डिजिटल युग में युवा साहित्यकारों के लिए संजीवनी है कविशाला

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आज के डिजिटल युग में साहित्य कहीं पीछे छूटता जा रहा है. ऐसी स्थिति में एक इंजीनियर को कविता लिखने का शौक था और वो चाहता था कि एक ऐसी जगह हो जहां उनकी सारी रचनाएं एक जगह दिखाई दें और लोग उसे पढ़ भी पाएं. रेखता जैसे जलसों में अक्सर बड़े कवियों, लेखकों को सुनकर उनको लगता कि काश एक मंच ऐसा भी हो जहां नवोदित कवियों लेखकों को अपनी कला दिखाने का मंच मिल सके. 30 साल के पेशे से इंजीनियर और शौक से कवि अंकुर मिश्रा ने इसी सोच के साथ 2017 में कविशाला शुरू की.

शुरुआत में अंकुर के साथ तीन लोगों ने मिलकर ये साइट खुद ही डेवलप और शुरू की. आज सोशल मीडिया पर 6 लाख लोग इसको फॉलो करते हैं.

कविशाला की वेबसाइट के अनुसार इस पोर्टल पर 100000 कवि और तीन लाख से ज्यादा कविताएं और कहानियांं हैं जहां कवि और लेखक आपस में जुड़ते हैं, बहस मुबाहिसा कर सकते हैं. कविशाला पर कॉन्टेंट लेखक खुद डालते हैं पर कॉन्टेंट सीधे अपलोड नहीं होता. कंपनी की टीम इस बात को सुनिश्चित करती है कि न केवल कॉन्टेंट ऑरिजनल हो बल्कि कहीं पहले छपा न हो.
अंकुर कहते हैं कि ‘इस वेबसाइट पर रिस्पांस बहुत अच्छा था. शुरू में ही 50 कवि हम से जुड़ गए और फिर हर महीने लोग जुड़ते गए.’

टर्म्स एंड कंडीशन्स अपलाय, मसाला चाय, मुसाफिर कैफे आदि किताबों के लेखक दिव्य प्रकाश दूबे कहते हैं, ‘कविशाला नए लेखकों का ऐसा अड्डा है जहां न केवल वो नए लेखकों से सीखते हैं बल्कि पुराने स्थापित कवियों से भी परिचित होते हैं. मुझे लगता है कि हिन्दी की तमाम पत्रिकाओं में कविता का स्पेस कम हो रहा था इसलिए कविशाला जैसे प्लेटफार्म बहुत ज़रूरी हैं. मेरा जब भी कुछ यहां छपता है तो मैं सैकड़ों नए पाठकों की नज़र में आता हूं.’

कवियत्री रश्मि भारद्वाज का मानना है, ‘शुरुआती दौर में अगर आप की 8-10 कविताएं कहीं लग जाती हैं तो आपको लोग पहचानने लगते हैं. साथ ही डिजिटली आपकी कविताएं सुरक्षित रहती हैं. किताबें आउट ऑफ प्रिंट हो जाती हैं पर एक बार वेबसाइट पर आपकी कविता हो तो आप लगातार उसके लिंक्स शेयर कर सकते हैं और एक जगह लोगों के लिए कविताएं उपलब्ध रहती हैं.

कविता पर ही हालांकि अंकुर कविशाला को सीमित नहीं होने देना चाहते हैं. उनका मानना है कि ये एक ऐसी जगह हो जहां साहित्य का वास हो और लेखक कवि अपनी कृति लगाएं और उनको पढ़ने वाले मिलें.

कविशाला ही नहीं, ऑनलाइन कई अन्य प्लैटफॉर्म भी सक्रिय हैं जो कविताओं की जगह देते हैं. पर कविशाला और बाकी साइट्स में फर्क ये है कि यहां ऑनलाइन के अलावा कई ऑफलाइन गतिविधियां भी की जा रही हैं जो कि लेखकों, कवियों को उनके पाठकों से जोड़ती हैं.

दिव्य प्रकाश दूबे का मानना है, ‘कविशाला, हिंदीनामा, हिन्दी पंक्तियां तीनों की एक दिन की रीच हिन्दी की तमाम पत्रिकाओं और पब्लिकेशन हाउस की महीनों की रीच से ज़्यादा है. मैं इस नए माध्यम को बड़ी उम्मीद से देखता हूं जो किताब को ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचाने में कारगर है.’

