नए संसद भवन के उद्घाटन के दिन महिला एथलीटों का प्रदर्शन आखिर कितना सही ?

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By News Desk
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जब एक तरफ नए संसद का उद्घाटन हो रहा था तो वहीं दूसरी तरफ महिला एथलीट संसद भवन पहुंच कर विरोध प्रदर्शन करने के लिए प्रयासरत थे। अब सवाल ये उठता है कि महिला एथलीट्स का संसद भवन पहुंच कर विरोध प्रदर्शन करने का इरादा कितना सही था? वो भी उस समय जब भारत के संसद का उद्घाटन हो रहा था और दुनिया इस गौरवशाली पल को देख रही थी। क्या इससे हमारे देश की छवि दुनिया के अन्य देशों में धूमिल नहीं होगी? खिलाडी चाहते तो उस दिन अपने विरोध प्रदर्शन को शांत रख कर प्रदर्शन के लिए कोई अन्य दिन चुन सकते थे।

यहाँ पर असमंजस की स्थिति भी उत्पन्न होती है, कि क्या प्रदर्शन में प्रधानमंत्री द्वारा संसद के उद्घाटन का विरोध भी शामिल था या फिर एथलीट को इससे ज्यादा उचित और कोई समय नहीं लग रहा था कि जब वो अपनी मांग सरकार के सामने रखे! शायद अगर सरकार इन महिला एथलीट की मांगों को मानती और आरोपी के खिलाफ कार्यवाही करती तो ये नौवत ही ना आती कि संसद के उद्घाटन के दिन वो विरोध प्रदर्शन जाहिर करें! हो सकता है कि प्रदर्शनकारियों ने ये सोच कर संसद भवन पहुंचकर प्रदर्शन करने का फैसला लिया हो कि उस दिन पूरा लोकतंत्र वहां एकत्र होगा और उनकी बात मान ली जाएगी! लेकिन सरकार ने अभी भी उनके साथ कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी और इंसाफ दिलाने की बजाय उनको पुलिस के द्वारा खदेड़वा कर डिटेन कर लिया गया। सवालिया चिन्ह तो सरकार पर भी लगता है कि महीनों से प्रदर्शन कर रही महिला एथलीट्स का दुख अभी तक सरकार को नज़र नहीं आया?

पूर्व पहलवान योगेश्वर दत्त ने विपक्ष पर हमला बोला

दिल्ली में नई संसद के उद्घाटन के मौके पर पहलवानों के प्रदर्शन पर पूर्व पहलवान योगेश्वर दत्त ने विपक्ष पर हमला बोला है। मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा-खिलाडियों को गलत तरीखे से यूज किया गया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण (28 मई) को देखने को मिला। हमारी सबसे बड़ी पंचायत, जो लोकतंत्र का मंदिर है, उस ऐतिहासिक मौके पर खिलाड़ियों को उकसा कर भेजा गया। योगेश्वर दत्त ने कहा- ये बात हम सभी जानते हैं कि ऐसी जगह पर कोई भी नहीं जा सकता है, जहां पर राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री कोई उद्घाटन कर रहे हों। इनका प्रोटोकॉल होता है, वहां पर जबरदस्ती पहलवानों को भेजने की कोशिश की गई थी, ये बहुत दुखद है।1685342992 wrestler

इसमें विपक्षी पार्टियों का हाथ है, उन्होंने पहले ही इसके बहिष्कार का ऐलान किया था। उन्होंने कहा- विपक्ष ने पहलवानों के कंधे पर बंदूक रख कर चलाई है, साथ ही उन्होंने देश की छवि खराब करने की कोशिश की। यहां पर राजनीति हो रही है। पहलवानों की जो मांग थी कि FIR हो, वो हो चुकी है, पुलिस अपना काम कर रही है। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट खेल मंत्रालय को सौंप दी है, लेकिन 28 मई को जो हुआ है वो सब जानते हैं कि जब कोई इतने बड़े ऐतिहासिक कार्यक्रम का विरोध करता है तो पुलिस अपना काम करती है। धारा 144 वहां पर लगी हुई थी । राजनीति कोई भी कर सकता है, लेकिन गलत तरीखे से नहीं की जानी चाहिए। पहलवानों और पुलिस के टकराव पर योगेश्वर दत्त ने कहा- यदि यहां मुख्यमंत्री आ जाएं तो पुलिस मुझे भी नहीं आने देगी। पुलिस का अपना प्रोटोकॉल होता है। संसद का उद्घाटन पूरे हिंदुस्तान के लिए गर्व का पल था, पुलिस ऐसे मौके पर वहां प्रदर्शन के लिए नहीं जाने देगी। ऐसे ऐतिहासिक दिन ऐसी घटना नहीं होनी चाहिए थी । कमेटी अपना काम कर चुकी है बयान दर्ज हो चुके हैं, बयानों की रिकॉर्डिंग हुई है, लिखित में सब कुछ है। इसमें रत्ती भर की भी कोई गुंजाइश नहीं है।

