विस्थापित पाक हिन्दुओं का भारत में अवैध निवास एक समस्या

Aanchalik Khabre
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Rajasthan Jodhpur administration fired bulldozers

भारत में पाकिस्तान से विस्थापित एवं शरणार्थी लोगों का आना कोई नयी बात नहीं हैं. 1971 के युद्ध के बाद से ही भारत में पाकिस्तान से विस्थापितों का आना लगातार जारी है. बहरक़ैफ़ समय-समय इन विस्थापित पाकिस्तानियों के भारत आने की वजह बदलती रही है. हमेशा से जब जब पाकिस्तान में आर्थिक संकट, धर्म की सुरक्षा एवं प्राकृतिक आपदा जैसे संकट आये हैं तब-तब पाकिस्तान से विस्थापित हुए लोग भारत में आकर बसे हैं. आज भी देश के विभिन्न क्षेत्रों में ये लोग बसे हुए हैं. ऐसे लोग अपने देशों से दूसरे पड़ोसी देशों में इस लिए चले जाते हैं कि जब तक उनके देश में उत्त्पन्न हुई वह समस्या सामान्य ना हो जाये जिसकी वजह से वो आये हैं, लेकिन उनके अपने देश में उत्पन्न संकट के सामान्य होने का बावजूद भी ये विस्थापित लोग अपने देशों को वापस नहीं लौटते और छुप कर गैरकानूनी तरीके से रहने लगते हैं.

ऐसा ही कुछ हुआ राजस्थान के जोधपुर में, जहाँ पाकिस्तान से कथित हिंदू परिवार अपना सब कुछ छोड़-छाड़कर भारत आ गए थे. उन्हें उम्मीद थी कि यहां पर उनको वो सभी सुख सुविधाएं और सम्मान मिलेगा जो उनको अपने देश में नहीं मिल रहा था. उनका कहना था कि वो अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर भविष्य बनाने भारत आए थे. भारत पहुंचकर उनकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.लेकिन उनकी यह खुशी काफूर हो गई. जहाँ उनकी बस्ती को जोधपुर विकास प्राधीकरण ने अवैध कब्जा बताते हुए गिरा दिया. उसके बाद से पाकिस्तान से विस्थापित करीब 70 हिंदू परिवार अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ खुले में सोने के लिए मजबूर हो गए. इनमें से ज्यादातर परिवार तीन महीने पहले ही भारत आए थे.

पाकिस्तान से आये विस्थापित हिन्दुओं का कहना था कि इन परिवारों ने अपनी जीवनभर की जमा पूंजी देकर भू माफियाओं से जोधपुर के राजीव विहार में जमीन खरीदी थी. उनको ऐसी किसी प्रकार की जानकारी नहीं थी की वो जमीन सरकारी हैं. अपनी अपनी हैसियत के मुताबिक सभी परिवारों ने कच्चे पक्के घर बना लिए थे.

अब वो अपने परिवारों के साथ बहुत खुश थे और इन मकानों में बैठकर एक अच्छे भविष्य का सपना देखने लगे थे. लेकिन उनकी उनकी ये ख़ुशी ज्यादा दिन नहीं टिक सकी और जोधपुर डेवलपमेंट अथॉरिटी ने जमीन पर अपना कब्जा बताते हुए अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू कर दी. जेडीए ने यहां रह रहे विस्थापित परिवारों के घरों पर बुलडोजर चलवाकर उनके इस सपने को तोड़ दिया. अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के दौरान पथराव भी हुआ था. यहां मौजूद छोटे बच्चों और महिलाएं और उनका परिवार गिड़गिड़ाता रहा कि उन्हें इस तरह से बेघर ना किया जाए.लेकिन जेडीए के बुलडोजर ने इन परिवारों के आशियानो को जमींदोज कर दिया. अब इस जमीन पर उनके मकान नहीं दिख रहे थे, बस दिख रहे थे, तो आंखों में आंसू, बेबसी, बिखरा सामान और बिखरे हुए अरमान.

अपने घरों को टूटता हुआ देखकर लोग आक्रोशित हो थे. कथित तौर पर लोगों ने कार्रवाई करने आई टीम पर पथराव किया था। पथराव में JDA अधिकारियों व बुलडोजर के ड्राइवर को चोट भी लगी थी. इस मामले में पुलिस ने जेडीए के अधिकारी और एक पत्रकार की शिकायत पर FIR भी दर्ज की थी।

क्यूँ की जेडीए ने कार्रवाई

मीडिया से बात करते हुए जोधपुर प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया था कि करीब 400 बीघा जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराया गया। यह जमीन गाँधी नगर की है। बिना किसी अनुमति के यहाँ अवैध निर्माण किया गया था। प्रवासी दावा कर रहे थे कि उन्होंने जमीन खरीदी है। लेकिन जब उनसे जमीन के कागज माँगे गए तो वे कोई भी दस्तावेज पेश नहीं कर पाए। इसके बाद कार्रवाई करते हुए घरों को गिरा दिया गया।

