झाबुआ 25 नवंबर 2022। रानापुर विकासखंड के छोटे से गाँव धामनी कुका की रेशमा दीदी स्वरोजगार से सफलता की नींव पर अपनी कहानी लिख रही है। शादी के बाद जब ससुराल में आर्थिक तंगी देखी, तो रेशमा दीदी ने परिवार का हाथ बटाने का निर्णय लिया। अपने संघर्ष कहानी की सुनाते हुए रेशमा दीदी कहती है की मै सिर्फ 15 साल की थी जब मेरी शादी हुई, 10वी की परीक्षा देने के बाद माता पिता ने मेरी शादी कर दी थी। ससुराल में आर्थिक स्थिति ठीक ना होने की कारण में अपने पति के साथ मजदूरी करती थी। मैं एक आम गृहीणी की तरह अपना जीवनयापन कर रही थी, पर में आगे पढ़ना चाहती थी। जब मैंने अपने पति को बताया की मैं अपनी आगे की पढ़ाई फिर से शुरू करना चाहती हु, तो परिवार ने मेरा भरपूर सहयोग किया। मैं पढाई के साथ-साथ मजदूरी भी करती थी। सन 2015 में मध्यप्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के मार्गदर्शन से मैंने लक्ष्मी महिला बचत समूह का गठन किया। पढ़ी लिखी होने के वजह से आजीविका मिशन में मुझे बैंक मित्र के रूप में काम मिला।
आजीविका मिशन से जुड़कर कर जब रेशमा दीदी को समूह की कार्यप्रणाली व् आजीविका मिशन के कार्य करने की रूपरेखा समझ आई तब उन्होंने अपने ही गाँव में 5 समूह गठन किये, रेशमा दीदी चाहती थी की गाँव की सभी गरीब महिलाए समूह से जुड़े, और गाँव का सामाजिक व् आर्थिक विकास हो।
बैंक मित्र के रूप में काम करके रेशमा दीदी की आर्थिक स्थित्ति में कुछ हद तक सुधार आया था, पर वो अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाना चाहती थी रेशमा दीदी ने बताया की एक बार आजीविका मिशन द्वारा मुझे सिलाई प्रशिक्षण की जानकारी दी गई, सिलाई में थोड़ी बहुत रूचि पहले से थी, इसलिए मैंने भी प्रशिक्षण में भाग लिया, आजीविका मिशन द्वारा मुझे 30 दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण हेतु झाबुआ के भवन जाने का अवसर मिला। प्रशिक्षण के दौरान सिलाइ से जुडी बाते मुझे विस्तार पूर्वक समझाई गयी, जैसे मेजरमेंट, सिलाई मशीन एवं अन्य उपकरणों को संचालित करने की आवश्यक जानकारी, एडवांस या इलेक्ट्रॉनिक मशीन का उपयोग किस प्रकार किया जाए, सिलाई मशीन का रखरखाव एवं सिलाई व्यवसाय से जुडी सम्पूर्ण जानकारी दी गई। प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद मुझे प्रमाण पत्र भी दिया गया ।
प्रशिक्षण से प्रभावित होकर रेशमा दीदी सिलाई की दूकान खोलना चाहती थी, लेकिन स्वयं के पास पर्याप्त पूंजी ना होने की वजह से अपना व्यवसाय शुरू नहीं कर पा रही थी। रेशमा दीदी बताती है अपने ग्राम संगठन की बैठक मैंने सभी महिलाओं के साथ प्रशिक्षण का अनुभव साझा किया और सिलाई दूकान खोलने की इच्छा जताई, ग्राम संगठन की सभी महिलाओं ने प्रस्ताव को स्वीकार कर मुझे ग्राम संगठन से ऋण के लिए सहयोग किया,ग्राम संगठन से 15000 रु का ऋण ले कर घर के एक कमरे को मैंने दूकान की तरह इस्तेमाल किया।
रेशमा दीदी की दूकान धीरे धीरे गाँव के आसपास के इलाको में प्रसिद्ध हो गई, त्यौहार के समय रेशमा दीदी की ग्राहकी बढ़ जाती, भगोरिया उत्सव से पूर्व रेशमा दीदी ने पारंपरिक आदिवासी पोशाकें भी बनायीं, सिलाई करके रेशमा दीदी आज प्रतिमाह 8000से 10000 रु तक कमा लेती है । आसपास की कुछ महिलाए भी रेशमा दीदी से सिलाई सीखने आती है।
आत्मनिर्भर होने की दिशा में आजीविका मिशन के योगदान के साथ साथ रेशमा दीदी की द्रढ़ इच्छा शक्ति मेहनत और सीखने की लगन भी है। रेशमा दीदी कहती है कीएक समय था जब में स्वयं मजदुर की तरह काम करके कुछ पैसे जुटा पाती थी आजीविका मिशन के मार्गदर्शन से आज में अपना स्वरोजगार शुरू कर पाई हु, में राणापुर में एक बुटीक खोलना चाहती हु, और अन्य माहिलाओ को भी सिलाई प्रशिक्षण दे कर आत्मनिर्भर बनाना चाहती हु।