आख़िर कैसे सफ़ल होगी “आदर्श गौठान की योजना..! भूख से बेहाल और बीमार हो रहे मवेशी, निरीक्षण के नाम पर डेढ़ लाख का नाश्ता कर रहे अधिकारी…!
राजेश सिंह बिसेन,जयनारायण मिश्रा
केन्द्र हो या राज्य दोनों ही स्थानों पर जब भी कोई नई सरकार सत्तासीन होती है ,तो कुछ नया करने का प्रयास जरूर करती है और ऐसा लाज़मी भी है क्योंकि जनता को सरकार से कुछ नई चीज हासिल होती है इस बार भी छत्तीसगढ़ प्रदेश में पंद्रह सालों बाद कांग्रेस का भाग्य उदय हुआ और भूपेश बघेल ने मुख्यमंत्री का ताज पहना है अतः उन्होंने भी कुछ नया करने की ठानी और लग गए कोशिशों में और उन्होंने अपनी ये कोशिश की शुरुआत ग्रामीण इलाकों से प्रारंभ की। इल्म हो इस दौर का चुनाव पूर्णतः किसानों पर ही केन्द्रित था। अतः मुख्यमंत्री भूपेश ने भी गाँव की ओर ही रुख किया और एक ड्रीम प्रोजेक्ट तैयार करवाया जिसका नाम दिया गया “नरवा, घुरूवा, गरुवा और बाड़ी वास्तव मे ग्रामीणों के लिए यह एक लाभकारी योजना थी।लेकिन सरकार की यह योजना जमीनी स्तर पर सफलता कैसे हासिल करेगी यह समझ से परे है क्योंकि इसमें कोई दो राय नही की सरकार की सभी योजनाएं लाभदायक होती है लेकिन काग़ज़ों से ज़मीन पर उतरे ही उसकी हक़ीक़त ही कुछ और हो जाती है इस बात की तस्दीक हाल ही में जनपद पंचायत तखतपुर के एक ग्राम पंचायत “नेवरा” में बना आदर्श गौठान से ही चुकी है।
इल्म हो कि राज्य के मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट नरवा, घुरवा, गरुआ और बाड़ी को राज्य शासन के सर्वोच्च प्राथमिकता वाली योजना मानी जाती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार की विश्व में अनूठी योजना की संज्ञा दी गई है। किन्तु मुख्यमंत्री द्वारा उद्घाटित “आदर्श गौठान”योजना, अधिकारियों की लापरवाही की भेंट चढ़ रही है जिसका जीवंत उदाहरण “आदर्श गौठान”ग्राम नेवरा में आसानी से देखा जा सकता है और विचार किया जा सकता है कि आख़िर यह योजना सफल कैसे होगी। इस योजना में तो कहीं कोई शक की गुंजाइश ही नही है कि ऐसी योजनाएं ग्रामीणों के हित मे नही है फिर भी यह कहना जायज है कि ऐसी योजनाएं तभी फ़लीभूत होती है जब इनकी मॉनिटरिंग ठीक तरह से की जाए।इल्म हो कि मॉनिटरिंग के अभाव में शासन की बड़ी से बड़ी योजनाएं करगर साबित न हो सकी और उन योजनाओं ने ग्रामीण धरा पर उतरते ही दम तोड़ दिया,संभवतः इसके पीछे वजह एक ही है कि इन योजनाओं को क्रियान्वयन करने वाले नेता इसके उदघाटन समारोह की चकाचौंध में इतना खो जाते है कि फिर उन्हें यह भी दिखलाई नही देता की विभागीय अधिकारियों ने उनके आँखों पर पट्टी बंध दी है।जिसके कारण वे वही देखा सकता है जो दिखलाया जाता है।योजना की मॉनिटरिंग धरी की धरी रह जाती है और वह योजना विभागीय अधिकारियों के कमाई जड़ बन जाती है।