अब एमपी यूपी का इतिहास पत्रकारों की लाशों में नहीं लिखने देंगे-आंचलिक ख़बरें-ननकू यादव

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पत्रकारों पर हमले और हत्या में आरोपियों पर कड़ी कार्यवाही न होना उकसाने जैसा है सच तो ये है कि उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश में “विज्ञापन लो और चुप रहो, हमारे खिलाफ मत बोलो नहीं तो हम तोड़कर रख देंगे ” ये पत्रकार जगत के लिए बड़ी शर्मनाक बात है कि पहले शाहजहाँपुर के जगेंद्र सिंह को जिन्दा जला कर मार दिया गया। फिर कानपुर में पत्रकार दीपक मिश्रा को पांच गोलियां मारी गयीं। कानपुर के अमर स्तंभ के रिपोर्टर यादव को रात 2:00 बजे कार के अंदर मार दिया गया जालौन में दो पत्रकारों, लखनऊ के कैनविज टाइम्स के पत्रकार अमित सिंह को सपा के छुटभैये नेताओं ने वाहन चढ़ाकर मारने का प्रयास किया। इन घटनाओं से साफ़ जाहिर होता है कि अगर पहली घटना में सरकार तुरंत कार्यवाही करती तो इन घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होती। पहली घटना में आरोपी मंत्री और पुलिस कर्मियों पर प्रभावी कार्यवाही न होने से माफिया के हौसले और बढ़ गए और उन्होंने एक और पत्रकार को निशाना बना दिया। अभी तक जगेंद्र की तरह दीपक मिश्रा के हमलावर भी गिरफ्तार नहीं हुए। इससे साफ़ दिखाई दे रहा है कि आने वाले समय में मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश का इतिहास पत्रकारों की लाशों पर लिखा जाएगा। मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार, घोटाले, कानून व्यवस्था की मैली तस्वीर और पुलिस, नेता, माफिया के खतरनाक गठजोड़ ने कलम के सिपाहियों को दहशत में डाल दिया है। पत्रकार भले ही कितना ईमानदार, निस्पक्ष व सिद्धांत वादी हो, मगर राजनेता उसकी ईमानदारी, सिद्धांतवादी नीति व निस्पक्षता के स्पैलिंग ही बदल कर रक् देते हैं। ये कैसी विडम्बना है जो खुद को पत्रकार साबित करने के लिए अपनी जान की कुर्बानी देनी पड़ती है L राजनेता कैसे दिखते हैं, क्या करते हैं और उनका असली चेहरा कैसा है, उनकी हर पोल पत्रकार जानते हैं और राजनेता भी जानते हैं कि वह अपनी छवि व कार्यप्रणाली कैसे जनता की नजरों में बनाये रखना हैं। इसलिए पत्रकारों को अपने पक्ष में करना उनकी राजनीतिक विवशता होती है और जो पत्रकार उनका विरोध करता है तो उसे जान से हाँथ धोना पड़ता हैl एक समय था जब सत्ता की गलतियों को पकड़ना पत्रकारिता की पहचान माना जाता था। जो पत्रकार जितना तेज-तर्रार और तेवर वाला होता था, उतना ही उसे बड़ा और गंभीर माना जाता था। लेकिन आज मान्यताएं बदल चुकी हैं। आज पत्रकार का मतलब है कि वह अपनी आम लोगों के प्रति पक्षधरता को कितनी जल्दी तोड़कर नौकरी करने और नौकरी बचाने की मानसिकता से खुद को जोड़ कर इस व्यवस्था का खुद को अंग बना लेता है। आज के माहौल में जिस पत्रकार ने तेवर दिखाए या आम लोगों के अधिकारों की बात की, उसकी नौकरी छीन ली गई। या फिर जलाकर मार दिया गया, फिर जब कलम ही छीन लिया गया तो पत्रकारिता कैसे बचेगी L इतना सब देखने सुनने के बाद सीधी और साफ़ बात ये नजर आती है कि आने वाले समय में भ्रष्ट विधायक सांसदों की छुट्टी हो जाएगी उसमें मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका रहेगी. उससे सचेत होकर और नई नीति अपनाकर जिस तरीक़े से मीडिया मैनेजमेंट किया जा रहा है ये मीडिया की आज़ादी के लिए बहुत बड़ा ख़तरा हो गया है. जो पत्रकार खुलासे का काम करता है, जो राजनीतिज्ञों के भ्रष्टाचार के खुलासे करता है और जो राजनीतिक और आतंरिक नीतियों का पर्दाफाश करता है आज उसका अस्तित्व खतरे में है L ये विचारणीय है कि मीडिया का एक हिस्सा आर्थिक और सामाजिक दबावों की वजह से सरकार के साथ भी हो गया है और जो विद्रोही पत्रकार है उन पर चुन-चुन कर हमला हो रहा हैl हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अपने देश की अखबारी पत्रकारिता आजादी के आंदोलन की कोख से निकली और क्रांतिकारी वक्त में पली बढ़ी है। जाहिर है, उसके आदेशों और क्रांति की तपिश पर ही आगे बढ़कर ये यहां तक पहुंची है। आज के हालातों को देखते हुए घटनास्थल पर जाने वाला पत्रकार यह सोचकर नही निकलता कि वह वापस लौटेगा भी या नही, अपितु उसे अपना लक्ष्य दिखाई देता हैl भारत के सुधि जनों को लोकतंत्र के चौथे खम्बे पर बहुत गंभीर चिंतन की दरकार हैl इन हालातों में अगर हर पत्रकार ये ठान ले कि “अब यूपी एमपी का इतिहास पत्रकारों की लाशों पर नहीं लिखने देंगे, हर पत्रकार अब जगेंद्र बनेगा” तो क्या मजाल इन सत्त्धारियों की कि इनकी आँख भी हमारी तरफ उठे L आज मीडिया और राजनीति में गहरा रिश्ता है, जिसे हमें समझने की जरूरत है। आज शेयर बाजार, सट्टा और सर्वे कई गलत तस्वीरें समाज के सामने प्रस्तुत करते हैं, जिससे समाज प्रभावित होता है। ये सत्य है कि हिन्दुस्तान तभी आगे बढ़ेगा जब लोगों में सामाजिक न्याय के लिए भूख पैदा होगी। पत्रकारिता का यह दायित्व है कि लोगों में सामाजिक चेतना की भूख पैदा करे। पत्रकारिता, राजनीति और देश आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। पत्रकारिता देश हित में होनी चाहिए L निष्पक्ष होकर पत्रकार को अपनी कलम चलानी चाहिए। किसी पार्टी विशेष से जुड़कर लिखेंगे तो उस लेखन में वह धार नहीं होगी। किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर लेखन करना भी ठीक नहीं।

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