भारत की सामाजिक एवं आर्थिक शक्ति को मज़बूत करने में योगदान देकर संस्कृति, शिल्प, कला, स्वास्थ्य, सुरक्षा और विपणन की दृष्टि देनेवाली विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों के इतिहास का पुनर्लेखन और पुनर्समीक्षा करने की आवश्यकता है। यह विचार महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने व्यक्त किए। प्रो. शुक्ल ‘विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियाँ : भारत की आर्थिक शक्ति’ विषय पर तरंगाधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए संबोधित कर रहे थे। सामाजिक नीति अनुसंधान प्रकोष्ठ द्वारा सोमवार (30 अगस्त) को आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में भारत सरकार के डीडब्ल्यूबीडीएनसी के अध्यक्ष भीकू रामजी इदाते, विशिष्ट अतिथि के रूप में राज्यसभा सांसद पद्मश्री डॉ. विकास महात्मे एवं वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता दुर्गादास ने अपने विचार व्यक्त किए।
कुलपति प्रो. शुक्ल ने कहा कि भारत की विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों में व्यापार एवं उत्पादन को गतिशील बनाकर भारत को व्यापार के लिए आकर्षण का केंद्र बना दिया था। आज उनकी पहचान का प्रश्न हमारे सामने खड़ा है। उन्हें अपनी पहचान और सम्मान वापस मिलना चाहिए। देश की शोषण मुक्त आर्थिक व्यवस्था एवं विपणन प्रणाली फिर से विकसित करने के लिए अकादमिक दृष्टि से कार्य करने की आवश्यकता जताते हुए उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय इस दिशा में कार्य कर रहा है। उन्होंने विश्वास जताया कि विदर्भ के क्षेत्र में इन जनजातियों के बीच जाकर, उनसे संवाद कर सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था के पुनर्निर्माण की दिशा में विश्वविद्यालय सार्थक प्रयास करेगा
भारत सरकार के डीडब्ल्यूबीडीएनसी के अध्यक्ष भीकू रामजी इदाते ने कहा कि विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियाँ स्वातंत्र्य सैनिक एवं संस्कृति रक्षक हैं। हमारी संस्कृति को जीवित रखने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इन जनजातियों को हमें मुख्य धारा में लाना होगा। इस दिशा में भारत सरकार द्वारा किए जा रहे विभिन्न प्रयासों की जानकारी उन्होंने दी। उन्होंने कहा कि मंदिर, मूर्तियां, किले बनाने और लोककला, शिल्पकला, धातुकला के क्षेत्र में उनके कौशल को सामने लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इदाते आयोग के सुझाव पर भारत सरकार ने इन जनजातियों के लिए स्पर्धा परीक्षाओं की तैयारी के साथ-साथ खेल और स्त्री सक्षक्तिकरण के लिए भी महत्वपूर्ण प्रावधान किए हैं।
राज्यसभा सांसद पद्मश्री डॉ. विकास महात्मे ने कहा कि विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों को उचित शिक्षा और स्वास्थ सुविधाएं मुहैया करानी चाहिए । उन्हें स्थायित्व प्रदान कर व्यवसाय भी देना चाहिए। डॉ. महात्मे ने जनजातियों के विकास के लिए आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा देने पर बल दिया ।
वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता दुर्गादास ने बंजारा समाज का उदाहरण देकर कहा कि यह समाज मुगल काल में अनाज की आपूर्ति किया करता था। जनजातियों ने भारत के बाहर उत्पादन एवं व्यापार के माध्यम से समाज की सेवा की है। उनके कौशल को पुनर्जीवित कर उन्हें प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्ठाता एवं महात्मा गांधी फ्यूजी गुरूजी सामाजिक कार्य अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रो. मनोज कुमार ने किया। सामाजिक नीति अनुसंधान प्रकोष्ठ के संयोजक तथा महात्मा गांधी फ्यूजी गुरूजी सामाजिक कार्य अध्ययन केंद्र के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ. के. बालराजु ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी । संचालन शिक्षा विद्यापीठ की सहायक प्रोफेसर डॉ. शिल्पी कुमारी ने किया तथा महात्मा गांधी फ्यूजी गुरूजी सामाजिक कार्य अध्ययन केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ. मिथिलेश कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।