क्या किसी राष्ट्रीय आयोजन के दौरान किसी अन्य विषय को लेकर विरोध प्रदर्शन करना उचित है?

राष्ट्रीय आयोजन एक महत्वपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं का हिस्सा होता है जो एक देश के विकास और प्रगति को बढ़ावा देने का उद्देश्य रखता है। हालांकि, कई बार लोग राष्ट्रीय आयोजनों के दौरान अन्य विषयों पर अपना विरोध प्रदर्शित करते हैं।

मुद्दे का विश्लेषण

राष्ट्रीय आयोजन के दौरान विरोध प्रदर्शन करने के विचार को लेकर एक व्यापक चर्चा होती है। कुछ लोग विशेष आयोजन पर उठने वाले मुद्दे के साथ संबंधित अन्य विषयों पर अपनी असंतुष्टि प्रकट करने के लिए विरोध प्रदर्शन करने की जरूरत को समझते हैं। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं जैसे सामाजिक न्याय, मानवाधिकार, पर्यावरण, आर्थिक मुद्दे, सार्वजनिक स्वास्थ्य आदि।

दूसरी ओर, कुछ लोग इस तरह के विरोध प्रदर्शन को नागरिकों की आवाज को दबाने और आयोजन के संपन्न होने में बाधा डालने का माध्यम मानते हैं। उनका यह दावा हो सकता है कि राष्ट्रीय आयोजन एक महत्वपूर्ण प्लेटफ़ॉर्म है जिस पर देश की उनकी अभिव्यक्ति और दृष्टिकोण प्रगट हो सकती है।

उचितता का मूल्यांकन:

विरोध प्रदर्शन के बारे में उचितता का मूल्यांकन करते समय, निम्नलिखित पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिए:

  •  विरोध प्रदर्शन को हिंसात्मक नहीं होना चाहिए। लोगों को अपने मत को व्यक्त करने का अधिकार है, लेकिन इसे विध्वंसक और अवैध गतिविधियों के माध्यम से नहीं किया जाना चाहिए।
  •  विरोध प्रदर्शन का मूल उद्देश्य देश में परिवर्तन लाना होना चाहिए। विरोध करने वालों को संबंधित मुद्दे पर विचारधारा और तथ्यों के आधार पर आपत्ति जतानी चाहिए।
  •  विरोध प्रदर्शन को संविधानिक और प्रशासनिक व्यवस्था के माध्यम से व्यवस्थित रखना चाहिए। इसमें अवैध व्यवहार और आपत्तिजनक गतिविधियों का अभाव होना चाहिए।
  •  विरोध प्रदर्शन करने वालों की मांग न्यायपूर्ण सुनवाई करने की होनी चाहिए। उन्हें संबंधित निर्णयकर्ताओं और आयोजक संगठन के साथ संवाद करने और अपने मुद्दे को सामाजिक चरणों में ले जाने का अवसर मिलना चाहिए।

एक राष्ट्रीय आयोजन के दौरान किसी अन्य विषय के लिए विरोध प्रदर्शन करने की उचितता और अप्रामाणिकता मुद्दे की संदर्भित गम्भीरता, सामाजिक प्रभाव, और सामरिकता के माध्यम से मूल्यांकन के आधार पर निर्धारित होती है। एक सामरिक और न्यायसंगत माध्यम से विरोध प्रदर्शन करने और अपने मत को व्यक्त करने का अधिकार है, लेकिन इसे संविधानिक और नैतिक सीमाओं के अंदर रखा जाना चाहिए। न्यायपूर्ण सुनवाई की मांग और विचारधारा की मान्यता वाले संवाद के माध्यम से समस्या का समाधान ढूंढना चाहिए, ताकि सामरिक परिवर्तन हो सके और समाज को एक बेहतर भविष्य की ओर ले जाने का मार्ग मिल सके।

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