श्रमशीलता सबसे बड़ी डिग्री,रुकमणी दीदी-आंचलिक ख़बरें-भैयालाल धाकड़

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आध्यात्मिक शिक्षा के बिना चरित्र निर्माण असंभव

विदिशा //प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय ए-33 मुखर्जी नगर सेवा केंद्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस पर पुराने हॉस्पिटल के सामने कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें ब्रम्हाकुमारी रुकमणी दीदी ने अपनी प्रेरणा देते हुए कहा कि हमें श्रम से प्रेम होना चाहिए गरीबी का दूसरा कारण है अपव्यय, विलासवृत्ति और नशा। हैसियत से ज्यादा खर्च या तो अपने जीवन स्तर का दिखावा करने,या इंद्रियों की मांग की पूर्ति के लिए किया जा रहा है इसका परिणाम है पल भर आनन्द, मजा और कंगाली के रूप में जीवन भर की सजा कई बार चोरी डकैती प्राकृतिक आपदाओं, धोखा, दंगा आदि के कारण भी संपत्ति का नुकसान हो सकता परंतु ऐसी परिस्थिति में मनोबल का धनी व्यक्ति बहुत जल्दी उबर जाता है। ऐसा कभी- कभार और बहुत कम लोगों के साथ होता है। जैसे भूकंप में सब कुछ खो बैठे लोग सरकारी या सामाजिक मदद पाकर, अपने मनोबल के बलबूते से पुनः उठ खड़े होते हैं परंतु कर्महीनता और अपव्यय के शिकार सहायता पाकर और ही अधिक निकम्मे और बिलासी हो जाते हैं,श्रम से प्रेम कीजिए श्रमिक को ऊंची दृष्टि से देखिए, कमर्ठ बनिए।कर्म का सम्मान कीजिए, कर्म ही भाग्य का निर्माता है दीदी ने अमेरिका का उदाहरण देते हुए कहा कि एक बार स्वामी सत्यदेव अमेरिका के सिएटेल नगर में घूम रहे थे। एक लड़का अखबार बेच रहा था स्वामी जी ने उसकी वेशभूषा देखकर कहा तुम तो किसी संपन्न घर से लगते हो फिर अखबार क्यों बेच रहे हो लड़के ने कहा श्रीमान जी मेरे घर वाले संपन्न है तो क्या इसका मतलब यह है कि मुझे परिश्रम नहीं करना चाहिए। WhatsApp Image 2022 05 02 at 1.48.30 PMमैंने अपने हाथों से कमाकर 50 डालर बैंक में जमा किए हैं। स्वामी जी को अमेरिका की समृद्धि का राज समझ में आ गया श्रमशीलता बड़े से बड़ी डिग्री है इससे बड़ी डिग्री कोई नहीं होती है, हम अमीरजादे हैं तो भी हमें श्रमशील बनना चाहिए मशीनों का उपयोग इंसान के लिए होना चाहिए ना की इंसान मशीनों के लिए वर्तमान में लोगों के अंदर चरित्र की गरीबी सबसे ज्यादा देखी जा रही है कामचोरी और अपव्यय का कारण चारित्रिक गरीबी है चाहे वह व्यापारी हो या कर्मचारी मिल मालिक हो या मजदूर वैज्ञानिकों व शिक्षक सभी कम दो और अधिक लो अथवा जिम्मेदारी कम और अधिकार आदि की उल्टी नीति पर अमल करने को अपने स्वार्थ के हित में समझते हैं दिनों दिन अच्छे और उपयोगी धंधे ठप अथवा फालतू एवं छोटे धंधे चालू होते जा रहे हैं। जिस समाज में सभी लेवता बन जावे वहां देवता कौन बचेगा कौन नहीं जानता कि आज चारित्रिक पतन और भ्रष्टाचार अपने चरम सीमा तक पहुंच गया है चारित्रिक पतन की जड़ काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार यह पांच मनोविकार ही हैं विकारों की उत्पत्ति देहाभिमान से होती है जिसको दूर करने का एकमात्र उपाय है आध्यात्मिक शिक्षा। आध्यात्मिक शिक्षा के बिना चरित्र निर्माण असंभव है चरित्र निर्माण के बिना राष्ट्र निर्माण अथवा गरीबी हटाना संभव नहीं है। डॉ रमेश सोनकर, दीपक लोदी, मनोज, रतिराम, अनुराग, आदि कार्यक्रम का लाभ अधिक संख्या में श्रमिक लोगों ने लिया।

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