मानव जाती व प्रकृति के लिए औद्योगिक विकास एक अभिशाप-आँचलिक ख़बरें-विवेकानंद माथने

News Desk
By News Desk
12 Min Read
udyog vikashhs

किसी वस्तु का तीव्र गति से अंधकारमय खाई की तरफ बढना या उसका पटरी से उतर जाना, दोनों स्थिति में जब विनाश निश्चित हो तब उस गतिशील वस्तु को पटरी पर लाने का प्रयास विनाश का दुर्घटना के बदले अंधकारमय खाई में नष्ट होने का चयन मात्र है। ठीक उसी तरह जब वर्तमान विकास नीतियों से दुनिया का विनाश निश्चित माना जा रहा है तब आज की अर्थव्यवस्था में औद्योगिक विकास की रफ्तार बनाये रखने के लिये वृद्धि दर में तेजी या मंदी दूर करने के उपाय विनाश के रास्ते का चयन मात्र है।भारतीय दर्शन हमे बताता है कि मनुष्य जाति की नैतिक, आत्मिक उन्नति ही सच्ची उन्नति है। और अहिंसक, मानवतावादी समाज रचना से ही उसे प्राप्त करना संभव है। लेकिन इस रास्ते से भटकाकर औद्योगिकरण ने विकास की दिशा सामाजिक, आर्थिक विषमता का पोषण करनेवाली और केवल शरीरिक सुख के लिये भौतिक सुविधाऐं देनेवाली शैतानी सभ्यता की तरफ मोड दी है। प्रेम, विश्वास, सहयोग के आधारपर समता मूलक समाज रचना की जगह स्पर्धा, ईर्ष्या, द्वेश और हिंसा को बढावा देनेवाली गुलामी की नई व्यवस्था स्थापित की है।विकास याने सकल घरेलू उत्पाद में सतत वृद्धि ऐसा मानकर पूरी दुनिया में औद्योगिकरण और व्यापार को बढावा दिया गया। कृषि और सेवा क्षेत्र को भी औद्योगिकरण में ही शामिल किया गया।जनता के लिये जरुरत के अनुसार उत्पादन की जगह अति उत्पादनकरके बाजार को भर दिया गया।यह कहा गया था कि औद्योगिकरण में ही दुनिया की सभी समस्याओं का समाधान है।लेकिन औद्योगिकरण के 350 साल के इतिहास ने यह सिद्ध किया कि औद्योगिकरण समाधान नही बल्कि खुद एक समस्या है।गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी, आर्थिक विषमता जैसे आर्थिक सवालों का उसके पास कोई हल नही है बल्कि यह समस्याऐं औद्योगिकरण के कारण ही पैदा हुई है। औद्योगिकरण के दौर में आर्थिक विषमता बढी है और इस समय वह चरम पर पहुंची है। पर्याप्त उत्पादन के बावजूद भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ, शिक्षा आदि बुनियादी सुविधाऐं और अन्य जीवनावश्यक वस्तुऐं दुनिया की आधी आबादी को उपलब्ध नही है। औद्योगिकरण के लिये श्रम का शोषण और प्राकृतिक संसाधनों का अति दोहन कियाजाना अपरिहार्यहै। औद्योगिक उत्पादों से अधिकाधिक मुनाफा कमाने के लिये कारखानों में कामगारों का शोषण और उद्योगों को सस्ती कृषि उपज उपलब्ध कराने के लिये किसानों, मजदूरों का शोषण करने की नीति अपनाई जाती है। जोश्रमिकों के श्रम के शोषण का एक प्रमुख कारण है। औद्योगिकरण के लिये जल, जमीन, जंगल, खनिज, कोयला, बिजली, पोलाद, सीमेंट, खनिज तेल, पेट्रोलियम, प्राकृतिक वायु, गौन खनिज, स्पेक्ट्रम, पर्यावरण आदि प्राकृतिक संसाधनों की जरुरत होती है और यह संसाधन उसपर निर्भर किसानों, आदिवासियों से छीनकर ही प्राप्त किये जा सकते है। औद्योगिक विकास की गती के साथ श्रम का शोषण और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अनिवार्य रुपसे उसी अनुपात में बढता है। औद्योगिकरण की प्रक्रिया में रोजगार उपलब्ध कराने के लिये कई गुना अधिक लोगों के रोजगार छीने जाते है। जीविका का आधार छीने जाने, मनुष्य के रुपमें उपलब्ध जीवित उर्जा के बदले यंत्रों का इस्तेमालबढने से बेरोजगारी कम होने के बदले बढती है। अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता और जेनेटिक अभियांत्रिकी के प्रवेश से रोबोट, क्लोन द्वारा सारे काम करने से बेरोजगारी का संकट और भी बढेगा।
