कृत्रिम तरीके से मतस्य उत्पादन के लिए लगा पहला बायोफ्लोक्स संयंत्र-आँचलिक ख़बरें-नजीर आलम

Aanchalik Khabre
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कृत्रिम तरीके से मतस्य उत्पादन के लिए लगा पहला बायोफ्लोक्स संयंत्र, मुख्यमंत्री करेंगे निरीक्षण।
मतस्य उत्पादन के लिए इंडोनेशियन तकनीक से डवलप किया गया बायोफ्लोक्स सिस्टम में बिहार का पहला केंद्र सखुआ गांव बन गया है। जहां मतस्य पालन के लिए 65 हजार लीटर क्षमता वाली बायोफ्लोक्स सिस्टम को संचालित किया जा रहा है। पिपरा प्रखंड के सखुआ गांव में ओम साईं एक्वा फॉर्म के नाम से संचालित इस फार्म में पहले से ही करीब 40 एकड़ में ओपन पोखर के माध्यम से मछली पालन किया जा रहा है। इधर इंडोनेशिया के तकनीक पर विकसित बायोफ्लोक्स सिस्टम से भी मतस्य पालन शुरू कर दी गई है। बताया गया कि 25-25 हजार लीटर के तीन बायोफ्लेक्स सिस्टम के अलावे संस्थान में इस वार बिहार का सबसे बड़ा करीब 65 हजार लीटर का बायोफ्लोक्स सिस्टम बैठाया गया है। इस तरह कुल चार यूनिट बैठाए गए हैं। जिसमें प्रोबाइटिक बेसिलस वैक्टीरिया के द्वारा मतस्य पालन किया जाता है।और इस तकनीक से मछली पालन में जहां कम खर्च आते हैं वहीं चार महीने में ही मछली बाजार में बेचने के लिए तैयार हो जाता है। बताया गया कि आगामी पांच जनवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस प्लांट का निरीक्षण कर सकते हैं इसकी पूरी संभावना व्यक्त की जा रही है क्योंकि पूरे जोडसोर से उक्त स्थल पर जिला प्रशासन के देख रेख में तैयारी की जा रही है।ये तकनीक इंडोनेशिया से सुरु किया गया। जो अब अन्य राज्यों में भी संचालित किए जाने लगे हैं।बताया गया कि इस तकनीक से प्रोबाइटिक बेसिलस नामक वैक्टीरिया को विकसित किया जाता है जिससे मछली का फिड तैयार किया जाता है।बताया गया कि इसमें कुल मछली के वजन का मात्र एक प्रतिशत ही फिड खपत होती है। जबकि सामान्य रूप से पोखर में मछली के उत्पादन के लिए 8 प्रतिशत फिड की आवश्यकता होती है। इस तरह बायोफ्लोक्स सिस्टम से मतस्य उत्पादन में फिड की खपत में भारी कटौती हो जाती है जो बड़े मुनाफे देते हैं।-इंडोनेशिया में ट्रेनिंग ले गुजरात से लाया गया प्लांट-प्लांट के संचालक मुनीन्द्र कुमार ने बताया कि मतस्य पालन के लिए उनके भाई सुनींद्र कश्यप ने इंडोनेशिया में इस तकनिक का प्रशिक्षण लिया है जिसके बाद इस प्लांट को गुजरात से लाया गया। जिसमें करीब दस लाख की लागत लगी है ,अत्याधुनिक सुविधा से लैस इस सिस्टम में मत्स्य पालन के लिए सभी सुविधा है। बताया गया कि मतस्य पालन के लिए पानी का तापमान भी नियंत्रित रखने पड़ता है ठंढ के मौसम में 19 से 21डिग्री सेल्सियस और गर्मी के दिनों में 28 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान पानी का रखना पड़ता है। जिससे मछ्ली पालन में किसी तरह की परेशानी नहीं होती है। खास बात ये है कि सिर्फ चार महीने में इस यूनिट में मछली तैयार हो जाता है जिससे अच्छी आमदनी के साथ समय की भी बचत होती है।

 

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