ई रिक्शा समस्या: विकास की राह में एक अनियंत्रित मोड़

Aanchalik Khabre
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Erikshaw

भूमिका:

भारत में बीते एक दशक में परिवहन के क्षेत्र में जो सबसे बड़ा बदलाव देखा गया है, वह है ई रिक्शा समस्या का तेजी से उभरना। एक ओर यह सस्ता, पर्यावरण हितैषी और रोजगार सृजन वाला विकल्प माना जा रहा है, तो दूसरी ओर इसके अराजक संचालन ने ट्रैफिक व्यवस्था, पैदल चलने वालों की सुरक्षा और शहरी योजनाओं को बड़ा झटका दिया है। आज ई रिक्शा समस्या केवल परिवहन से जुड़ी नहीं रही, यह शहरी जीवनशैली की असुविधा का प्रतीक बन चुकी है।

 

भारत में ई रिक्शा की शुरुआत:

भारत में ई रिक्शा समस्या की जड़ें वर्ष 2010 के बाद के वर्षों में देखी जा सकती हैं। जब डीजल और पेट्रोल की कीमतें तेजी से बढ़ रही थीं और ऑटो-रिक्शा की मनमानी से लोग परेशान थे, तब ई-रिक्शा ने एक सस्ता और सुलभ विकल्प बनकर उभरना शुरू किया। खासकर दिल्ली, लखनऊ, पटना, कोलकाता, बनारस जैसे शहरों में यह बदलाव साफ देखा गया।

सरकार ने भी शुरुआत में इसे बढ़ावा दिया — रोजगार को देखते हुए इसे “हर गरीब का रोजगार” कहा गया। लेकिन जब इनकी संख्या हजारों में पहुंच गई, तब ई रिक्शा समस्या का असली रूप सामने आने लगा।

 

ई रिक्शा और ट्रैफिक जाम: दिन-ब-दिन बढ़ती अव्यवस्था:

ई रिक्शा और ट्रैफिक जाम अब जैसे एक-दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। प्रमुख बाजारों, स्कूलों के बाहर, अस्पतालों के पास और रेलवे स्टेशनों पर ई रिक्शाओं की कतारें रोजमर्रा की परेशानी बन चुकी हैं। ये चालक अक्सर बिना किसी तय स्टॉप के रुक जाते हैं, सवारी उतारते हैं, बीच सड़क खड़े हो जाते हैं, जिससे सड़क पर ट्रैफिक रेंगने लगता है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि शहरी यातायात की समस्याओं का एक बड़ा कारण अनियंत्रित ई रिक्शा भी हैं। कई बार तो इनके चलते एंबुलेंस तक को जाम में फंसते देखा गया है। यह ई रिक्शा समस्या न केवल आमजन की सहूलियत को प्रभावित करती है, बल्कि आपातकालीन सेवाओं को भी चुनौती देती है।

 

ई रिक्शा के नुकसान: फायदे के पीछे छिपी चुनौतियाँ:

हालांकि ई रिक्शा को पर्यावरण के लिहाज से बेहतर कहा जाता है, लेकिन इसके कई नकारात्मक पहलू हैं जिन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता:

  1. अनियंत्रित लाइसेंसिंग: अधिकांश ई रिक्शा चालकों के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं होता। ऐसे में सड़क पर उनका व्यवहार और ड्राइविंग अनियंत्रित और खतरनाक हो जाता है।
  2. शक्ति से अधिक लोडिंग: कई ई रिक्शा चालक क्षमता से अधिक सवारियां बैठाते हैं, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है।
  3. अत्यधिक चार्जिंग पॉइंट्स की कमी: बैटरी से चलने वाले इन वाहनों को चार्ज करने के लिए समुचित व्यवस्था नहीं है, जिससे कई बार अवैध विद्युत कनेक्शन से चार्जिंग की जाती है, जो खतरनाक हो सकता है।
  4. ट्रैफिक नियमों की अनदेखी: ज़ेब्रा क्रॉसिंग, सिग्नल, और लेन ड्राइविंग जैसे ट्रैफिक नियमों की अक्सर अनदेखी की जाती है, जिससे ई रिक्शा समस्या और गंभीर हो जाती है।

