मन की चंचलता से व्यथित न हो कर्मयोगी पृकृति पुत्र त्यागीजी-आंचलिक ख़बरें-रमेश कुमार पाण्डे

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जिला कटनी – ज्ञान तीर्थ स्वर्ग धाम विलायतकला से त्यागी जी के विचार हर व्यक्ति की अपनी पृकृति होती है और वह अपनी पृकृति के अनुरूप कार्य करता है चाहे अनचाहे भी अच्छे से अच्छा तो बुरे से बुरा कार्य ही होता है अतः आप कुछ नहीं बसअपनी पृकृति अपनी पृवृति पर ध्यान रखें और देखे कि मुझे ईश्वर ने किस कार्य को सौंपा है चूंकि आप नही चाहकर भी करेंगे ही और चाहकर भी नही कर सकेंगे यह जीवन की बङी बारीक तथा अनुभव से मिली चीजे है जिसके लिए लोगो का पूरा जीवन लग जाता है लेकिन अनुभूति नही हो पाती है।
जब सब कुछ ईश्वर को करना है तो हम क्या और क्यो करें ?
यह सवाल यदि आता है तो कुछ बुरा नहीं है चूंकि अनुभव सवालों से ही मिलते है और सवालो मे खोकर जो जवाब अंदर से आते है वे सच्चे अनुभव होते हैं जब लोग ही दो तरह के होते है तो तीसरा कहा से खोजेंगे एक अच्छा दूसरा अच्छा नहीं तो कार्य तो दोनो को मिले है और करते ही रहना होगा बिलकुल उसी तरह जैसे पानी की एक बूँद पङने पर भी जल मे हलचल तो होती है यही ईश्वर की योजना है बस यदि हम पहली श्रेणी के याने अच्छा करने वाले है तो हमारे द्वारा जो कुछ भी अच्छा हो सकता है यह देखते चले करने की सामर्थ्य लगे तो जरूर करें और जब आपको लगे कि हा मै सब कुछ कर सकता है सब बदल सकता हू तो खुद को बदले अपनी ऊर्जा को बढ़ाए जबकि हमारे अनुभव से यह काम भी उपर वाले ही करते है ।
संसार को चलाने वाले ही संहार भी करते है पालते है यह सब जानते है लेकिन स्वीकार नही कर पाते अहंकार के कारण मन मानता नही है हम कुछ भी नहीं है ध्यान रखना जो सब कुछ है वह जरूर सबके अंदर है इसलिए बहुत बार ऐसा लगता है कि देखो मैने यह किया तो यह पा लिया कभी खुद से सवाल किया हमने कि हमारी चाहत क्या है मिल क्या रहा है और सदा ही कमी ही क्यो बनी हुई है विचारे।

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