इन दिनों छत्तीसगढ़ में निरंतर हाथियों का आतंक बढ़ता ही जा रहा है वन विभाग के कोशिशों के बाद भी वे हाथियों का भय बना ही हुआ है। इनके आतंक से जहा ग्रामीण जनता भयक्रान्ता में है तो वही वन विभाग इन हाथियों के उत्पात से बेबस नज़र आ रहा है कि आख़िर कौन सा ऐसा उपाय करें जिससे इन हाथियों से प्रदेश की ग्रामीण जनता को भयमुक्त कराया जा सके।लेकिन अब ये हाथियों का दल एक गंभीर समस्या का रूप लेती जा रही है।जो सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती से कम नही है इतना ही सरकार को इस चुनौती का सामना भी बड़ी सूझ-बूझ कर करना होगा कि वन्य प्राणियों की रक्षा भी हो जाये और जनहानि से भी प्रदेश को कोई नुकसान ना होने पाए।
इल्म हो कि पूर्व में छत्तीसगढ़ प्रदेश नक्सलवाद की भीषण समस्याओं से जूझ रहा था लेकिन धीरे-धीरे सरकार ने इस समस्या पर काफ़ी हद तक काबू पा लिया है।लेकिन अब हाथियों की समस्या एक नई आफ़त के रूप में सरकार के सामने आ कर खड़ी हो गई है।इसे आफ़त संज्ञा इसलिए दिया जा रहा है कि ये बहुत ही कम समय मे अपना दायरा बढ़ते चले जा रहे है।संभवतः पहले इनका दायरा लगभग 5 ज़िलों तक ही था, जो अब बढ़कर 10 जिलों तक पहुंच गया है।इतना ही नही बीते पांच सालों में इन हाथियों के द्वारा 263 ग्रामीणों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था,और इतने पर भी इन जब इन हाथियों को संतोष नही मिला तो बीते साल 2019 में 750 से भी अधिक मकानों को तोड़ कर इन हाथियों के दल ने 2850 से भी अधिक हेक्टेयर फ़सलों को रौंद कर नष्ट कर दिया।
इल्म हो कि बीते पांच सालों तक सिर्फ़ कोरबा,कोरिया, रायगढ़, जशपुर और सरगुजा के वन्य इलाकों में हाथियों का उत्पात रहा और वे वही तक सीमित भी रहे।लेकिन वे अब लगातार अपना दायरा बढ़ते चले जा रहे है अब ये महासमुंद, बलौदाबाजार, गरियाबंद के साथ सरगुजा संभाग के बलरामपुर, सूरजपुर तक फैल चुके हैं। जंगलों में वनवासियों की बस्तियां, आसपास के गांव जरूर इनके निशाने पर रहते थे। अब हाथी महासमुंद, अंबिकापुर में कलेक्टोरेट तक पहुंच गए, रायपुर के सीमावर्ती गांव में महीनों से इनका दल उपद्रव कर रहा है। कोरबा की कॉलोनियों से अक्सर इनकाे खदेड़ना पड़ता है।
अब सवाल यह उठता है कि आख़िर इनके फ़ैलाव की वजह क्या हो सकती है तो अगर विशेषज्ञों की राय पर गौर करे तो ज्ञात होता है कि जंगलों में हो रहे कटाव,खदानों में लगातार होने वाले ब्लास्ट और बेहिसाब रिहायशी इलाकों में निरंतर होने वाले वृद्धि ही इन हाथियों के फ़ैलाव का परिणाम है।
ज्ञातव्य हो कि सन 1990 के दशक में हाथियों के दल सरगुजा में आए और अपना स्थायी ठिकाना सरगुजा को बनाया।इल्म हो कि मध्यप्रदेश, झारखंड और ओडिशा से जुड़े छत्तीसगढ़ राज्य को हाथियों का कॉरीडोर भी कहा जाता है। इतना ही यहां यह भी प्रमाणित है कि यह इलाका सदियों से हाथियों के विचरण का क्षेत्र रहा हैं और इतना ही नही यहाँ बिचरण करते हुए हाथियों का झुंड सड़कों पर आ जाय करता था और इनके कारण रास्ता कई-कई दिनों तक बंद हो जाता था।यह के स्थानीय लोग बताते हैं कि 90 के दशक में बड़ी तादाद में झारखंड से सरगुजा की सीमा में घुसे, इसके बाद आना-जाना बढ़ता गया फिर ये जंगल उनका स्थायी ठिकाना बन गए। इधर ओडिशा से भी इनका पलायन रायगढ़, महासमुंद, बलौदाबाजार, गरियाबंद जिले में होता गया।इन हाथियों को भगाने के लिए कुमकी से लेकर हल्ला पार्टी तक के सभी प्रयास किये गए लेकिन कोई भी प्रयास कारगर साबित ना हो सका।इतना ही नही इन हाथियों की समस्या के निदान के लिए वन विभाग ने भी कई कोशिशे की जिसमें सबसे पहले हुल्ला पार्टी मशाल लेकर खदेड़ती थी। अब यह बंद है। गांवों में सोलर फेंसिंग कराई गई, वह भी गायब हो गई है। अब लोगों को हाथियों की लोकेशन की सूचना देने के साथ जंगल में नहीं जाने की मुनादी कराई जाती है। कुमकी हाथियों पर लाखों खर्चने के बाद अभियान महासमुंद और उत्तर छत्तीसगढ़, दोनों जगह फेल रहा। मधुमक्खी पालन, भोजन की व्यवस्था करने सहित अन्य उपाय भी बेकार साबित हुए हैं।
