। राजराजेश्वर मुदयार ने मंदिर का नामकरण इसकी विशालता के अनुरूप ही वृहदेश्वर किया था। मंदिर का प्रांगण आयताकार (240 मीटर लम्बा और 120 मीटर चौड़ा) है। मंदिर का शिखर 60.96 मीटर ऊंचा है। इसके निर्माण के लिए उस समय 50 किलोमीटर दूर से पत्थर लाए गये थे।
वृहदेश्वर मंदिर दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इस मंदिर का गर्भगृह, विमानम और गोपुरम अत्यधिक विस्तृत और सुंदर हैं। गर्भगृह में भगवान शिव की विशाल मूर्ति है, जो लिंग रूप में है। गोपुरम में विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। विशाल प्रदक्षिणा पथ भी है।
वृहदेश्वर मंदिर अपने विशाल आकार के लिए तो प्रसिद्ध है ही मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर भी सुंदर नक्काशी की गयी है, जो चोल वंश की कला का अद्वितीय उदाहरण है। यह मंदिर चोल वंश के इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अतिरिक्त पाँच और मंदिर हैं- चण्डिकेश्वर अम्मन, सुब्रमण्यम, गणेश और कार्तिकेश्वर। मंदिर का विशाल गोपुरम भी मुख्य मंदिर निर्माण के समय ही बना था। मंदिर की दीवारों पर विभिन्न देवी-देवताओं की कलात्मक मूर्तियाँ निर्मित की गई हैं। यहाँ गणेश, श्रीदेवी, भूदेवी, विष्णु, अर्धनारीश्वर चन्द्रशेखर आदि देव रूपों के दर्शन होते हैं। मुख्य मंदिर के सामने नंदी की विशाल प्रतिमा एक चबूतरे पर बनी है। मंदिर में नृत्यरत कई सुन्दर प्रतिमाएं भी दर्शनीय हैं।
वृहदेश्वर मंदिर का निर्माण कार्य सन् 1003 ई. में राजा चोल के शासनकाल में प्रारम्भ हुआ, जो सन् 1010 ई. में पूर्ण हुआ।
इस मंदिर में दर्शन के लिए महात्मा गांधी भी पहुंचे थे। मंदिर परिसर में महात्मा गांधी के सन् 1939 ई. में आशीर्वाद स्वरूप लिखे गए पत्र की प्रति लगाई गई है, जिसमें उल्लेख है कि चोल राजा ने अपने शासन-क्षेत्र के 90 मंदिरों को सभी जातियों के प्रवेश और पूजा-अर्चना के लिए खोल दिया है,इसमें वृहदेश्वर मंदिर भी शामिल है। सितम्बर 2010 में मंदिर की एक सहस्त्राब्दि (एक हजार वर्ष) होने पर अभिनन्दनीय आयोजन हुआ था। तिरुचिरापल्ली से तंजावुर (तंजौर) 50 कि.मी. एवं चेन्नई (मद्रास) से 350 कि.मी. दूर है।
वास्तुशिल्प की विशेषताएं:-
वृहदेश्वर मंदिर की स्थापत्य संरचना वास्तुशिल्प की दृष्टि से अत्यंत जटिल और आकर्षक है। इसकी सबसे प्रमुख विशेषता इसकी शिखर (विमानम्) है, जो लगभग 66 मीटर (216 फीट) ऊँचा है। यह भारत के प्राचीन मंदिरों में सबसे ऊँचे शिखरों में से एक है।
मंदिर के ऊपर एक विशाल ग्रेनाइट पत्थर स्थापित है, जिसका वजन लगभग 80 टन है। यह पत्थर बिना किसी आधुनिक मशीनरी के उस ऊँचाई पर कैसे पहुँचाया गया होगा — यह आज भी रहस्य है और वैज्ञानिकों को आकर्षित करता है।
मूर्ति शिल्प और चित्रकारी:-
वृहदेश्वर मंदिर की दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियाँ और चित्र अत्यंत सूक्ष्म, जीवंत और कलात्मक हैं। शिव की विभिन्न मुद्राएँ, नटराज स्वरूप, तांडव नृत्य, गणेश, पार्वती और विभिन्न देवताओं की झाँकियाँ इस मंदिर को मूर्तिशिल्प का अद्भुत संग्रहालय बना देती हैं।
इसके गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है, जो एक ही पत्थर से निर्मित है और इसकी ऊँचाई लगभग 4 मीटर है। यह शिवलिंग भारत के सबसे बड़े लिंग स्वरूपों में से एक है।
तंजावुर और सांस्कृतिक प्रभाव:-