कविशाला की विशेषता प्रभात रंजन के अनुसार ये है कि वो ऑफलाइन भी कई आयोजन करता है जो कि कवियों के लिए एक बाजार तैयार करने में सहायक होता है. वे कहते है, ‘मेनस्ट्रीम के प्रकाशकों की कविता छापने में बहुत कम रुचि रहती है क्योंकि इसकी बिक्री बहुत कम है.
हर महीने एक कविशाला मीट का आयोजन किया जाता है जिसमें 100 के करीब लोग जुड़ते हैं. इनमें 30 कवि होते है बाकी उनको सुनने वाले. अंंकुर कहते हैं कि ‘40 शहरों में हर महीने ये मीट होते हैं, इनमें टियर 1 और टियर 2 के शहर शामिल हैं.’

फिलहाल 15 भाषाओं में सामग्री इस वेबसाइट पर उपलब्ध है. इस वेबसाइट के ज़रिए कुछ युवा कवियों जैसे राहुल जैन, आशीष प्रकाश, दानिश मोहम्मद, आशीष चौहान आदि ने एक पहचान भी बना ली है. दानिश मोहम्मद खान कहते हैं, ‘कविशाला ने मुझे पहचान दी. इससे पहले मैं शायरी तो लंबे अर्से से कर रहा था पर कोई मुझे जानता नहीं था. मैने इनके इवेन्ट्स में परफॉर्म भी किया और कई जाने-माने कवियों ने हमें सुना. कविशाला के साहित्य कार्यक्रमों की देखादेखी कई और संगठन भी ऐसे आयोजन करने लगे हैं.’

कविशाला स्टोर : हाल ही में कविशाला ने कविशाला स्टोर ओपन किया है. जहाँ पर नए व पुराने लेखकों की की किताबों को लिस्ट किया गया है. कविशाला स्टोर से आप आसनी से अपनी पसंद की किताब घर बैठे मंगवा सकते हैं. साथ ही आप अपनी किताब इस स्टोर में लिस्ट भी कर सकते हैं. यहाँ बुक लिटिंग निशुल्क है.

कविशाला वेबसाइट पर जो सामग्री है उसमें यूजर जनरेटेड कॉन्टेंट के अलावा शोधपरक लेख- कविशाला लैब में लगाए जाते हैं कविशाला सोशल में किसी लेखक कवि से जुड़ी सामग्री लगाई जाती है जो खबरों में हो, वहीं कविशाला डेली में साहित्य जगत से जुड़ी सामग्री होती है.

कविशाला ने साथ ही लखनऊ और जयपुर में आगाज नाम से आयोजन किये. दो दिन चलने वाले इस आयोजन में कुछ नामी कवियों के साथ नए कवियों, लेखकों के बीच वर्कशॉप आदि आयोजित किए जाते हैं और नए लोगों को अपनी कविता लोगों तक पहुंचाने का मौका मिलता है.

साथ ही अंकुर कहते हैं कि ‘हमारी योजना है कि 10 लेखकों की 10 किताबें हर तीन- चार महीने में प्रकाशित की जायें. इसका खर्च लेखक उठायेंगे पर उनको इस बात का फायदा होगा कि कविशाला के फॉलोअर्स तक उनकी किताब पहुंचेगी और उसमें 10 प्रतिशत भी किताब खरीदते हैं तो किताबों की अच्छी बिक्री हो जायेगी.’ आज कविशाला में अंकुर समेत 12 लोगों की टीम है जो बेवसाइट डेवलपमेंट, मार्केटिंग डिज़ाइन, कॉन्टेंट का काम करते हैं. अंकुर बताते हैं कि अब तक वे इस वेबसाइट और इससे जुड़ी गतिविधियों में अपने ‘25 लाख रुपये लगा चुके हैं.
स्वयं के पैसे से चलाने में दिक्कते भी आईं और 2019 में 8-9 महीने ये साइट बंद रही क्योंकि वेबसाइट पर ट्रैफिक इतना बढ़ गया था कि उसके अपग्रेड की जरूरत थी. पर नई वेबसाइट जो कि ज्यादा ट्रैफिक ले आ पाये उसको विकसित करने के लिए समय और पैसा दोनों की जरूरत थी. जब ये हुआ तो वेबसाइट 2019 के दिसम्बर में फिर चालू की गई. अंकुर की आशा इस समय कविशाला स्किल्स एप्प पर है. एप्प का मकसद स्कूल और कालेजों को छात्रों को साहित्य की दुनिया से जोड़ना है. अंकुर कहते हैं ‘मैं चाहता हूं की ये एक तरह का लिटरेचर ऑलंपियाड बने. हर छात्र से 99 रुपये लिए जाएं और सालाना सब्स्क्रिपशन मॉडल पर इसे चलाया जाये. इस समय स्कूल कॉलेजों को इससे जोड़ने की कोशिश की जा रही है. हर कक्षा के अनुरूप इस पर साहित्य से जुड़ी सामग्री दी जायेगी.

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