लंबे समय बाद लेमरू रिजर्व का काम शुरू, अब इससे उम्मीद की जा रही है अतःराज्य सरकार ने 4 वन मंडल कोरबा, कटघोरा, धरमजयगढ़ व सरगुजा के 1995 हेक्टेयर जंगल को शामिल कर लेमरू एलीफेंट रिजर्व बनाने की घोषणा की है। इसका सर्वे जारी है। सीएम भूपेश बघेल ने रिजर्व के भीतर ही 100 करोड़ का रेस्क्यू सेंटर बनाने की घोषणा की है। संभावना है कि रिजर्व बनने के बाद लोगों को कुछ राहत मिल सकती है। 2007 में केंद्र से मंजूरी मिलने के बावजूद यह योजना कभी अधिग्रहण तो कभी सर्वे जैसे कारणों से रुकी हुई थी।
जनहानि के साथ जीवों को हानि न हो, यही उद्देश्य
हाथी और लोगों के बीच हो रहे संघर्ष को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार गंभीर है। लेमरू एलिफेंट रिजर्व को लेकर कैबिनेट पहले ही फैसला कर चुकी है। 1995 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में इस रिजर्व का विस्तार होगा। इस संदर्भ में सरकार के वन मंत्री “मोहम्मद अकबर” का कहना है कि “वन्य जीवों की हानि के साथ ही जन हानि को रोकना हमारा पहला उद्देश्य है”।इतना ही नही वन्यजीव विशेषज्ञ “अमलेंदु मिश्र जो हाथियों के विषय पर दो दशक से भी अधिक समय से कार्य कर रहे है उनका कहना है कि “जंगल कम होने से हाथियों के हमले बढ़ रहे हैं
हाथियों के क्षेत्र में मानव दखल बढ़ता जा रहा हैं। खदानें खुल रही हैं। जंगल कम हो रहे हैं। इससे हाथी गांवों में घुस रहे हैं। अब कई जगह हाथी और इंसान के बीच संघर्ष की स्थिति बन रही है। इस समस्या पर रोक लगाने के लिए हमें अधिक से अधिक संरक्षित वन क्षेत्र विकसित करना होगा”।
ऐसा नही है कि शासन इन हाथियों से बचाव का कोई उपाय नही कर रही है लेकिन शासन की यह मंशा है कि वन्य प्राणियों की रक्षा भी हो जाये और कोई जनहानि भी ना होने पाए।क्योंकि इन जंगली हाथियों से प्रदेश में पहले ही काफ़ी जान-माल का नुकसान हो चुका है
इसी के मद्देनजर नज़र बलौदाबाजार का वन विभाग ने जनता के लिए कुछ सावधानियां बरतने की हिदायत जनता को दी है।अतः वन विभाग ने जंगली हाथियों से बचाव के लिए “एडवाईजर” जारी किया है इल्म हो कि जंगली हाथियों का दल बलौदाबाजार के निकट “पलारी” तक पहुंच चुका है और वहाँ इन हाथियों ने घोर उत्पात भी मचाया है अतःजिले के कुछ इलाकों में जंगली हाथियों की धमक को देखते हुए जिला प्रशासन के निर्देश पर स्थानीय वन विभाग ने आम जनता के जान-माल की सुरक्षा के लिए “एडवाईजरी” जारी की है। वन मण्डलाधिकारी ने हाथी के आने पर क्या करें और क्या न करें उप शीर्षक से जारी सलाह में लोगों से सतर्क और सावधान रहने की अपील की है।
वन मण्डलाधिकारी ने बताया कि जंगली हाथियों से प्रभावित क्षेत्रों में कच्चे मकानों में रहने वाले परिवारों को पक्के मकानों में शिफ्ट करा देना चाहिए। गांव की सीमा के भीतर चारों दिशाओं में कण्डे और लकड़ी में मिर्ची पावडर मिलाकर आग जलाकर रखें और सतर्क रहें। बच्चों को एवं स्कूलों में प्राचार्यों को अपने छात्रों को हाथियों से बचाव के उपाय बताने चाहिये। यथा हाथियों से दूर रहना, हाथियों से छेड़छाड़ नहीं करना, सेल्फी लेने का प्रयास नहीं करना और रात में घरों से बाहर नहीं निकलना आदि। हाथी प्रभावित इलाकों में निम्नलिखित चीजें नहीं किये जाने चाहिए। किसी भी हालत में हाथियों के पास नहीं जायें। हाथियों को न तो पत्थर से मारे और ना ही पटाखे फोड़ें। ऐसा किये जाने से वे और ज्यादा उग्र हो सकते हैं। हाथियों को गाली ना दें, चिल्लायें नहीं अन्यथा हाथी ऐसे लोगों को खोजकर मार देता है।