स्थानीय नेताओं और भूमाफिया के हुए थे शिकार

इन पीड़ित पाक विस्थापित परिवारों ने स्थानीय नेता, दलाल और भू माफियाओं पर लूटने का आरोप लगाया था. इन परिवारों से किसी से दो लाख तो किसी से तीन लाख तो किसी से चार लाख रुपये लेकर ये प्लॉट दिए गए थे. पाकिस्तान से आए हिंदू परिवारों की महिलाये, बूढ़े और बच्चे रोते बिलखते रहे और कहते रहे कि आखिर हमारा क्या कसूर हैं, हमको पाकिस्तान में भी सताया जाता रहा और यहाँ तो हमको इस तरह से बेघर कर दिया, न पिने के लिए पानी हैं और ना सर पर छत. ये परिवार तेज गर्मी में अपने परिवार के साथ सड़कों पर रहने के लिए मजबूर हो गए. इन परिवारों ने बताया कि अचानक से टीम आई थी और उस दौरान घरों में केवल महिलाएं और बच्चे थे. वे रोते-बिलखते रहे पर किसी ने भी उनकी नहीं सुनी. टीम ने बुलडोजर चलाकर हमें बेघर कर दिया. हमारे आशियाना को जमींदोज कर दिया.
ये लोग वहाँ से भागकर राजस्थान के जोधपुर के समीप चोखा गाँव में घर बनाकर रह रहे थे। इनमें से अधिकांश लोगों के पास भारत में रहने के लिए लॉन्ग टर्म वीजा है। लेकिन अब तक इन्हें भारत की नागरिकता नहीं मिली है।

क्या है पाकिस्तानी विस्थापितों की भारत आने की वजह

पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार की बातें किसी से छिपी नहीं है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पाकिस्तान में हिंदू बहन बेटियों पर बहुत आतंक है, मुस्लिम बाहुल्य होने के कारण पाकिस्तान में लगातार हिन्दुओं पर अत्यचार होता रहा है. कई बार मीडिया रिपोर्ट्स में पढ़ा गया है कि हिन्दू बहन बेटियों को जबरन उठाकर ले जाया जाता है, और उनकी इच्छा के विरूद्ध उनका धर्म परिवर्तन करवा दिया जाता है. कई बार पाकिस्तान में अल्पसंख्यक होने की वजह से हिन्दुओं के साथ भेद भाव किया जाता है. हिन्दुओ और सिखों के पवित्र स्थलों को पाकिस्तानी मुस्लिमों द्वारा तोड़े जाने की ख़बरें लगातार देखने और सुनने को मिलती हैं. पाकिस्तान में बहुसंख्यक समाज के उत्पीड़न का दंश झेल रहे न जाने कितने परिवार पाकिस्तान छोड़कर भारत आ रहे हैं. सीमांत लोक संगठन के संयोजक हिंदू सिंह सोढा ने मीडिया में बात करते हुए बताया कि हमारे संगठन की स्टडी के अनुसार 1971 से अब तक 7 लाख से अधिक पाक हिंदू विस्थापित करके राजस्थान आए हैं. यह सिलसिला अभी भी जारी है. हिन्दू सिंह सोडा ने सरकार से विस्थापितों के हितों की रक्षा की मांग करते हुए कहा कि सरकार को इन हिंदू पाक विस्थापितों के जीवन यापन के लिए कदम उठाए.

क्या होनी चाहिए सरकार की जिम्मेदारी ?

इस विषय पर देखा जाये तो सरकार की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि इस प्रकार के लोग देश में जहाँ जहाँ रह रहे हैं, उन सभी को चिन्हित किया जाये और उनके पहचान पत्रों सहित अन्य दस्तावेजों की जांच कराई जाये. जो सही हैं उनको उचित सुविधाएं और रहने के लिए स्थान दिलाया जाये, और जिनके पास जरुरी पहचान सम्बन्धी दस्तावेज नहीं हैं उनका नागरिकता के लिए आवेदन कराया जाये. जिससे इस प्रकार की स्थति फिर से उत्त्पन्न ना हो.