वृहदेश्वर मंदिर के कारण तंजावुर शहर को सांस्कृतिक राजधानी का दर्जा प्राप्त हुआ। तंजावुर पेंटिंग, संगीत, भरतनाट्यम और वास्तुकला में मंदिर का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
तंजावुर मंदिर (यानी वृहदेश्वर मंदिर) न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है, बल्कि यह कला और संस्कृति का भी प्रमुख केंद्र बना रहा। यहाँ त्योहारों, नृत्य-नाटकों और धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन आज भी जीवंत परंपराओं के अनुसार होता है।
धार्मिक महत्व:-
वृहदेश्वर मंदिर का धार्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्त्व है। यह मंदिर भगवान शंकर का मंदिर तंजावुर कहलाता है, जो शिवभक्तों के लिए एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यहाँ महाशिवरात्रि, अर्धनारीश्वर उत्सव, और नटराज अभिषेक जैसे अनुष्ठान विशेष रूप से मनाए जाते हैं।
कहा जाता है कि इस मंदिर की पूजा विधि विशेष रूप से तांत्रिक और आगमिक परंपरा के अनुसार की जाती है, जो इसे और भी विशिष्ट बनाती है। यहाँ की भोग सामग्री, दीप आरती और मंत्रोच्चारण दक्षिण भारतीय परंपरा की गहराई को दर्शाते हैं।
यूनिस्को द्वारा विश्व धरोहर में शामिल:-
1987 में वृहदेश्वर मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया। यह मंदिर “Great Living Chola Temples” श्रेणी के अंतर्गत आता है, जिसमें गंगईकोंडाचोलपुरम और दारासुरम के मंदिर भी शामिल हैं। यह सम्मान इस बात का प्रमाण है कि यह मंदिर न केवल भारत बल्कि पूरी मानव सभ्यता की सांस्कृतिक धरोहर है।
आधुनिक संरक्षण और पर्यटन:-
आज के समय में वृहदेश्वर मंदिर भारत सरकार और तमिलनाडु सरकार के संरक्षण में है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा इसकी देखरेख की जाती है। हर साल लाखों पर्यटक और श्रद्धालु देश-विदेश से यहाँ आते हैं।
यह मंदिर तंजावुर पर्यटन का मुख्य केंद्र है और यहाँ आने वाला हर व्यक्ति इसकी दिव्यता, भव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा से अभिभूत हो जाता है।
वृहदेश्वर मंदिर की विशेषताएं एक नज़र में:-
- विशेषता विवरण:-
- स्थान:- तंजावुर, तमिलनाडु
- निर्माणकर्ता:- राजराज चोल प्रथम
- निर्माण काल:- 1010 ईस्वी
- समर्पित देवता:- भगवान शिव
- प्रमुख स्थापत्य शैली:- द्रविड़ शैली
- शिखर की ऊँचाई:- 66 मीटर (216 फीट)
- गर्भगृह की मूर्ति:- विशाल शिवलिंग (4 मीटर ऊँचा)
- विश्व धरोहर में शामिल वर्ष:- 1987 ईस्वी
निष्कर्ष:-
वृहदेश्वर मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास, संस्कृति, वास्तुशिल्प और आध्यात्मिकता का जीवंत प्रतीक है। यह मंदिर चोल राजवंश का मंदिर होने के कारण दक्षिण भारत के गौरवशाली अतीत की गवाही देता है। तंजावुर मंदिर के रूप में यह न केवल भगवान शिव की भक्ति का स्थल है, बल्कि कला, विज्ञान और आध्यात्मिकता का संगम भी है।
राजराजेश्वर मंदिर के रूप में यह मंदिर विश्व में भारतीय संस्कृति की पहचान बन चुका है। और वास्तव में, भगवान शंकर का मंदिर तंजावुर आने वाले हर व्यक्ति के लिए यह अनुभव छोड़ता है कि भारत की आत्मा आज भी अपनी जड़ों में जीवित है — पत्थरों में, शिखरों में और उस भक्ति में जो इस मंदिर की हर दीवार से झलकती है।
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