आत्मोद्धार वर्षावास में दिनांक 10 सितंबर को धर्म सभा में प्रवर्तक पूज्य जिनेंद्र मुनि जी म.,सा. ने कहा कि स्तुति का प्राचीन काल में भी महत्व था तथा वर्तमान समय में भी महत्व रहा है। पहले भी वितरागी , ज्ञानी की स्तुति की जाती थी आज भी की जाती है । व्यक्ति किसी के गुण, विशेषताओं से प्रभावित होकर स्तुति करता है ,प्रशंसा करता है ।स्तुति मौखिक रूप से भी की जाती है । स्तुति प्रत्येक क्षेत्र में की जाती है । घर, परिवार, संघ, समाज, खेल, राजनीति, युद्ध भूमि आदि में श्रेष्ठ कार्य करने पर प्रशंसा की जाती है । पाप के कार्य तथा धर्म के कार्य में भी प्रशंसा की जाती है ।धर्म के कार्य में साधु साध्वी, श्रावक श्राविका ,के गुणों को देखकर उनकी प्रशंसा की जाती है ,उनका गुणगान भी किया जाता है ।प्रशंसा छोटे बच्चे ,युवा, वृद्ध सभी की की जाती है ।कोई विशिष्ट कार्य करता है तो उसकी प्रशंसा की जाती है ।प्रशंसा गुणगान स्थाई भी होती है तथा अस्थाई भी होती है । गुण गान गद्य एवं पद्य दोनों रूप में किया जाता है । महात्मा गांधी के चरित्र को देखकर प्रत्यक्ष तथा साहित्य के माध्यम से उनके प्रशंसकों ने उनकी प्रशंसा की थी ।आप ने आगे कहा कि स्तुति दो प्रकार की होती है लौकिक तथा लोकोत्तर । लोकोत्तर प्रशंसा तीर्थंकर भगवान, ज्ञानी, वितरागी की होती है, लेकिन वह अपनी प्रशंसा से प्रभावित नहीं होते हैं ,तथा निंदा होने पर भी सम भावी होते हैं । लौकिक व्यक्ति की प्रशंसा करने पर वह प्रसन्न होते हैं ।लोकोत्तर की प्रशंसा व्यक्ति स्वार्थ वश भी करता है । लौकिक की प्रशंसा में वास्तविकता कम होती है , अवास्तविकता ज्यादा होती है । व्यक्ति ऐसे लोगों की प्रशंसा बढ़ा चढ़ाकर करते हैं ताकि सामने वाला खुश हो, प्रसन्न होकर उसका कोई काम कर दे ।खुशामदी बनकर ऐसी प्रशंसा की जाती है,। मेरा उसने काम कर दिया तो कृतज्ञता व्यक्त कर गुणगान व्यक्ति करता है । महान आत्मा ने अपने क्या क्या उपकार किए ,उसे याद कर व्यक्ति प्रशंसा करता है ।आपने आगे कहा कि 3 कारणों से स्तुति की जाती है 1, अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए स्तुति प्रशंसा की जाती है। माता, पिता, गुरु, उपकारी देवाधिदेव की स्तुति की जाती है ,वह परम उपकारी हैं। 2, गुणानुराग से आत्म प्रमोद के लिए प्रशंसा करना । आत्म प्रमोद भाव ह्रदय से उपकारी की प्रशंसा स्तुति करना। प्रमोद भाव होता है तो कभी-कभी प्रशंसा करने वाले व्यक्ति भाव विभोर हो जाते हैं, उनकी आंखों में आंसू भी आ जाते हैं । भक्ति वश प्रमोद भाव से वह हर्षित होता है ।