यक़ीनन योजनाओं की हक़ीक़त तो यही है जो बाद में सामने आती ही है काश भूपेश का सपना “आदर्श गौठान” सफल हो इसकी हक़ीक़त अन्य योजनाओं की तरह न हो। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है होता वही है जो होना है और हुआ भी, तखतपुर के नेवरा ग्राम पंचायत में लाखों रुपये ख़र्च किया गया। वास्तव में यह एक बड़ा समारोह था,इस कार्यक्रम के लिये अधिकारियों ने पूरी तैयारी कर ली थी, क्योंकि इस समारोह में स्वंय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी तशरीफ़ ला रहे थे। ज्ञातव्य हो कि यह योजना राज्य शासन की है और इस योजना के जनक भी मुख्यमंत्री द्वारा ही की गई है अतः अधिकारियों ने भी कोई कसर नही छोड़ी,जिससे आदर्श गौठान समारोह पूर्णतः सफल हो जाये।इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर उन्होंने एक स्लोगन भी तैयार किया, “हमर गाँव हमर गौठान” इसी में लाखों रुपये ख़र्च कर दिए गए।जबकि यहां उन बेजुबान मवेशियों को रखकर उनके खाने-पीने का प्रबंध किया जाना चाहिये था।लेकिन अधिकारियों को तो मुख्यमंत्री से अपनी पीठ थपथपवानी थी।अतः इसलिए इस गौठान की निरंतर मोनिटरिंग करते रहे ,और न जाने कहाँ से 1144 आवारा बेजुबान मवेशियों की भीड़ भी उदघाटन समारोह के पूर्व लाकर खड़ा भी कर दिया गया। वैसे आपकी जानकारी के लिये बता दे कि इस आदर्श गौठान में सिर्फ़ अधिकांशतः 500 मवेशियों के लिए ही पर्याप्त स्थान है तो तादाद से ज्यादा मवेशी का रहना भी नामुमकिन है। चूंकि अधिकारियों को तो मुख्यमंत्री की आँखों मे धूल झोंक कर शाबासी हासिल करनी थी संभवतः उन्होंने 1144 मवेशियों को वहाँ ठहराया गया। इतना ही नही पशु विभाग ने तो अनन-फ़नन में इन 1144 मवेशियों के टीकाकरण भी कर दिया। है ना यह शर्मनाक कि एक किसान पुत्र कहलाने वाले मुख्यमंत्री की आँखों मे अधिकारियों ने कितनी आसानी से धूल झोंकने में कामयाब हो गए,और उन्हें यह एहसास तक नही हुआ कि एक गौठान में इतनी बड़ी तादात में मवेशियों कैसे आ सकते है और ये लाये कहा से है समारोह में उपस्थित ग्रामीणों को दबी जुबान से यह भी कहते सुना गया है कि इन आवारा पशुओं को कार्यक्रम के दो दिनों पूर्व पिकअप से लाया गया है। अब आप ही बताये की नेताओं के आँखों मे पर्दा पड़ा होता है या नही। संभवतः अधिकारीगण अगर यह सोच रहे होंगे कि उन्होंने मुख्यमंत्री की आँखों मे धूल झोंक दिया तो वे भूल कर रहे है कि ये मुख्यमंत्री भूपेश बघेल है रमन सिंह नही की जैसा चाहो कर लोगे।
इतना ही नही कार्यक्रम समापन के बाद अब नेवरा के “आदर्श गौठान” में लगभग 15 से 20 मवेशियों के होने की जानकारी है स्वाभाविक सा एक सवाल है कि जिन 1144 मवेशियों को लाकर गौठान में प्रायोजित किया गया था आख़िर वे अब गए कहा..?