ग्रीन हाउस गैसेस का उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तामपान वृद्धि के लिये कारण बने औद्योगिकरण ने पृथ्वी के अस्तित्व का संकट पैदा किया है।तापमान वृद्धि के कारण भारतीय कृषि पर भी विपरीत प्रभाव पड रहा है। जिससे खाद्य सुरक्षा का संकट पैदा हो सकता है। इन सभी दुष्प्रभावों से यह स्पष्ट रुपसे दिखाई दे रहा है कि औद्योगिकरण दुनियां के लिये अभिशाप साबित हुआ है।
साम्राज्यवादी देशों ने प्राकृतिक संसाधन संपन्न देशों को गुलाम बनाकर पूरी दुनिया की लूट की है। कृषि से प्राप्त कच्चा माल, प्राकृतिक संसाधनों की लूट और दुनिया के बाजार में औद्योगिक उत्पादन, सेवाऐं बेचकर साम्राज्यवादी देश अमीर बने। अब नई कारपोरेटी साम्राज्यवादी व्यवस्था में साम्राज्यवादी देशों की जगह कारपोरेट कंपनियों ने ली है। कारपोरेटी साम्राज्यवाद के दौर में दुनिया में हो रही लूट का लाभ अब किसी देश की नही बल्कि कारपोरेट्स की संपत्ति बढा रही है।आर्थिक विषमता के संदर्भ में विभिन्न रिपोर्ट के अनुसार मोटे तौर पर देश दुनिया में पैदा होनेवाली संपत्ति का 75 प्रतिशत हिस्सा दस प्रतिशत लोगों के पास जा रहा हैऔर 10 प्रतिशत से भी कम हिस्से में 80 प्रतिशत लोगों को जीवन निर्वाह करना पडता है। भारत के दस प्रतिशत शिर्ष अमीरों के पास 77 प्रतिशत राष्ट्रीय संपत्ति है। एक प्रतिशत शिर्ष अमीरों के पास 58.4 प्रतिशत राष्ट्रीय संपत्ति है। भारत में अरबपतियों की संख्या केवल 119 है। दुनियाभर में केवल 2140 शिर्ष अरबपति ऐसे है कि जिनकी संपत्ति 1 बिलियन डॉलर से अधिक है। लेकिन दूसरी तरफ दुनिया की आधी आबादी गरीबी, भूखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी का शिकार है और जीने के लिये संघर्ष कर रही है।नई आर्थिक नीति लागू होने के बाद विकासकोगतिदेनेकेलियेभारतमेंउद्योग, सेवा और कृषि क्षेत्र को देशी विदेशी कारपोरेट कंपनियों को सौपने का काम किया गया। कारपोरेट कंपनियों को प्रवेश, निवेश के लिये कानूनी संरक्षण, बैंको से कर्ज की सुविधाऐं, कंपनियों को लाभ पहुंचाने वाली आयात निर्यात नीतियां, मुनाफा विदेशों में ले जाने के लिये छूट आदि नीतीयां अपनाई गई। सकल घरेलू उत्पाद में बढोतरी के द्वारा आर्थिक विकास की वृद्धि दर बढाने के लियेउद्योग, निर्माण, उर्जा उत्पादन, रियल इस्टेट, परिवहन, बुनियादि ढ़ाचे का निर्माण,औद्योगिक गलियारों का जाल और कार, एसी और अन्य विलासिता के सामानों के उत्पादन कोबढावा दिया जाता है। और उत्पादित विलासिता वस्तुओं के ग्राहक पैदा करने के लिये जनता को लूटकर पैदा हुई संपत्तिकेवल 20 प्रतिशत लोगों के पास पहुंचाई जाती है। सरकारी नौकरशहा और कारपोरेट कामगारों को उनकी योग्यता से अधिक वेतन केवल विशिष्ट उपभोक्ता वर्ग पैदा करने के लिये दिया जाता है। दुनिया की लूट करने के लियेऔद्योगिक विकास के जरिएआर्थिक विषमता का पोषण करने की नीतियांकारपोरेट्स द्वारा बनाई जाती है। आखिर औद्योगिक उत्पादन और सेवाओं के खपत की मर्यादा है। उद्योगों के लिये यह संभव नही है कि दुनिया का बाजार सबके लिये उपलब्ध होगा खासकर तब जब लोगों के लिये उत्पादन की जगह अति उत्पादन की नीति अपनाई जा रही हो। दूनिया के बाजार के आधारपर किसी भी देश का विकास दर हमेशा के लिये स्थिर नही रह सकता। इसका अपरिहार्य परिणाम मंदी है।मंदी बार बार चेतावनी दे रही है कि औद्योगिकरण का कोई भविष्य नही है।