यदुवंशी ननकू यादव अयोध्या से सटे सुल्तानपुर में भाजपा इस बार 5 की पांचों सीट जीतने की किलाबंदी कर रही है। वहीं समाजवादी पार्टी भी 2012 वाले ग्रॉफ तक पहुंचने के लिए मंथन कर रही है। नेतृत्व होम वर्क में जुटा हुआ है। भीतर खाने में इस बात को लेकर सुगबुगाहट है कि दावेदारी ठोक रहे 2 पूर्व विधायकों का टिकट कट सकता है। ऐसे में एक पूर्व विधायक ने इस बात को भांप कर जातिगत वोटों की ताकत नेतृत्व को दिखाई भी है। हालांकि उनकी अपनी विधानसभा में सपा का बेस वोट बैंक ही उनसे खफा है।
2012 में सपा के पास थी पांचों सीटें
उल्लेखनीय रहे कि मोदी लहर से पहले 2012 में सुल्तानपुर की पांचों विधानसभा सीटों पर सपा का परचम लहराया था, लेकिन 2014 में केंद्र की सत्ता मोदी के हाथों में क्या आई 3 सालों के अंदर यूपी की राजनीति में बड़ा बदलाव आया। ऐसी सुनामी आई कि सत्तासीन सपा अर्श से फर्श पर आ गई। 2012 में सुलतानपुर की 5 सीट जीतने वाली सपा 2017 में क्लीन स्वीप होने से बच गई। आंसू पोंछने के लिए इसौली से चर्चित विधायक अबरार अहमद ने सीट जीतकर पार्टी की झोली में डाली।
जयसिंहपुर से अखिलेश यादव के दाहिना हाथ कहे जाने वाले विधायक अरुण वर्मा तीसरे पायदान पर पहुंच गए थे। इस वक्त भगवान परशुराम के जरिए अपनी राजनीति चमकाने वाले पूर्व विधायक संतोष पाण्डेय का हश्र भी यही हुआ था। वो भी तीसरे स्थान पर थे।
लखनऊ में हुई 3 मीटिंग, नहीं निकल सका हल
जानकारी के अनुसार, इन दोनों के टिकट पर तलवार लटक रही है। दरअसल, नेतृत्व द्वारा तैयार कराई गई रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि सदर (जयसिंहपुर) के पूर्व विधायक का उनके अपनी ही जाति के लोग विरोध कर रहे। वहीं लंभुआ के पूर्व विधायक से उनके अपने खुश तो सपा के बेस वोट बैंक यादव और मुस्लिम में काफी आक्रोश है। इन दोनों ही स्थानों पर पार्टी अन्य प्रत्याशी को फिट करने की कवायद में है। यही वजह है कि हाल के समय में लखनऊ में 3 मीटिंग हुई, लेकिन हल नहीं निकल सका।
कादीपुर सीट पर मुख्य मुकाबले में सपा
उधर कादीपुर सुरक्षित सीट से इस बार सपा मुख्य लड़ाई में रहेगी। उसका सबब यह है कि बसपा के 3 बार के विधायक भगेलू राम पर पार्टी दांव खेल सकती है। जबकि मौजूदा बीजेपी विधायक राजेश गौतम को लेकर क्षेत्र के लोगों में आक्रोश है। इसके अलावा अपने वर्ग व अन्य वर्गों में पूर्व विधायक की गिर्प भी काफी मजबूत है। इसौली सीट पर 2017 में जहां से सपा के सिंबल पर अबरार अहमद दोबारा विधायक चुने गए थे तो इस बार पार्टी यहां भी बदलाव करने जा रही है। सूत्रों के मुताबिक बसपा छोड़कर सपा में आए पूर्व सांसद मोहम्मद ताहिर खां पर पार्टी दांव खेल सकती है।
सुल्तानपुर सीट पर ऊहापोह की स्थिति
यहां से बीएम यादव का नाम भी चर्चा में है। अब पार्टी नेतृत्व किस नाम पर मुहर लगाती है, यह सूची जारी होने के बाद साफ हो जाएगा। वहीं खास सुल्तानपुर सीट जिसे सपा ने 1993 के बाद 2007 में भाजपा से छीनी थी। अंतिम समय में टिकट लेकर आए पूर्व विधायक अनूप संडा ने सीट जीतकर पार्टी की झोली में दी थी। 2012 में वो बसपा के सिंबल पर लड़े। पूर्व सांसद मो. ताहिर खां को शिकस्त देकर विधायक चुने गए, लेकिन 2017 में मोदी लहर में वो हैट्रिक नहीं लगा सके। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी उनके नाम पर विचार कर रही है, लेकिन अगर भाजपा ने वैश्य प्रत्याशी उतारा तो पार्टी पड़ोसी जनपद के एक पूर्व मंत्री को यहां से अपना चेहरा बना सकती है।