रेलवे की “ट्रैक बिजलीगृह” पहल: पटरियों के बीच बिजली बनाने की नई राह

Aanchalik Khabre
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Railway special

वाराणसी में शुरू हुआ पहला प्रयोग, सोलर ऊर्जा से बिजली, ट्रेन भी चलेगी और पर्यावरण भी चमकेगा

नया प्रयोग क्या है?

वाराणसी के बनारस लोकोमोटिव वर्क्स (BLW) में 70 मीटर लंबे रेल ट्रैक पर पटरियों के बीच 28 सोलर पैनल लगाए गए हैं। यह प्रयोग भारतीय रेलवे का पहला रिमूवेबल सोलर पैलेट सिस्टम है, जिससे बिजली उत्पादन किया जा रहा है। प्रत्येक पैनल की क्षमता मिलाकर कुल 15 किलोवाट पीक बिजली उत्पन्न होती है, जो रेल इंजन और कारखाने की अन्य गतिविधियों में उपयोग की जाएगी।

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क्यों खास है यह नवाचार?

A.खाली ट्रैक स्पेस का उपयोग
पटरियों के बीच का इस्तेमाल करने से नई जमीन की आवश्यकता नहीं पड़ी — यह रेलवे की ज़मीन को अधिक कुशलता से उपयोग में लाने जैसा है।

B.सॉवर ऊर्जा + लोकोमोटिव पावर का मेल
शुरुआती बिजली उत्पादन इंजन टेस्टिंग, कार्यशाला ऊर्जा और अन्य संचालन में इस्तेमाल होगा; भविष्य में इससे ट्रेनों को सीधे ऊर्जा देने की सम्भावना भी है।

C.प्रयुक्त तकनीक
पैनल को टिकाए गए हैं—रबर पैड्स से कंपनों को कम करते हुए और एपॉक्सी चिपकाने से मजबूत पकड़ सुनिश्चित करते हुए। जब ट्रैक का रखरखाव हो, तो उन्हें आसानी से हटाया जा सकता है।

D.ऊर्जा उत्पादन क्षमता
अनुमानित उत्पादन दर: 220 किलोवाट पीक प्रति किमी, और 880 यूनिट प्रति किमी प्रतिदिन। यदि इस तकनीक को नेटवर्क पर फैलाया गया तो 3.2–3.5 लाख यूनिट प्रति किमी प्रति वर्ष तक उत्पादन संभव है।

स्विट्जरलैंड समेत अन्य देशों में भी हो रहा है समान प्रयोग

स्विट्जरलैंड में Sun‑Ways नामक स्टार्ट‑अप ने ट्रैक के बीच रिमूवेबल सोलर पैनल सिस्टम का प्रयोग शुरू किया है। यह तकनीक पटरियों पर ट्रेन चलने में बाधा नहीं डालती क्योंकि इसकी डिजाइन पूरी तरह से हटाने-योग्य है।
यहाँ 100 मीटर ट्रैक पर 48 पैनल लगे हैं, और इसे अगले तीन सालों में परीक्षण चरण में व्यापक रूप से लागू किया जा रहा है।

हालांकि, कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया कि स्विट्जरलैंड में सुरक्षा चिंताओं और रखरखाव के कारण इस तकनीक को शुरू में रोक दिया गया था।

भविष्य की संभावनाएँ और समृद्धि

A.भारतीय रेलवे की नज़र: पूरे नेटवर्क में इसे लागू करने की योजना—1.2 लाख किलोमीटर ट्रैक नेटवर्क में पर्याप्त क्षमता है।

B.सतत ऊर्जा और नेट‑जीरो लक्ष्य: यह पहल रेलवे के 2030 तक नेट‑जीरो लक्ष्यों को सीधी गति देने वाला कदम है।

C.भारतीय इन्नोवेशन: यह पूरी तरह से स्थानीय इंजीनियरिंग और डिज़ाइन पर आधारित है—जो देश में तकनीकी आत्मनिर्भरता की मिसाल है।

थाम लो ट्रेन पर चलने वाली सूरज‑बिजली!

वाराणसी में रेलवे की यह पहल सिर्फ एक तकनीकी प्रयोग नहीं, बल्कि एक आशा की किरण है। जमीन की कमी, खर्च और बिजली की चुनौतियों को ट्रेन की पटरियां चिराग बनकर हल कर रही हैं—एक sustainable और स्वच्छ भविष्य की ओर बढ़ने की दिशा में। यदि इसे सही दिशा और नियमों से विस्तारित किया गया, तो भारत के रेल और ऊर्जा भविष्य दोनों ही नई उड़ान भर सकते हैं।

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