क्योंकि हाथियों की श्रवण क्षमता तीव्र होती है। हाथियों की मौजूदगी में जंगलोें में प्रवेश ना करें क्योंकि हाथी आपकी गंध दूर से ही सुन सकते है और आपको उनकी उपस्थिति का पता ही नहीं चलेगा और वे आपके पास पहुंच जाएंगे। हाथियों को खाने-पीने की वस्तु ना दें। घरों में ना तो शराब बनाएं, ना रखें और न ही रखने दें। शराब एवं शराबियों से हाथी अकसर आकर्षित होकर हमला कर देते हैं। सरकार आपको फसल या अन्य हानि का मुआवजा दे सकती है किन्तु आपकी जान वापस नहीं दे सकती। इसलिए हाथियों से दूरी बनाये रखना ही समझदारी है। हाथियों के कहीं पर भी दिखाई देने पर वन विभाग के कर्मचारी को सूचित करें। यक़ीनन छत्तीसगढ़ में जिस प्रकार से वनांचलों में नक्सली समस्या शासन के लिये एक बड़ी चुनौती बनी हुई हैं ठीक उसी प्रकार से हाथियों का आतंक भी एक समस्या के रूप में सरकार के सामने आ कर खड़ी हो गई है।यह वास्तव में सरकार और समाज के लिये एक बड़ी चुनौती है।इल्म हो कि नक्सली समस्या का सामना तो शासन-प्रशासन पुलिस और सेना रात-दिन लगी हुई हैं लेकिन हाथियों के आतंक से आमजनता की सुरक्षा के लिए न तो शासन ही गंभीर दिखाई दे रही है और ना ही सरकार ।इस समय हाथियों का दाल सिरपुर के वन्य इलाकों में महानदी के उस पर विचरण कर रही है।लेकिन जब वो नदी को पार करने की कोशिश करते है तो प्रशासन उन्हें रोकने में पूरी ताकत लगा देता है कि हाथियों का प्रवेश राजधानी में ना हो पाए वे राजधानी से दूर ही रहे।लेकिन जब आमजनता की सुरक्षा का सवाल होता है तो शासन और सरकार दोनों ही निष्क्रिय हो जाते है,और आमजनता को भगवान भरोसे छोड़ देते है।ये उचित नही है।इतना ही नही वन विभाग के लोग आमजनता की सुरक्षा करने के बजाय उन्हें सावधान रहने की हिदायत देते है।सच्चाई तो यह है कि वन विभाग हाथियों से सुरक्षा के लिए कोई स्थाई व कारगर कदम नही उठा पा रहे है।यही कारण है कि सिरपुर इलाके से लेकर राज्य भर में हाथियों में बहुतों की जान ली और उत्पात मचा कर उनकी करोड़ों की फसलों को भी नुकसान पहुचाया और उनके मकानों को भी घराशाही कर दिया है।
अतः इसी सिरपुर परिछेत्र में हाथियों के आतंक प्रभावित इलाकों में “सयुंक्त किसान मोर्चा” सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिये आगामी 12 फरवरी से गुरूडीह में सैकड़ों प्रतिनिधियों से चर्चा कर “हाथी भगवो,गाँव बचाओ को लेकर लगभग 40-50 गाँव मे कुछ स्थानों पर पदयात्रा व वाहन रैली का आयोजन किया गया है।इस अभियान के तहत हाथी आतंकित गाँव की बारीकियों को समझने व ग्रामीणों से खुली चर्चा कर इससे बचाव के लिये शासन को ज्ञापन भी दिया जाएगा और उनके ग्रामीणों के लिए उचित मुआवजा देने के लिए सरकार से आग्रह किया जाएगा जिससे ग्रामीणों को उनकी पूर्ण छति-पूर्ति प्राप्त हो सके। यक़ीनन प्रदेश में बढ़ता हाथियों का आतंक एक गंभीर समस्या है जिसका समाधान नितांत आवश्यक है और ऐसा नही है कि सरकार इस समस्या का समाधान नही कर सकती। इल्म हो कि प्रदेश में निरंतर विचरण करने वाले हाथियों का दाल अपने भोजन की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण कर रहे है।और वही वे अपना ठिकाना बनाते है जहाँ उनके खाने-पानी की व्यवस्था होती है। अगर शासन यही व्यवस्था उनके लिए कर दे तो शायद हाथियों को जनहानि की आवश्यकता ही नही पड़ेंगी ।फिलहाल तो यह सरकार और प्रशासन के सामने एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने खड़ी है और इसका समाधान सरकार को ही गंभीरता पूर्वक करना है।