आस्था पर व्यापार का टैक्स: देवघर में कांवरियों का गुस्सा और श्रावणी मेला किराया विवाद

Aanchalik Khabre
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देवघर कांवरिया

देवघर कांवरिया: आस्था का महासंगम बनाम मनमानी का बोझ

झारखंड के विश्व प्रसिद्ध देवघर में श्रावणी मेला लाखों शिवभक्तों के लिए आस्था का प्रतीक है, जहाँ हर साल देश-विदेश से कांवरिया बाबा बैद्यनाथ और बासुकीनाथ के दर्शन के लिए उमड़ते हैं। पवित्र गंगाजल लेकर सुदूर यात्रा पर निकलने वाले ये श्रद्धालु ‘हर हर महादेव’ के जयघोष से वातावरण को गुंजायमान कर देते हैं। लेकिन इस बार श्रद्धा के इस महासंगम में देवघर कांवरिया को एक अप्रत्याशित संकट का सामना करना पड़ा: सार्वजनिक परिवहन में मनमाना किराया वसूली। यह स्थिति शुक्रवार को उस समय चरम पर पहुँच गई जब सैकड़ों कांवरिया ने देवघर बस स्टैंड के पास सड़क जाम कर दिया और व्यवस्था के खिलाफ जमकर हंगामा किया।

देवघर बस स्टैंड विवाद: सरकारी दरों से कई गुना अधिक किराया

श्रावणी मेला किराया विवाद की जड़ें देवघर से बासुकीनाथ तक के बस और टेंपो किराए में निहित हैं। कांवरियों का आरोप है कि सरकार द्वारा निर्धारित किराया ₹105 है, लेकिन बस, टेंपो और टोटो चालक ₹250 से ₹400 तक वसूल रहे हैं। यह मनमाना किराया वसूली कांवरियों के लिए एक बड़ा झटका है, खासकर जब वे लंबी और थकाऊ यात्रा के बाद बाबा के धाम पहुँचते हैं।

बिहार के समस्तीपुर से आए एक श्रद्धालु शिवम चौधरी ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा, “हम तो बाबा के दर्शन को आए हैं, पर यहां हर कोई श्रद्धा को लूटने में लगा है। पुलिस से शिकायत की तो वह भी बस मालिकों से बात करने की सलाह दे रहे हैं।” यह बयान प्रशासन की उदासीनता और भक्तों की निराशा को दर्शाता है। यह स्थिति देवघर कांवरिया के धैर्य की परीक्षा ले रही थी।

कांवरियों ने किया सड़क जाम: प्रशासन की चुप्पी पर सवाल

जब किराए की मनमानी असहनीय हो गई, तो सैकड़ों कांवरिया ने विरोध का रास्ता अपनाया। शुक्रवार को उन्होंने देवघर बस स्टैंड के पास सड़क जाम कर दिया और जमकर नारेबाजी की। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि सड़क के दोनों तरफ की बसें, टेंपो और दोपहिया वाहनों का आवागमन ठप हो गया। यह कांवरियों ने किया सड़क जाम की घटना प्रशासन की निष्क्रियता पर सीधा सवाल उठाती है।

मौके पर मौजूद लोगों और कांवरियों का आरोप है कि प्रशासन इस श्रावणी मेला किराया विवाद पर आंखें मूंदे बैठा है। जब भक्तों ने अधिकारियों से मदद मांगी, तो उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया कि “बस मालिकों से बात कीजिए, हम इसमें कुछ नहीं कर सकते।” यह प्रतिक्रिया यह दिखाती है कि प्रशासन ने इस संवेदनशील मुद्दे को कितनी गंभीरता से नहीं लिया, जिससे देवघर कांवरिया को असुविधा हुई।

बस मालिकों की सफाई: ‘खर्चा बढ़ गया है, हम क्या करें?

इस मुद्दे पर जब बस मालिकों से बात की गई, तो उन्होंने अपनी सफाई में बढ़ती लागत और भीड़ का हवाला दिया। बस मालिकों का कहना है कि श्रावणी मेले के दौरान भीड़ बहुत ज्यादा होती है और सड़कों को वनवे कर दिया जाता है, जिससे एकतरफा सफर में 3 से 3.5 घंटे लग जाते हैं। उन्होंने पेट्रोल-डीजल के बढ़ते खर्चों का भी जिक्र किया, जिसके कारण उन्हें किराया बढ़ाना पड़ रहा है।

हालांकि, यह तर्क कांवरियों के मनमाना किराया वसूली के आरोपों को पूरी तरह से खारिज नहीं करता। यदि लागत बढ़ी है, तो प्रशासन और बस मालिकों को मिलकर एक पारदर्शी और सर्वमान्य किराया नीति बनानी चाहिए थी, जिसे सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाता। यह श्रावणी मेला किराया विवाद का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो प्रशासन की जवाबदेही पर प्रश्नचिह्न लगाता है।

