हिंदी की उपेक्षा: कारण और परिणाम

Aanchalik Khabre
3 Min Read
हिंदी का सम्मान

हिंदी अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। यह किसी की भाषा को दबाने वाली नहीं, बल्कि प्रेम और सम्मान के साथ सभी का दिल जीतने वाली है। फिर भी हिंदी लगातार उपेक्षित हो रही है।

आज के समय में युवा पीढ़ी को हिंदी बोलने में शर्म महसूस होती है। वे हिंदी में सोचते हैं, पढ़ते हैं, लेकिन अंग्रेज़ी बोलने की कोशिश करते हैं ताकि उन्हें समाज में प्रतिष्ठा मिले। इसके चलते हमारी भाषा और संस्कृति दोनों ही खतरे में हैं।

शिक्षा प्रणाली और अंग्रेज़ी का प्रभुत्व

आज के स्कूलों ने “अंग्रेज़ी माध्यम” को श्रेष्ठता का प्रतीक बना दिया है। हिंदी माध्यम के छात्र अक्सर हीन दृष्टि से देखे जाते हैं, जैसे वे पिछड़े समाज से आते हों। कई घरों में माता-पिता भी बच्चों से अंग्रेज़ी में बात करने को बाध्य करते हैं, यह भूलकर कि भाषा का उद्देश्य ज्ञान बढ़ाना है, न कि दिखावा।


हिंदी और मीडिया: बाज़ारवाद का प्रभाव

टीवी, सिनेमा, विज्ञापन—हर जगह अंग्रेज़ी का बोलबाला है। हिंदी का राजनीतिकरण तो होता है, लेकिन असली सम्मान नहीं मिलता। नेताओं के भाषण हिंदी में होते हैं, पर कामकाज अंग्रेज़ी में ही किया जाता है।

व्यापारीकरण और बाजारवाद ने हिंदी को हाशिए पर धकेल दिया है। फिल्मों और विज्ञापनों में अंग्रेज़ी डायलॉग का अधिक प्रयोग, हिंदी का असम्मान बढ़ा रहा है।


साहित्यिक विरासत और हमारी जिम्मेदारी

भारत बड़ी साहित्यिक विरासत वाला देश है। तुलसीदास की रामचरितमानस, हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला, मुंशी प्रेमचंद की कहानियां, सूरदास और कबीरदास की वाणी—इन सभी ने हिंदी साहित्य को अमर बनाया है।

आज की पीढ़ी को हिंदी बोलने में झिझक है। इसे बदलना ही होगा। बच्चों में हिंदी के प्रति रुचि पैदा करने के लिए घरों में कहानियां, कविताएं और संवाद हिंदी में पढ़ने और सुनाने चाहिए।


समाधान और कार्रवाई

  1. घर से शुरुआत: बच्चों से घर में हिंदी में बात करें, उन्हें हिंदी में सोचने और अभिव्यक्त होने के लिए प्रेरित करें।

  2. शिक्षा संस्थान: हिंदी माध्यम की शिक्षा को उतना ही महत्व दें जितना अंग्रेज़ी माध्यम को।

  3. मीडिया में बढ़ावा: फिल्मों, टीवी, विज्ञापन और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दें।

  4. सामाजिक जागरूकता: हिंदी का गौरव बढ़ाने के लिए समाज में सकारात्मक संदेश फैलाएं।

हिंदी कमजोर नहीं है, उपेक्षित है। इसका सम्मान केवल हिंदी बोलने वालों का अधिकार नहीं, बल्कि हर भारतीय का गौरव और कर्तव्य है। हिंदी हमारी आत्मा, हमारी पहचान और हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। इसे बचाना और बढ़ावा देना हम सभी की जिम्मेदारी है।

Also Read This-देश में बढ़ता ‘हलाल टाउनशिप’ विवाद: गंगा-जमुनी तहज़ीब की फिर से जरूरत

Share This Article
Leave a Comment