 

ई रिक्शा अराजकता: शहरी प्रबंधन की विफलता:

जब बात ई रिक्शा अराजकता की होती है, तो वह केवल चालक की गलती नहीं होती — यह एक समूची व्यवस्था की असफलता को दर्शाता है। नगर निगमों, ट्रैफिक पुलिस, और शहरी विकास प्राधिकरणों की लचर नीति और अनुपालन की कमी से यह अराजकता जन्म लेती है।

कई शहरों में कोई स्पष्ट रूट मैप या स्टैंड तय नहीं है, जिससे ई रिक्शा वाले मनमाने ढंग से चलाते हैं। यही वजह है कि ई रिक्शा समस्या केवल ट्रैफिक तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यह योजनागत विफलता का एक केस स्टडी भी बन गई है।

 

सडकों पर अराजकता फैलाते ई-रिक्शा

         (राकेश अचल)

देश के अमूमन हर शहर में ई-रिक्शा ग्रीन परिवहन के नाम पर उतारे गये थे। ये ई रिक्शे उन लोगों को थमाए गये थे जो या तो तांगा, इक्का चलाते थे या हाथ रिक्शा। खटारा और धुआं उगलने वाले टेंपो का विकल्प भी समझे गये थे ये ई रिक्शे। बेआवाज ये ई रिक्शे शुरू में तो सभी को अच्छे लगे लेकिन अब यही ई रिक्शे देश के घरेलू परिवहन के लिए अराजक हो गये हैं।

पर्यावरण हितैषी परिवहन के नाम पर  प्रयोग में लाए जा रहे ये ई रिक्शे  यातायात को बद से बदतर बना रहे हैं। इनका न ढंग से पंजीयन हुआ, न चालकों का प्रशिक्षण, न इनके लिए स्टापेज बने और न मार्गों का निर्धारण किया गया, फलस्वरुप इन ई रिक्शा वालों को जहां सवारी ने हाथ दिया, वहीं रिक्शा रोक दिया, चाहे पीछे से आ रहे वाहन चालक दुर्घटना का शिकार हो जाएं। महानगरों और छोटे शहरों से लेकर कस्बों तक भले ही दो पहिया वाहन चलाने की जगह न हो, लेकिन इन्हें अपनी जगह पर वाहन खड़े करने की आजादी है।  ये न यातायात के नियम जानते हैं न इनके चालकों के पास कोई नागरिकता बोध है। भले ही चाहे इनके कारण वाहनों की कतार लग जाए।

लगभग हर शहर में प्रशासन ने इन पर सख्ती कर ई रिक्शों के लिए  रूट तय किए, रंग लगाकर पहचान देने की भी कोशिश  की। ई रिक्शों को पालियों में भी चलवाने का प्रयास किया, लेकिन सब अकारथ गया। ई रिक्शा संचालकों के विरोध के बाद ये तमाम सख्ती हवा हो गई। इतना ही नहीं प्रशासन, यातायात पुलिस व आरटीओ भी इनके आगे बेबस साबित हो रहे हैं । अब सुविधा और पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए लाये गये ये ई रिक्शे सिरदर्द बन गये हैं और खामियाजा आम जनता भुगत रही है।

भारत में ई-रिक्शा की संख्या लाखों में हो सकती है, जिसमें पंजीकृत और गैर पंजीकृत दोनों शामिल हैं। 2022-23 तक के आंकड़ों के आधार पर, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि कम से कम 3 लाख पंजीकृत ई-रिक्शा हैं, और गैर-पंजीकृत ई-रिक्शा की संख्या  कहीं अधिक हो सकती है। बीते दो वर्षों में तो इनकी संख्या अनुमान से भी कहीं अधिक बढ़ चुकी है।