श्रद्धा पर सिस्टम का बोझ: एक वार्षिक समस्या

श्रावणी मेला किराया विवाद कोई नई बात नहीं है। देवघर जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में हर साल करोड़ों की श्रद्धालु भीड़ जुटती है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को काफी बल मिलता है। लाखों कांवरिया अपने साथ न केवल आस्था लाते हैं, बल्कि स्थानीय व्यवसायों के लिए भी अवसर पैदा करते हैं। हालांकि, यदि व्यवस्था सही न हो, तो वही भीड़ तनाव और टकराव का कारण बन जाती है। इस तरह की घटनाएं धार्मिक पर्यटन के अनुभव को खराब करती हैं और देवघर कांवरिया के लिए परेशानी का सबब बनती हैं।

यह दर्शाता है कि देवघर में श्रद्धालुओं के लिए मूलभूत सुविधाओं और उचित परिवहन व्यवस्था का अभाव एक गंभीर समस्या है। हर साल श्रावणी मेला के दौरान इस तरह की अव्यवस्थाएं सामने आती हैं, जिससे भक्तों को परेशानी होती है और धार्मिक आयोजनों की छवि धूमिल होती है।

ज़रूरत है ठोस व्यवस्था की: देवघर कांवरिया की मांग

श्रावणी मेला किराया विवाद को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि देवघर जैसे धार्मिक स्थलों पर, खासकर श्रावण महीने में, प्रशासन को अग्रिम योजना बनाने की सख्त जरूरत है। कांवरिया और अन्य श्रद्धालुओं के लिए एक सुचारु और परेशानी मुक्त अनुभव सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:

रूट मैप स्पष्ट हो: यात्रा मार्गों और ठहराव स्थलों का स्पष्ट रूट मैप सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

किराया सूची सार्वजनिक रूप से चस्पा की जाए: सभी प्रमुख स्थानों, बस स्टैंडों और टैक्सी स्टैंडों पर सरकारी निर्धारित किराया सूची बड़े अक्षरों में प्रदर्शित की जानी चाहिए। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और मनमानी वसूली पर अंकुश लगेगा।

मोबाइल टीम्स तैनात हों: मनमानी रोकने और शिकायतों को तुरंत निपटाने के लिए विशेष मोबाइल टीमें तैनात की जानी चाहिए। इन टीमों को त्वरित कार्रवाई करने का अधिकार दिया जाना चाहिए।

शिकायत निवारण तंत्र मजबूत हो: एक प्रभावी शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए जहाँ श्रद्धालु अपनी शिकायतें दर्ज करा सकें और उन पर तुरंत कार्रवाई हो।

प्रशासनिक समन्वय: स्थानीय प्रशासन, पुलिस और परिवहन विभाग के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित किया जाना चाहिए ताकि देवघर में श्रद्धालुओं को किसी भी तरह की असुविधा का सामना न करना पड़े।

जागरूकता अभियान: श्रद्धालुओं को सही किराया दरों और शिकायत प्रक्रिया के बारे में जागरूक करने के लिए व्यापक अभियान चलाया जाना चाहिए।

इन ठोस कदमों से न केवल श्रावणी मेला किराया विवाद जैसी समस्याओं को रोका जा सकेगा, बल्कि देवघर कांवरिया के लिए एक सुरक्षित, आरामदायक और आध्यात्मिक यात्रा सुनिश्चित की जा सकेगी। यह आवश्यक है कि आस्था को व्यापार के टैक्स का बोझ न बनने दिया जाए, बल्कि श्रद्धालुओं को एक दिव्य अनुभव प्रदान किया जाए।

आगे की राह: देवघर की प्रतिष्ठा और कांवरिया का विश्वास

देवघर का श्रावणी मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह लाखों लोगों की आस्था और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। श्रावणी मेला किराया विवाद जैसी घटनाएं इस पवित्र आयोजन की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं और देवघर कांवरिया के विश्वास को कमजोर करती हैं। प्रशासन और संबंधित अधिकारियों को इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और तत्काल सुधारात्मक उपाय करने चाहिए।

यह सुनिश्चित करना सभी की जिम्मेदारी है कि देवघर में आने वाले हर कांवरिया को एक सुखद और निर्बाध यात्रा का अनुभव मिले। जब तक मनमानी किराया वसूली जैसी समस्याओं का समाधान नहीं होता, तब तक यह श्रावणी मेला की सफलता पर एक काला धब्बा बना रहेगा। क्या प्रशासन वास्तव में देवघर कांवरिया की इस पुकार को सुनेगा और उनकी आस्था का सम्मान करेगा?

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