सरकारी योजना की हकीकत, बदहाल गौवंश और बेहाल गौशाला

Aanchalik Khabre
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रिपोर्ट:-ऋतुराज राजावत:-

जनपद महोबा के चरखारी विकाशखंड में आने वाले गोरखा गांव में बनी गौशाला की हालत बेहद नाजुक है। सरकारी अनदेखी और भ्रष्टाचार की बेदी पर बली चढ़ चुकी इस गौशाला में कहने को तो 200 से अधिक अन्ना गौवंश का रख रखाव किया जा रहा है । लेकिन इस गौशाला में कदम रखते ही हालात कुछ और ही तस्वीर बयां करतें हैं। तकरीबन 5000 हजार की आबादी के बीच अन्ना प्रथा की रोकथाम करने के लिए बनाइ गई इस गौशाला की हालत बेहद बदहाल है और अन्ना मवेशियों की हालत बेहद नाजुक। ना तो गौशाला में उत्तर प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ के निर्देशों का पालन किया जा रहा है और ना ही सरकारी अफसरानों को गोरखा गांव में बनाइ गई इस गौशाला में कदम रखने की कभी मोहलत मिलती है।

गौशाला के मवेशियों को खाने के लिए हरा या फिर सूखा भूसा नही बल्कि जहरीला पिपरमेंट दिया जाता है। जिसको छूने मात्र से इंसानी शरीर पर इसका घंटो असर रहता है उसी हानिकारक पिपरमेंट का उपयोग अन्ना मवेशियों को चारे के रूप में डाल दिया जाता है। भूखे और खाली पेट रहने वाले अन्ना मवेशी इसी स्लो पोइंजन कहे जाने वाले चारे को खाने को मजबूर दिखाई देतें हैं। सर्द मौसम में ठंडा पेपरमेंट खाने के चलते जहां आए दिन इस गौशाला के अन्ना पशु बीमार पड़े रहतें हैं तो वही सरकारी अफसरानों तक कई बार इस शिकायत को पहुचाने के बाउजूद भी अभी तक ना तो मवेशियों के लिए उचित चारे की व्यवस्था की गई है और ना ही कोई कार्यवाही। कुल मिलाकर इस गौशाला में रहने वाले गौवंश की हालत ना तो अभी तक सुधरी और ना ही उनके हालात सुधरते दिखाई दें रहें हैं।

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विकासखंड चरखारी के गोरखा गांव में पांच माह पूर्व बनाई गई इस गौशाला में ना तो कभी कोई डाॅक्टर आता है और ना ही प्रशासनिक अधिकारी। अन्ना मवेशियों के शरीर से बहता ताजा खून इनके प्रति बरती जाने वाली सरकारी उदासीनता की साफ तस्वीर उजागर करता है। गौशाला में ना तो कभी कोई डाक्टर आकर इन मवेशियों का इलाज करता है और ना ही कभी कोई सरकारी अफसर इस गौशाला के आस पास दिखाई है। गांव में बनाई गई इस सरकारी गौशाला में अन्ना मवेशियों के शरीर पर बने जख्म अब नासूर बनते जा रहें हैं।

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ग्रामीणों का आरोप है की गौशाला में रखे जाने वाले इन अन्ना मवेशियों को सरकारी उपचार के नाम पर सिर्फ सिर्फ कागजी कार्यवाही पूरी की गई है। गौशाला में बंद अन्ना मवेशियों को सरकारी उपचार ना मिलने के चलते हर दिन किसी ना किसी गौवंश को अपनी जान से हांथ धोना पड़ रहा है।

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गोरखा गांव में बनी इस सरकारी गोशाला में ना तो अन्ना गोवंश के लिए खाने की कोई उचित व्यवस्था की गई है और ना ही पीने के लिए साफ पानी की। हरा और सूखा चारा खिलाने के लिए बनाए गई इस गौशाला की चरही में सिर्फ और सिर्फ गोबर ही नजर आता है। गौर से देखने पर गोवंश को चारा खिलाने वाले स्थान पर न तो चारा नजर आता है और ना ही कभी डाला जाता है। तो वहीं चरही में पड़े गोबर से निकलने वाली दुगर्ध यहा आम इंसान को एक पल भी खड़ा होने नही देती है। अब बात की जाए स्वच्छ और निर्मल जल कहे जाने वाले पीने के पानी की। इस गाशाला में पल रहे गौवंश के पीने के लिए पानी की व्यवस्था तो की गई है लेकिन दूशित जल की। महीनों गुजर जाने के बाद भी इस पानी को ना तो कभी नही बदला जाता है और ना ही जुम्मेदार इस गंदे पानी को बदलने की जहमत उठाते कभी नजर आतें हैं। इस गंदे पानी का सेवन करने के चलते अन्ना गौवंश में बीमारी का खतरा बना रहता है। कुल मिलाकर अन्ना का दर्जा प्राप्त कर चुकी गाय को ना तो इस गौशाला में चारा मिल रहा है और ना ही पीने के लिए स्वच्छ और निर्मल जल। जिसको लेकर ग्रामीण जनता द्वारा शिकायत तो कई बार की जा चुकी है लेकिन सुनकर भी अनसुना करना सरकारी अफसरों के लिए आम बात सी नजर आती है।

गौशाला के अन्ना पशुओं के लिए सरकारी पैसे से सूखा चारा तो मंगवाया गया लेकिन मंगवाया जाने वाला यह चारा ना तो कभी गौशाला तक पहुचाया गया और ना ही गौवंश को जहरीला पेपरमेंट खाने से कभी निजात मिली। वहीं ग्रामीणों की अगर मानें तो इस सूखे चारे का उपयोग इस गावं के प्रधान द्वारा अपने निजी पालतू मवेशियों के लिए खुलकर किया जाता है। बरसात में मौसम की मार झेलने के बाद अब यह सूखा चारा सड़ने की कगार पर जा पहुचा है लेकिन क्या मजाल जो सड़े हुए इस चारे को अभी भी अन्ना मवेशियों तक पहुचा दिया जाए । ग्रामीण जनता का आरोप है की दबंग प्रधान द्वारा कभी कभार गांव पहुचने वाले अधिकारियों को शोपीस के रूप में दिखाने के लिए सड़ चुके इस सूखे चारे का इस्तेमाल किया जाता है।

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