इल्म हो कि गाँव का चरवाहा गाँव के मवेशियों को सुबह लाकर गौठान में रखता है जिसे गाँव की भाषा मे बर्दी कहा जाता है फिर चराने के लिए ले जाता है और फिर शाम को वापस गाँव के मवेशियों को उनके मालिकों को सौप देता है चरवाहे का यह क्रम निरंतर चलते रहता है अर्थात शाम को गौठान खाली होने चाहिये,लेकिन नही है, बस यही एक बात गले से उतर नही रही है कि उस आदर्श गौठान में अब भी कुछ मवेशी है आख़िर उनका मालिक है कौन..? बेचारे बेजुबान पशु तो अपने मालिकों का नाम तो बता नही सकते और वे यह भी नही बता सकते कि वे आये कहा से है और उन्हें लाया कौन है। यह तो तय है कि वे पशु नेवरा गाँव से तो नही है।। इल्म हो कि इस समारोह और आदर्श गौठान की निर्माण में अधिकारियों ने ऐसा स्वांग रचा की मुख्यमंत्री का कृपापात्र कहलाये और अपने हितों में आगे बढ़ते जाए। इसके लिए वाकई इन अधिकारियों ने दिमाक भी लगाया और धन भी,इन्होंने बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए एक समिति का गठन किया और नेवरा सरपंच को अध्यक्ष पद से नवाजा गया। इतना ही नही ,इसकी मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी भी साथ ही साथ अलग-अलग सौप ताकि राज्य शासन की यह योजना फलीभूत हो सके। लेकिन वास्तविकता यही है कि यह योजना यहाँ घराशाही हो गई, क्योंकि अधिकारियों में ना तो इस योजना की कोई निष्ठा थी और ना ही कर्तव्यपरायणता बस उनको तो एक स्वाँग रचना था।क्योंकि मुख्यमंत्री तशरीफ़ ला रहे थे।कितने शर्म की बात है कि इन अधिकारियों ऐसा स्वाँग रचा की मुख्यमंत्री का सपना ही टूट कर बिखर गया,इतना ही नही इन अधिकारियों के कारण ही शासन की लाभकारी योजनाएं की अहमियत खो देती है वरना सरकार तो जनता को बहुत कुछ प्रदान करना चाहती है ।आज नेवरा का गौठान सुना पड़ा है वहाँ आज उतने मवेशी नही है जितना उद्घाटन के समय दिखलाया गया था। लेकिन ऐसा लगता है कि आज यहाँ जितने भी मवेशी है ग्राम पंचायत और अधिकारियों ने उनकी भी जिम्मेदारी से मुँह फेर लिया है। क्योंकि उद्घाटन के बाद से जिम्मेदार अधिकारियों ने “आदर्श गौठान” में पल रहे बेजुबान मवेशियों की ना हालत देखी और ना ही उनके दाना-पानी की ही व्यवस्था की है हक़ीक़त यही है कि आज गौठान में रह रहे मवेशियों के खाने के लिये चारा नही है,भूख से बेहाल हो रहे बेचारे यह भी नही कह सकते कि हमे खाने को दो,जब भी इनके पास कोई जाता है एक आशा भारी निगाहों से देखते है कि शायद कुछ खाने को मिलेगा, लेकिन ऐसा होता नही।वास्तविकता में इनके चारे के प्रबंधन ग्राम पंचायत को सौप गया था किन्तु लगभग डेढ़ लाख रूपये ख़र्च करने के बाद सरपंच ने भी हाथ खड़े कर दिये है अब सवाल यह उठता है कि इसका जिम्मेदार कौन है और वो अपनी जिम्मेदारियों से मुँह क्यो मोड़ रहा है आखिर अधिकारियों ने यह रह रहे पशुओं के चारे के प्रबंध क्यो नही किया। ग्रामीणों और सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि अधिकारियों ने निरीक्षण के नाम पट गाँव के कई चक्कर लगाए और लगभग डेढ़-दो लाख रुपये अपने नाश्ता में उड़ाये ,अगर ये अधिकार बुद्धि से काम लेते और खुद खाने के बजाए डेढ़-दो लाख का चारा मवेशियों के लिए भरवा देते तो मवेशी ना भूखे रहते और ये गौठान आदर्श गौठान भी कहलाता ।