अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच-1बी वीज़ा आवेदन शुल्क को 1 लाख अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने की घोषणा ने वैश्विक उद्योग जगत में हलचल मचा दी है। इस फैसले के तुरंत बाद माइक्रोसॉफ्ट और जेपी मॉर्गन जैसी दिग्गज कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को एडवाइजरी जारी करते हुए जल्द अमेरिका लौटने और अंतरराष्ट्रीय यात्रा से फिलहाल बचने की सलाह दी है।
कंपनियों ने क्यों जारी की एडवाइजरी
माइक्रोसॉफ्ट ने अपने एच-1बी और एच-4 वीज़ा धारक कर्मचारियों को ईमेल भेजकर स्पष्ट किया कि वे समयसीमा से पहले अमेरिका लौट आएं। कंपनी ने अमेरिका के बाहर रह रहे कर्मचारियों से भी तत्काल वापसी का अनुरोध किया है। वहीं, जेपी मॉर्गन के इमिग्रेशन काउंसल ने भी कर्मचारियों को अमेरिका में ही बने रहने और अगली सूचना तक विदेश यात्रा टालने का सुझाव दिया है।
भारतीय पेशेवर सबसे ज्यादा प्रभावित
ट्रंप के इस कदम का सबसे गहरा असर भारतीय आईटी पेशेवरों पर पड़ सकता है। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार, 2020 से 2023 के बीच स्वीकृत एच-1बी वीज़ाओं में करीब 73.7% भारतीयों के थे। चीन 16% के साथ दूसरे, कनाडा 3% के साथ तीसरे स्थान पर रहा। ताइवान, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, नेपाल, ब्राज़ील, पाकिस्तान और फ़िलिपींस का हिस्सा इससे भी कम था।
ट्रंप प्रशासन का तर्क
व्हाइट हाउस के स्टाफ सचिव विल शार्फ के अनुसार, एच-1बी प्रोग्राम का दुरुपयोग सबसे अधिक होता है। उनका कहना है कि नई फीस उन उच्च कुशल कर्मियों को ही आकर्षित करेगी, जो अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां छीनने के बजाय देश में रोजगार पैदा करेंगे। ट्रंप ने ओवल ऑफिस में वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक की मौजूदगी में घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करते हुए कहा कि यह शुल्क अमेरिकी कामगारों के हितों की रक्षा करेगा और सरकार को 100 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक राजस्व दिलाएगा।
व्यावहारिक प्रभाव और सुझाव
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एच-1बी वीज़ा धारक पेशेवरों को अपनी यात्रा योजनाओं पर पुनर्विचार करना चाहिए और कंपनी के दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए।
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कंपनियों को कर्मचारियों के लिए वैकल्पिक इमिग्रेशन या रिमोट-वर्क विकल्पों पर विचार करना होगा।
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भारत जैसे देशों की आईटी कंपनियों को अमेरिकी नीतिगत बदलावों पर पैनी नजर रखनी होगी ताकि परियोजनाओं पर असर न पड़े।
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