उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में इन दिनों बाढ़ का खतरा सिर पर मंडरा रहा है। गंगा नदी का बढ़ता जलस्तर अब केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि एक भयावह सच्चाई बन चुका है जो गांवों, खेतों, घरों और इंसानी जीवन को निगलने की ओर बढ़ रहा है। बीते कुछ दिनों से प्रदेश के बदायूं जिले समेत आसपास के कई इलाके इस आपदा की चपेट में आ चुके हैं।
पहाड़ों में भारी बारिश, मैदानों में तबाही
इस आपदा की शुरुआत पहाड़ी इलाकों में हो रही मूसलधार बारिश से हुई। उत्तराखंड और हिमालयी क्षेत्रों में लगातार हो रही बारिश के चलते नदियां उफान पर हैं। हरिद्वार, बिजनौर और नरौरा जैसे इलाकों से गंगा में छोड़ा गया पानी अब उत्तर प्रदेश के मैदानी जिलों में कहर बनकर बह रहा है।
बुधवार को गंगा में छोड़े गए पानी के आंकड़े डराने वाले हैं:
- नरौरा बैराज से 1,50,798 क्यूसेक
- बिजनौर से 3,61,619 क्यूसेक
- हरिद्वार से 2,93,789 क्यूसेक
यह सब मिलकर गंगा को उफान पर ले गए हैं। गंगा का वर्तमान जलस्तर 162.51 मीटर तक पहुंच चुका है, जो खतरे के निशान से 11 सेंटीमीटर ऊपर है। यह स्थिति दिन–ब–दिन गंभीर होती जा रही है।
बदायूं में गंगा की घुसपैठ — गांवों में दहशत
बदायूं ज़िले की सहसवान तहसील के गांव खागीनगला और वीरसहाय नगला सबसे पहले गंगा की चपेट में आए। यहां के लोगों का कहना है कि मंगलवार शाम तक ही उनके खेतों और घरों के आसपास पानी भर गया था। अनाज, मवेशी, घर और रोज़मर्रा की जिंदगी सब कुछ इस बाढ़ की गिरफ्त में आ गया है।
कैमरे पर छलका गांववालों का दर्द
“हमने कई बार प्रशासन को सूचना दी, लेकिन कोई पुख्ता मदद नहीं मिली,” एक ग्रामीण बुजुर्ग कहते हैं। “हमारे जानवर बंधे हैं, घरों में पानी घुस चुका है। बच्चों को लेकर कहाँ जाएं?”
एक महिला ने कहा, “रात को नींद नहीं आती, डर है कि पानी और ऊपर न आ जाए।”
प्रशासन की तैयारी — कागजों में सजग, जमीनी हालात चिंताजनक
प्रशासन ने अलर्ट जारी कर दिया है। बीमारों, बुजुर्गों और बच्चों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के निर्देश दे दिए गए हैं। गंगा किनारे बने बेसिक और जूनियर स्कूलों को अस्थायी राहत शिविरों में बदला जा रहा है। जरूरत पड़ने पर स्टीमर बोट का उपयोग कर लोगों को निकाला जाएगा।
लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और है। अब तक कई गांवों में न तो नाव पहुंची है, न राहत सामग्री। बिजली कट चुकी है, पीने का पानी नहीं, राशन की किल्लत और बीमारी का खतरा बढ़ रहा है।
खतरे में अन्य तहसीलें: बिल्सी और दातागंज की ओर बढ़ता पानी
अगर गंगा का जलस्तर यूं ही बढ़ता रहा तो बदायूं के बिल्सी और दातागंज क्षेत्र भी बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं। दातागंज की स्थिति विशेष रूप से गंभीर हो सकती है, क्योंकि यहां गंगा के साथ–साथ रामगंगा नदी भी बहती है। दोनों नदियों का जलस्तर अगर एक साथ बढ़ा, तो भारी तबाही की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
कैसे बनती है गंगा बाढ़ की वजह?
गंगा भारत की सबसे लंबी और पवित्र नदियों में से एक है, लेकिन जब मानसून और पहाड़ी इलाकों की बारिश मिलकर इसका जलस्तर अनियंत्रित कर देते हैं, तो यह नदी विनाश की नदी बन जाती है।
इसके पीछे मुख्य कारण होते हैं:
- ऊपरी इलाकों में अत्यधिक बारिश
- बैराजों से एक साथ अधिक पानी छोड़ा जाना
- नदी तटों पर अतिक्रमण और संकरी जलधाराएं
- जमीन की कटाव क्षमता कम होना
- रोकथाम के लिए पर्याप्त बाढ़ प्रबंधन न होना
कितनी जल्दी बदल सकता है हालात का रुख?
बाढ़ एक ऐसी आपदा है जिसमें एक ही रात में हालात बदल सकते हैं। मंगलवार को जहां खेतों में पानी था, बुधवार की शाम तक वह रिहायशी इलाकों में घुस आया। अगर बारिश और पानी छोड़े जाने की यही रफ्तार बनी रही, तो:
- सैकड़ों गांव जलमग्न हो सकते हैं
- हजारों लोग बेघर हो सकते हैं
- स्कूल, अस्पताल और सड़कों तक बर्बाद हो सकते हैं
- महामारी फैलने का खतरा बन सकता है
आपकी भूमिका — सतर्क रहें, अफवाहों से बचें
अगर आप बदायूं, सहसवान, बिल्सी, दातागंज या आसपास के किसी इलाके में हैं, तो सतर्क रहें।
प्रशासन के निर्देशों का पालन करें। सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलाने से बचें।
जरूरतमंदों की मदद करें और सुरक्षित स्थानों पर शरण लें।
बाढ़ से बचाव के लिए क्या किया जाना चाहिए?
प्रशासन और जनता को मिलकर इस आपदा से लड़ना होगा। यहां कुछ महत्वपूर्ण कदम दिए जा रहे हैं:
प्रशासन को क्या करना चाहिए:
- रेस्क्यू बोट्स और मेडिकल टीम्स को सक्रिय करें
- हर प्रभावित गांव में राशन और पीने का पानी पहुंचाएं
- मोबाइल टॉवर, बिजली सप्लाई और प्राथमिक चिकित्सा सुनिश्चित करें
- स्कूलों और पंचायत भवनों को राहत कैंप में तब्दील करें
आम लोगों को क्या करना चाहिए:
- ऊंचे स्थानों पर शरण लें
- ज़रूरी दस्तावेज और मोबाइल चार्ज करके रखें
- मवेशियों को सुरक्षित बांधें
- बच्चों और बुजुर्गों की विशेष देखभाल करें
- बीमार पड़ने पर तुरन्त राहत दल से संपर्क करें
क्या यह संकट टल सकता है?
अगर प्रशासन चुस्ती से काम करे, संसाधन तुरंत लगाए जाएं और मौसम का मिजाज अनुकूल हो जाए, तो यह संकट टल सकता है। लेकिन इसकी संभावना तभी है जब चेतावनी को गंभीरता से लिया जाए और हर नागरिक अपना दायित्व निभाए।
निष्कर्ष: यह केवल एक बाढ़ नहीं, एक चेतावनी है
गंगा का यह रौद्र रूप केवल एक बाढ़ नहीं है, यह एक चेतावनी है — नदियों की उपेक्षा, अतिक्रमण और बाढ़ प्रबंधन की लापरवाही के खिलाफ।
यह समय है कि हम समझें, नदियां पूज्य हैं, लेकिन जब उनकी मर्यादा भंग होती है, तो वे त्रासदी बन जाती हैं।
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