क्या ये शांति प्रयास हैं या चुनावी प्रचार का हिस्सा?
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पिछले कुछ महीनों से लगातार यह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआती महीनों में दुनिया के छह बड़े संघर्षों को समाप्त किया है। उनका कहना है कि यह केवल संघर्षविराम नहीं थे, बल्कि स्थायी शांति की दिशा में ठोस कदम थे। ट्रंप का यह भी आरोप है कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिलेगा क्योंकि वे “लिबरल” नहीं हैं। उनके इन दावों पर दुनिया भर में चर्चा हो रही है — लेकिन सवाल यह है कि क्या इनमें कोई सच्चाई है?
- क्या ये शांति प्रयास हैं या चुनावी प्रचार का हिस्सा?
- ट्रंप और रूस-यूक्रेन युद्ध: सिर्फ बयानबाज़ी?
- इस्राइल और ईरान: क्या अमेरिका भी नहीं था इस युद्ध में शामिल?
- कांगो-रवांडा: समझौता हुआ, लेकिन बगावत जारी
- भारत-पाकिस्तान: ट्रंप के दावे को भारत ने किया खारिज
- अर्मेनिया-अजरबैजान: शांति या अस्थायी ठहराव?
- थाईलैंड-कंबोडिया: व्यापारिक धमकियों से मिली शांति?
- मिस्र-इथियोपिया: जो संघर्ष कभी हुआ ही नहीं
- सर्बिया-कोसोवो: आर्थिक समझौता, न कि सैन्य शांति
- क्यों बार-बार दोहरा रहे हैं ट्रंप ये दावे?
- क्या नोबेल पुरस्कार नहीं मिलना असली मुद्दा है?
- सच्चाई और प्रचार के बीच की लकीर
ट्रंप और रूस-यूक्रेन युद्ध: सिर्फ बयानबाज़ी?
ट्रंप ने कई बार यह दावा किया है कि राष्ट्रपति बनने के 24 घंटे के भीतर वह रूस-यूक्रेन युद्ध को रोक सकते हैं। लेकिन 7 महीने बीत चुके हैं और यह युद्ध अभी भी जारी है। ट्रंप की अब तक की कोई कोशिश सफल नहीं रही है, और यह दावा पूरी तरह अधूरा प्रतीत होता है।
इस्राइल और ईरान: क्या अमेरिका भी नहीं था इस युद्ध में शामिल?
2025 में जब इस्राइल ने ईरान के परमाणु केंद्रों पर हमला किया और जवाबी कार्रवाई में ईरान ने अमेरिकी बेस पर हमला करने की कोशिश की, तब ट्रंप ने खुद को मध्यस्थ बताया। लेकिन अमेरिका खुद इस टकराव में पक्ष बना, इसलिए शांति की भूमिका संदिग्ध है। हालात आज भी नाजुक हैं।
कांगो-रवांडा: समझौता हुआ, लेकिन बगावत जारी
ट्रंप ने दावा किया कि डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो और रवांडा के बीच उन्होंने संघर्ष खत्म कराया, लेकिन M23 विद्रोही गुट की हिंसा आज भी जारी है। दोनों देश एक-दूसरे पर समझौते के उल्लंघन के आरोप लगा रहे हैं।
भारत-पाकिस्तान: ट्रंप के दावे को भारत ने किया खारिज
ट्रंप ने कहा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध टाला। जबकि भारत सरकार ने साफ कहा कि यह फैसला पूरी तरह भारत का था, जिसमें ट्रंप या अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी। पीएम मोदी खुद संसद में यह बयान दे चुके हैं।
अर्मेनिया-अजरबैजान: शांति या अस्थायी ठहराव?
नगोरनो-काराबाख क्षेत्र को लेकर चल रहे संघर्ष को ट्रंप ने खत्म कराने का दावा किया। लेकिन रूस और ईरान ने अमेरिकी दखल पर आपत्ति जताई है। आज भी इस क्षेत्र में तनाव बना हुआ है, और स्थायी समाधान दूर की बात लगती है।
थाईलैंड-कंबोडिया: व्यापारिक धमकियों से मिली शांति?
दोनों देशों के बीच सीमा विवाद और गोलीबारी के बाद ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने संघर्षविराम कराया। अमेरिका ने व्यापार बंद करने की धमकी दी थी। लेकिन कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह युद्ध जैसी स्थिति थी ही नहीं, और यह मामला स्थानीय वार्ता से भी हल हो सकता था।
मिस्र-इथियोपिया: जो संघर्ष कभी हुआ ही नहीं
नील नदी पर बांध को लेकर दोनों देशों में राजनयिक तनाव था, लेकिन ट्रंप इसे “युद्ध” कह रहे हैं। असल में न तो कोई सैन्य संघर्ष हुआ और न ही किसी संघर्षविराम पर हस्ताक्षर हुए। इथियोपिया ने खुद ट्रंप पर युद्ध भड़काने का आरोप लगाया था।
सर्बिया-कोसोवो: आर्थिक समझौता, न कि सैन्य शांति
ट्रंप प्रशासन ने 2020 में दोनों देशों के बीच आर्थिक समझौता कराया था जिसे वॉशिंगटन एग्रीमेंट कहा गया। लेकिन कोसोवो की आज़ादी को सर्बिया आज भी नहीं मानता, और क्षेत्र में तनाव बना हुआ है। इसलिए यह दावा भी अधूरा है।
क्यों बार-बार दोहरा रहे हैं ट्रंप ये दावे?
ट्रंप का कहना है कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार इसलिए नहीं मिलेगा क्योंकि वे लिबरल नहीं हैं। उनका दावा है कि उन्होंने इतना कुछ किया लेकिन उन्हें यह सम्मान नहीं मिलेगा। वह बार-बार कहते हैं कि भारत-पाक, सर्बिया-कोसोवो, इथियोपिया-मिस्र जैसे संघर्ष उन्होंने खत्म कराए, लेकिन ये सारे दावे या तो अधूरे हैं या भ्रामक।
क्या नोबेल पुरस्कार नहीं मिलना असली मुद्दा है?
ट्रंप का तर्क यह है कि उन्होंने जितना शांति के लिए किया है, उतना किसी और ने नहीं किया, लेकिन उन्हें अवॉर्ड इसलिए नहीं मिलेगा क्योंकि “वे उदारवादी नहीं हैं”। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि चाहे वे रूस-यूक्रेन युद्ध रोक दें, या पश्चिम एशिया में स्थिरता लाएं, उन्हें पुरस्कार नहीं मिलेगा। लेकिन सच यह है कि युद्ध को रोकने के लिए सिर्फ बातें या दबाव काफी नहीं होते, स्थायी समाधान की ज़रूरत होती है।
सच्चाई और प्रचार के बीच की लकीर
डोनाल्ड ट्रंप के छह युद्ध रोकने का दावा अगर सतह से देखा जाए तो प्रभावशाली लगता है। लेकिन जब इन दावों की गहराई में जाते हैं, तो ज़्यादातर मामलों में या तो अमेरिका खुद टकराव में शामिल रहा, या फिर वास्तविक युद्ध कभी हुआ ही नहीं। कई मामलों में शांति समझौते अस्थायी रहे और कई में इनकी पुष्टि ही नहीं हो सकी।
यह साफ है कि ट्रंप के ये दावे आंशिक सच्चाई पर आधारित हैं, और चुनावी राजनीति या अंतरराष्ट्रीय छवि सुधारने की रणनीति भी हो सकते हैं। शांति प्रयास करना सराहनीय है, लेकिन इन्हें बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना एक अलग कहानी है, जो अक्सर तथ्यों से मेल नहीं खाती।