3, स्तुति प्रशंसा प्रेरणादायक भाव से करता है। प्रशंसा से अन्य जन समुदाय को प्रेरणा मिलती है, दूसरों में लोकप्रियता बढ़ती है । ऐसी आत्मा प्रभावक होती है ,ऐसी आत्मा स्वयं तो जुड़ती है अन्य को भी जुड़ने की प्रेरणा मिलती है । पूज्य आचार्य भगवंत उमेश मुनि जी महाराज सा. की महावीर जन्म कल्याणक पर दीक्षा दिवस के रूप में मना कर लोग उनकी प्रशंसा करते थे। तब वे कहते थे कि किसने क्या बोला मुझे तो सुनाई ही नहीं देता , वह प्रशंसा से पिघलते नहीं थे। ,उनके गुणों को देखकर कई अजैन भी उनके परम भक्त बन गए थे, उनका संयमी जीवन जबरदस्त प्रभावकारी था। महाव्रत धारी के गुणों की प्रशंसा करने से सम्यक्त निर्मल बनता है ।महा मोहनीय कर्म बंध के 30 कारणों का आचरण करने पर जीव तीर्थंकर नाम कर्म का बंध करता है । वीतरागी, ज्ञानी की प्रशंसा में भक्ति रस में व्यक्ति तल्लीन बन जाता है ।दूसरों को सम्मान देने पर खुद को सम्मान मिलता है । समाज संघ में कई व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो अपने नाम की प्रशंसा, गुणगान नहीं करने पर नाराज होते हैं ।जिस संघ, समाज में गुणों का सम्मान होता है उस संघ, समाज में गुण बढ़ते हैं ।आपने स्तुति के कारण बताते हुए कहा कि आराध्य की स्थिति उनका साक्षात्कार करने के लिए तथा प्रीति पाने के लिए स्तुति करना होती है । मोह तथा आलस्य के कारण जीव के लिए धर्म आराधना करना दुर्लभ है *।पूज्य संयत मुनि जी । धर्म सभा में अणु वत्स पूज्य संयत मुनि जी ने कहा कि गृहवास में गृहस्थ का धर्म करना दुर्लभ है ,उसे सुलभ बनाना चाहिए । गृहस्थ को धर्म कार्य करने से रोकने में मोह बड़ा कारण है । अनेक जगह पर आसक्ति है । घर ,परिवार, मकान में मोह है ।आसक्ति है तो धर्म नहीं कर सकता है। व्यक्ति को घर के कार्य से ही फुर्सत नहीं है तो धर्म कब करेगा,,? श्रावक कहता है कि दुकान पर जाकर माला गिनुगा , गिनते वक्त ग्राहक आ जाए तो माला गिनना रोक देता है । मोह समझ में नहीं आने देता कि क्या करना । व्यक्ति आलस्य के कारण भी धर्म अभी नहीं बाद में कर लूंगा ऐसा कहता है । धर्म सभा में प्रवचन के ठीक समय पर आलस्य के कारण व्यक्ति नहीं आता है । चातुर्मास के 2 माह पूर्ण होने को है ,2 माह शेष हे,सभी अपनी अपनी बैलेंस शीट देखें कि कितना पाया कितना खोया? जीव मुंगेरीलाल के हसीन सपने आलस्य वश देखता रहता है कि धर्म अभी करूंगा । 2 माह शेष बचे हैं इनका लाभ उठा लो।भगवान की वाणी मन लगाकर सुनना चाहिए तो आत्मोद्धार होगा। आज बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाओ ने सिद्ध भक्ति तप शुरू किया। तपस्या के दौर में आज सुधीर रूनवाल ने 30, कुमारी सोनिका बरबेटा ने 25, श्रीमती सीमा व्होरा ने 24, श्रीमती सीमा गांधी ने 18 उपवास के प्रत्याख्यान लिए । संघ में वर्षी तप, धर्म चक्र ,निरंतर एकासन तप की आराधना चल रही है । तेला तथा आयंबिल तप की लड़ी सतत चल रही है । आज धर्म सभा में उज्जैन, मनासा, रतलाम, कुशलगढ़, लिमडी आदि स्थानों के दर्शनार्थी दर्शन हेतु पधारे । श्रीमती निशा बोहरा रतलाम ने सुधीर रूनवाल की तपस्या के उपलक्ष में अपने भाव व्यक्त किए । प्रवचन का संकलन सुभाष चंद्र ललवानी द्वारा किया गया सभा का संचालन प्रदीप रूनवाल ने किया ।