मंदी दूर करने के उपाय भी कारपोरेट कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिये ही सुझाये जा रहे है। विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये सभी क्षेत्रों में शत प्रतिशत विदेशी निवेश, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को निजी कंपनियों को बेचना, बैंकिंग क्षेत्र में सुधार, कंपनियों को कर्ज, एनपीए द्वारा कर्ज माफी, कारपोरेट टैक्स घटाना, कंपनी टैक्स में छूट देना, कारपोरेट्स के निजी टैक्स कम करना, कंपनी उत्पादनों पर जीएसटी दर कम करना, विश्व व्यापार समझौते, आयात निर्यात नीतियों में बदलाव, प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को सरल बनाना, कामगारों के अधिक शोषण के लिये श्रम कानून में सुधार आदि उपाय कारपोरेट कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिये ही सुझाये गये है। समाज को वर्गों में बांटकर ग्राहकों को वर्गीकृत करना, विशिष्ट वर्ग की क्रयशक्ति बढाने के लिये उनके पास धन पहुंचाना, राजकोषीय घाटा दूर करने के लिये बजट में जनकल्याण की योजनाओं के खर्च में कटौती करना आदि उपाय किये जा रहे है। कारपोरेट टैक्स 30 प्रतिशत से 22 प्रतिशत पर लाया गया है और अब उद्योगपतियों को व्यक्तिगत इन्कम टैक्स में छूट देने की योजना है। विकास दर में तेजी लाने या मंदी को दूर करने के उपाय समाज के लिये समान रुपसे घातक और विनाशकारी है। यह उपाय गरीबों को लाभ पहुंचाने के लिये नही बल्कि उनका शोषण करके उसका लाभ अमीरों तक पहुंचाने के लिये किये जाते है। दोनों ही परिस्थितियों में श्रम का शोषण और प्राकृतिक संसाधनों से लोगों के अधिकार छीने जाना तय है। बची हुई बचत बैंको द्वारा लूट ली जाती है। अर्थ व्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था याने आज से दोगुनी बनाने का उद्दिष्ट प्राप्त करने के लिये प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी दोगुना बढाना होगा।आज के अधिकतम अर्थशास्त्री कारपोरेट्स की गुलामी करते है। उनके द्वारा विकास दर में मंदी दूर करने के उपाय श्रमिकों के श्रम का शोषण और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से होनेवाली लूट को दुनिया के अमीरों तक पहुंचाने में आयी रुकावट को दूर करने और लूट का अविरत धाराप्रवाह उनके पास पहुंचाने की चिंता से उपजे है।विश्व बैंक, आयएमएफ, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय वित्तिय संस्थायें गरीबी और आर्थिक विषमता को दूर करने के नामपर दुनिया में कारपोरेटी लूट की व्यवस्था को मजबूत बनाने का काम करती है। विकास दर बनाये रखने या मंदी दूर करने के संदर्भ में उनकी रिपोर्ट सरकारों पर दबाव बनाने या कारपोरेट परस्त सरकारों के अनुकूल जनमानस पैदा करने के लिये किया गया प्रयास है। सत्ता में बने रहने के लिये केंद्र सरकार देश को कारपोरेट्स को बेचने का काम कर रही है।औद्योगिकरण पूंजीवादी व्यवस्था का वह हथियार है, जो चंद लोगों को सुख पाने के लिये दुनिया के अधिकांश लोगों के शोषण को सैद्धांतिक स्वीकृति देकर उसे प्रत्यक्ष में परिणित करने का काम करता है और समाज और प्रकृति का शोषण कर दुनिया में सबसे अमीर बनने की राक्षसी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिये उद्योगपतियों को प्रेरित करता है।
औद्योगिकरण दुनिया की आधी आबादी कीतबाहीके लिये जिम्मेदार है। विकास दर में तेजी लाने या मंदी दूर करने का रास्ता किसानों, मजदूरों, कामगारों के अधिकारों को छीनकर और उनकी लूट करके ही बनाया जाना है। इसलिये जनता के अधिकारों के लिये संघर्षशील नेताओं को तेजी, मंदी के खेल में शामील हुये बिना औद्योगिकरण को नकारकर वैकल्पिक अर्थ व्यवस्था की तलाश करनी होगी।

Share This Article
Leave a Comment