लेकिन अब इस गौठान में चारा नही होने की वजह से भूख से व्याकुल एक मवेशी शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो गया है जिसे पशु विभाग के चिकित्सक कही भूख से कमजोर मवेशी दम ना तोड़ दे, इसलिए चारा देने की बजाय उसे जिंदा रखने का प्रयास किया जा रहा है लेकिन प्रयास को सफल न होता देखकर उस भूख से निढ़ाल, बीमार कमजोर बेजुबान पशु को मरने के लिये जंगल मे छोड़ दिया गया और जिसका पता किसी तरह से मीडिया को लगा तो मीडिया सक्रिय हो गई, तब आनन-फानन में पशु को वापस लाया गया, और पशु विभाग के एक चिकित्सक ने उक्त पशु के इलाज का वीडियो बनाकर मीडिया के पास भेजा।। विचारणीय पहलू यह है कि अगर ये अधिकारी बेजुबाँ मवेशियों की चारे व्यवस्था का प्रबंधन नही कर पा रहे है तो इनके जीवन से खेलने का इनको क्या अधिकारी है अगर ये भूख से मर गए तो इन पशुओं की हत्या का भागीदार कौन समझा जाएगा।अधिकारी या फिर..! वो जिसने आदर्श गौठान की योजना को सुझाया है। खैर, इस संदर्भ में एक अधिकारी ने नाम नही उजागर करने की शर्त रखते हुए बताया है कि गौठान के आस-पास की जमीनें सरकारी है और उस पर लोग काबिज है उन पर फ़सले लगी हुईं हैऔर वे नही चाहते कि चरवाहे गौठान में मवेशियों को एकत्रित करे। अतः कई दिनों से चरवाहे बर्दी अर्थात मवेशियों को यहाँ लेकर नही आ रहे है।
अंततः जब इस योजना से जुड़े अधिकारियों से हमने फ़ोन पर संपर्क साधने की कोशिश की तो उन्होंने इस संदर्भ में कोई भी जानकारी देना मुनासिब नही समझा कुछ ने तो फोन उठना ही जरूरी नही समझा, और अगर किसी ने फोन उठाया भी तो अपनी अनभिज्ञता जाहिर कर थी,तो किसी ने मीटिंग का बहाना बनाया, कुल मिलाकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये मुख्यमंत्री का “आदर्श गौठान” किसी चलचित्र की भांति नेवर ग्राम के पर्दे पर चला और फिर मंज़र बदल गया। अतः इस योजना के बारे में क्या कहा जा सकता है सिर्फ अफसोस ही जताया जा सकता है कि इतनी अच्छी योजना जो ग्रामीणों के लिये लाभकारी सिद्ध होती नाकाबिल अधिकारियों से भेंट चढ़ गई। अत्यंत चिंतन का विषय है कि मुख्यमंत्री का एक ड्रीम प्रोजेक्ट जो ग्रामीणों के हितार्थ होता ,लेकिन बेपरवाह अधिकारियों की वजह से संभवतः ड्रीम ही रह जायेगा। ज़ाहिर सी बात है कि इन अधिकारियों को ना तो शासन का भय है और ना ही मुख्यमंत्री का, बस उन्हें तो अपनी मनमानी करना है और वो कर भी रहे है।उन्हें किसी के सपने से क्या लेना और अगर वह टूटता है तो भी उनका जाता क्या है। वास्तव में ये अधिकार एक कठोर दंड के अधिकारी है और दोषियों को दंड मिलना ही चाहिए । इल्म हो कि मुख्यमंत्री का यह ड्रीम प्रोजेक्ट केवल नेवरा के लिये न होकर पूरे राज्य के लिए है।इतना ही नही अगर नेवरा जैसे कृत्य अन्य स्थानों पर हुआ तो इस ड्रीम प्रोजेक्ट की सफलता पर प्रशन चिन्ह लग जायेगा । अतः बुद्धिजीवियों का कहना है कि मुख्यमंत्री जी को इस आदर्श गौठान नेवरा की उच्च स्तरीय जांच बैठानी चाहिए ताकि उन्हें भी पता चल सके कि अधिकारी उनकी नाक के नीचे उनके ड्रीम प्रोजेक्ट के साथ किस तरह से खिलवाड़ कर शासन और उसकी योजना की नुकसान पहुंचा में लगे हैं दूसरी तरफ जांच होने से अन्य गौठान में रहने वाले बेजुबान मवेशयों की व्यवस्था मजबूत होगी।
बहरहाल देखने वाली बात यह है कि क्या इस गंभीर लापरवाही पर मुख्यमंत्री कोई एक्शन लेते भी हैं या आदर्श गौठान में बेजुबान मवेशियों की जान से यू ही खिलवाड़ करते रहेंगे।