आओ चलें प्राकृतिक खेती की ओर – जिला मुख्यालय पर प्राकृतिक खेती परामर्ष केन्द्र की स्थापना-आंचलिक ख़बरें- राजेंद्र राठौर ’’

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‘‘ जीवांमृत, बीजांमृत, घनजीवांमृत, नीमास्त्र, ब्रम्हास्त्र निर्माण की जानकारी प्राकृतिक खेती परामर्ष केन्द्र के माध्यम से कृषकों को दी जावेगी ’’
‘‘ प्राकृतिक खेती की जानकारी आमजन के लिये सुलभ – जिला मुख्यालय पर परामर्ष केन्द्र स्थापित ’’

झाबुआ, 27 मई, 2022। प्रकृतिजन्य कृषिगत संसाधनों के बेहतर समन्वय और युक्तीयुक्त दोहन से न केवल खेती किसानी में लागत को कम किया जा सकता है, बल्कि गुणवत्तायुक्त खाद्यान्न उत्पादन के साथ-साथ बेहतर आय भी श्रृजित की जा सकती है। प्रकृति के निकट रहने वाले झाबुआ जिले के किसानों को प्राकृतिक खेती के सैद्धांतिक और व्यावहारिक पक्ष की बेहतर समझ विकसित करते हुऐ जमीन पर उतारने की भरपूर संभावनाऐं है। प्राकृतिक खेती अपनाने से न केवल खेती किसानी की लागत नियंत्रित होकर गुणवत्तायुक्त पोष्टीक आहार का उत्पादन किया जा सकता है बल्कि पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण की दिषा में एक ठोस पहल भी की जा सकती है। हवा तथा जल स्त्रोतों की गुणवत्ता में कमी के साथ-साथ पर्यावरण प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण आयाम मिट्टी में घातक रसायनों का जमा होकर मृदा प्रदूषण भी है। मृदा के रासायनिक और भौतिक स्वास्थ्य संर्वधन के माध्यम से पर्यावरण प्रदूषण रोकने की दिषा में एक सार्थक प्रयास किये जा सकते है। प्राकृतिक खेती के बहुआयामी फायदां के मद्देनजर जिले के किसानों को प्रचलित खेती पद्धति के स्थान पर प्राकृतिक खेती की ओर रूझान विकसीत करने का समय आ गया है। झाबुआ जिले के कलेक्टर सोमेष मिश्रा द्वारा जिले में प्राकृतिक खेती के संदेष को दूरस्थ अंचलों तक पहुंचाने के निर्देष दिये गये है। प्राकृतिक खेती के सैंद्धातिंक और व्यवहारिक ज्ञान को किसानों और आमजन के लिये सुलभ कराने के उद्देष्य से जिला मुख्यालय पर परामर्ष केन्द्र की स्थापना के लिये प्रदत्त निर्देषों के अनुक्रम में कृषि परिसर झाबुआ स्थित मिट्टी परीक्षण प्रयोगषाला के पास परामर्ष केन्द्र व्यावहारिक स्वरूप ले चुका है।
जिले में प्राकृतिक खेती पद्धति को सुनियोजित ढंग से अपनाने और बढावा देने के लिये जिला मुख्यालय कृषि परिसर में प्राकृतिक खेती परामर्ष केन्द्र स्थापित किया गया है। इस केन्द्र पर प्राकृतिक खेती के आधारभूत अवयवों – गोबर, गौ-मूत्र, गुड़, बेसन, चूना, सजीव मिट्टी के साथ-साथ नीम, करंज, धतुरा, सीताफल, पपीता, अरण्डी, अमरूद इत्यादि पत्तीयों के संयोजन से जीवांमृत, बीजांमृत, घनजीवांमृत, नीमास्त्र, ब्रम्हास्त्र का सजीव ढंग से निर्माण करने के लिये प्रादर्ष यूनिट तैयार की गई है।
प्राकृतिक खेती अपनाने के लिये किसान को महंगे आदानो की आवष्यकता नही रहती है। मात्र एक से दो देषी गाय गोबर और गौं मूत्र के साथ खेतों की मेढ़ो पर उगने वाली वनस्पति के युक्तियुक्त संयोजन से प्राकृतिक खेती को अमलीजामा पहनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त लगने वाले आदान एक आम व्यक्ति के घरों में उपलब्ध होने वाली सामग्री से सुलभ हो जाते है। प्राकृतिक खेती के माध्यम से खेती किसानी में उत्पन्न होने वाले जैव अवषिष्टों का बेहतर पुर्नचक्रीकरण भी किया जा सकता है। कलेक्टर सोमेष मिश्रा द्वारा जिले के किसानो से प्राकृतिक खेती की ओर अपना रूझान बढाने के साथ-साथ कार्यरूप में परिणीत करने का आव्हान किया।
प्राकृतिक खेती करने के इच्छुक कृषक जिला मुख्यालय पर स्थापित प्राकृतिक खेती के परामर्ष केन्द्र का अवलोकन कर जीवांमृत, बीजांमृत, घनजीवांमृत, नीमास्त्र, ब्रम्हास्त्र इत्यादि के संबध में जानकारी प्राप्त कर सकते है। परामर्ष केन्द्र के प्रभारी एस.एस.रावत सहायक संचालक कृषि को नियुक्त किया गया है। परामर्ष केन्द्र पर रावत के साथ-साथ सहायक संचालक एस.एस.मोर्य तथा एम.एस.धार्वे के अतिरिक्त अपने क्षेत्र के अनुविभागीय कृषि अधिकारी, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी और मैदानी स्तर के कृषिगत विभागीय अमले से भी सम्पर्क कर सकते है।

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