कहने को तो जिला अस्पताल के गायनिक विभाग में गर्भवतियों के भर्ती होने के साथ पहले प्रारंभिक जांच फिर उपचार की व्यवस्था है, लेकिन असल में ऐसा कुछ भी नहीं है। गायनिक विभाग की सच्चाई यह है कि यहां भर्ती होने के कई घंटों बाद तक अधिकांश गर्भवतियां दर्द से कराहती रहती हैं, खासतौर पर वो गर्भवतियां जिनके प्रसव में एक-दो दिन समय होता है। वार्ड में इनकी बात कोई नहीं सुनता। लेबररूम से जननी शाखा के बीच गैलरी में गर्भवती महिलाएं लेटी रहती हैं। इस प्रकार के अधिकांश नजारे रात में देखने को मिलते हैं। परिजन पैरामेडिकल स्टाफ से मिन्नत करके थक जाते हैं लेकिन महिलाओं का दर्द किसी को समझ नहीं आता। कुछ लोग तो अस्पताल प्रबंधन से भी शिकायत करते हैं। फिर भी हालात जस के तस रहते हैं।
अनिवार्य रहते हैं ये चेकअप
अस्पताल में भर्ती के साथ ही प्रसूताओं के जिन चेकअप को अनिवार्य किया गया है उनमें ब्लड गुरप, हीमोग्लोबिन, एचआईवी, एचबीएसएमटी, ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर, यूरिन टेस्ट के साथ थायराइड को शामिल किया गया है। इसके अलावा चिकित्सक जरुरत के आधार पर और भी चेकअप करा सकते हैं। अस्पताल सूत्र बताते हैं कि अक्सर महिलाओं को भर्ती कर लिया जाता है, लेकिन जांच कराने में कई दिन लग जाते हैं। जिला अस्पताल में रोज दर्जनों ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें गर्भवतियों को भर्ती के बाद जांच नहीं की जाती। सर्वाधिक घटनाएं ग्रामीण क्षेत्र से आने वाली महिलाओं के साथ होती
गायनिक विभाग का सच आया सामने-आंचलिक ख़बरें-मनीष गर्ग

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