विस्थापित और शरणार्थी पृथक मुद्दे

विस्थापित और शरणार्थी दो अलग-अलग समस्याओं के साथ जुड़े हुए हैं, विस्थापित और शरणार्थी के बीच कुछ मुख्य अंतर भी हैं. जिसमे विस्थापित लोग एक विकास परियोजना या अन्य कारणों से अपने मूल आवास से निकाले जाते हैं, जबकि शरणार्थी लोग राजनीतिक, आर्थिक या विपदा के कारण अपने घरों को छोड़कर दूसरे स्थानों पर सुरक्षित स्थान की तलाश करते हैं। साथ ही विस्थापित लोगों का आवास आमतौर पर पुनर्वास क्षेत्रों में बनाया जाता है, जहां उन्हें नया आवास दिया जाता है। वहां प्राकृतिक संसाधनों, सेवाओं और सामाजिक नेटवर्कों की कमी हो सकती है। वहीं शरणार्थी लोग आमतौर पर शरणार्थी शिविरों, कैंपों, या अन्य सुरक्षित स्थानों में रहते हैं, जहां उन्हें अस्थायी आवास प्रदान किया जाता है। विस्थापित लोगों को आवास, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य आवश्यक सुविधाएं प्रदान की जाती हैं, ताकि वे अपने नए स्थान पर स्थानांतरित होने के बाद भी अपनी आदतें जारी रख सकें। शरणार्थी लोग आमतौर पर आश्रय, खाना, पीना, चिकित्सा सहायता और सुरक्षा की आवश्यकताएं रखते हैं। इसके अलावा विस्थापित लोगों का संघर्ष अकस्मात रूप से बदले गए पर्यावरण, आर्थिक स्थिति, रोजगार के अवसरों की कमी आदि से संबंधित होता है। शरणार्थी लोगों का संघर्ष उनकी राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक सुरक्षा, विनाश, युद्ध, या प्राकृतिक आपदा से संबंधित हो सकता है।

विस्थापित और शरणार्थी दोनों के लिए समान मानवीय संबंध, संघर्ष और उम्मीद होती है। उन्हें स्थायी आवास, वित्तीय सहायता, संबंधित सेवाएं, समाजिक संरचनाओं का समर्थन, और उच्चतम स्तर की संवेदनशीलता और समझदारी की आवश्यकता होती है। समाज और सरकार को सहयोग करके, हम इन व्यक्तियों को समर्पित होने, उनकी आवासिक, आर्थिक और मानसिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संकल्पित होना चाहिए।

भारत में विस्थापित और शरणार्थी कानून

भारत में पाकिस्तान सहित अन्य देशों से आने वाले विस्थापित लोगों के लिए कई कानून हैं जो उन्हें सुरक्षा और सहायता प्रदान करते हैं। जिसके अंतर्गत पहला कानून है विदेशी नागरिक (अधिनियम) 1946 . इस अधिनियम के तहत, विदेशी नागरिकों के लिए नागरिकता के मामलों को केंद्र की एजेंसी द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यह अधिनियम विदेशी नागरिकों की मदद, संरक्षा और आपातकालीन स्थितियों में सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया है।

साथ ही एक अन्य कानून विदेशी संघर्षक (शरणार्थी) अधिनियम 1960 के अंतर्गत विदेशी शरणार्थियों व विस्थापितों को सुरक्षा और सहायता प्रदान की जाती है। इसमें उन्हें स्थायी आवास, वित्तीय सहायता, मेडिकल और शिक्षा सुविधाएं, अधिकारों की संरक्षा, और सामाजिक समावेशन की सुरक्षा प्रदान की जाती है। वहीं परमान्य विदेशी नागरिक (विस्थापित शरणार्थी) अधिनियम 2015 को विदेशी विस्थापित शरणार्थियों को संरक्षा और संबंधित सुविधाएं प्रदान करने के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम के तहत, विदेशी विस्थापित शरणार्थियों को स्थायी आवास, वित्तीय सहायता, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, प्रशिक्षण, कौशल विकास, रोजगार के अवसर, राष्ट्रीय आधार कार्ड, और सामाजिक सुरक्षा की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। इस अधिनियम द्वारा विदेशी विस्थापित शरणार्थियों को संरक्षा का अधिकार प्राप्त होता है और उन्हें वापसी, स्थायी आवास, या अन्य सुरक्षित स्थानों पर बसने का अधिकार दिया जाता है।यह अधिनियम विदेशी विस्थापित शरणार्थियों की मान्यता, सुरक्षा, और सम्मान का माध्यम है। इसके तहत, सरकार उन्हें आराम, सुरक्षा, और आवश्यक सुविधाएं प्रदान करती है ताकि वे अपनी ज़रूरतों को पूरा कर सकें और उनकी पुनर्वास की प्रक्रिया को सुगम बनाया जा सके।

पिछले कई दशकों से पाकिस्तानी विस्थापितों के भारत आने की तादात में इजाफा हुआ है. यह न केवल देश की आंतरिक सुरक्षा एवं गोपनीयता के लिए एक गंभीर समस्या है बल्कि देश के नागरिकों के लिए भी एक चिंता का विषय है. विदित है कि भारत में बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है. सरकार अभी तक भारत के लोगों के रोजगार के लिए ही कोई ठोस उपाय नहीं ढूंढ सकी ऐसे में पाकिस्तानी विस्थापितों को रहने, खाने व रोजगार की व्यवस्था करना एक चुनौती ही है.

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