शहरों में पिछले कई वर्षों से वन-वे घोषित मार्गों पर ई-रिक्शा वाले बिना रोक टोक, बेधड़क  दौड़ते हैं। यातायात पुलिस एवं पुलिस खड़ी रहती हैं। जहां पहले तांगों, टेम्पो के कारण आम लोगों को परेशानी होती थी, अब इसकी जगह ई-रिक्शा ने ले ली है। हर शहर में ई-रिक्शा के अघोषित अस्थायी स्टैंड बन गये है। इससे बार-बार ट्रैफिक जाम होता रहता है। पैदल निकलने तक की जगह नहीं रहती है। ई रिक्शा वाले परम स्वतंत्र हैं। जहां से इच्छा हुई, वहीं से सवारी बैठा ली। कोई रोकने वाला नहीं है। रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, घनी आबादी वाले क्षेत्र इनके अड्डे बनते जा रहे है।

सवाल ये है कि इन ई रिक्शा चालकों की अराजकता का इलाज क्या है? मैंने दुनिया के अनेक गरीब, अमीर देश देखे हैं लेकिन वहाँ ई रिक्शा यदि हैं भी तो अराजक नहीं हैं। वे नियमों का पालन करते हैं, सभ्य हैं और उनमें भरपूर नागरिकता बोध भी है, लेकिन भारत में तो ई रिक्शा समस्या का दूसरा नाम बन गये हैं।  मुझे तो ई रिक्शा की धींगामुश्ती देखकर अपने पारंपरिक तांगे वाले ज्यादा बेहतर लगते हैं।  हकीकत ये है कि ई रिक्शों की बाढ़ से पर्यावरण सुधरने के बजाय तेजी से बिगड़ रहा है। पर्यावरण के लिए ई रिक्शों का ई कचरा भी आने वाले दिनों में एक गंभीर समस्या होने वाला है, इसलिए इनका  हल खोजा जाना चाहिए।

 

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव:

ई रिक्शा ने निश्चित रूप से बेरोजगार युवाओं और ग्रामीण प्रवासियों को एक नई दिशा दी है। इससे लाखों लोगों की जीविका जुड़ी हुई है। लेकिन ई रिक्शा समस्या का एक अन्य पहलू यह भी है कि यह पारंपरिक रिक्शा चालकों और ऑटो-ड्राइवर्स के लिए एक अनफेयर कंपटीशन बन गया है। बिना किसी सरकारी टैक्स या फिटनेस मापदंडों को पूरा किए ये सड़कों पर दौड़ते हैं, जिससे अन्य ड्राइवर्स में नाराजगी भी देखी जाती है।

 

समाधान की संभावनाएं:

ई रिक्शा समस्या को सुलझाने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है:

  1. नियमित पंजीकरण और लाइसेंसिंग: बिना वैध लाइसेंस या पंजीकरण वाले ई रिक्शा को जब्त करने की व्यवस्था होनी चाहिए।
  2. निर्धारित रूट और स्टैंड: शहरों में इनके लिए विशेष लेन, स्टैंड और रूट बनाए जाएं।
  3. ड्राइवर प्रशिक्षण: ई रिक्शा चालकों के लिए न्यूनतम ट्रेनिंग अनिवार्य की जाए।
  4. चार्जिंग स्टेशन: सुरक्षित और सरकारी स्तर पर अधिकृत चार्जिंग स्टेशन की स्थापना जरूरी है।
  5. सख्त ट्रैफिक नियम पालन: ट्रैफिक पुलिस को ई रिक्शा के संचालन पर विशेष निगरानी रखनी चाहिए।

 

निष्कर्ष:

ई रिक्शा के आगमन ने भारतीय परिवहन में एक सस्ती और सरल क्रांति की शुरुआत की थी, लेकिन अब यह ई रिक्शा समस्या बन चुकी है, जिसे यदि समय रहते नहीं संभाला गया तो यह ट्रैफिक, पर्यावरण, और सामाजिक संतुलन के लिए एक गंभीर खतरा बन सकती है।

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ई रिक्शा समस्या अब सरकार, नगर निगमों और आम जनता — सभी के समन्वित प्रयास की मांग कर रही है। अगर सही दिशा में नीतियां बनाई जाएं और उनका कड़ाई से पालन हो, तो यह समस्या समाधान की ओर जा सकती है।

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