ईरान-इज़राइल संघर्ष: 2023 से 2025 तक की जंग की कहानी

Aanchalik Khabre
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ईरान-इज़राइल

भूमिका
मध्य पूर्व में जारी ईरान-इज़राइल तनाव एक बार फिर वैश्विक चिंता का विषय बन चुका है। अक्टूबर 2023 से शुरू हुआ यह टकराव अब केवल प्रत्यक्ष युद्ध नहीं, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता, परमाणु हथियारों के खतरों और वैश्विक राजनीति का हिस्सा बन गया है। इस लेख में हम सरल और समझने योग्य भाषा में समझेंगे कि इस संघर्ष की जड़ें कहाँ हैं, अब तक क्या-क्या हुआ है और आगे क्या संभावनाएं हैं।

1. गाजा से शुरू हुआ संकट

7 अक्टूबर 2023 को ईरान समर्थित आतंकवादी संगठन हमास ने इज़राइल पर हमला किया। इसके बाद इज़राइल ने गाज़ा पट्टी में सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी। हमास और हिज़बुल्ला जैसे संगठन, जो ईरान के “रेज़िस्टेंस एक्सिस” का हिस्सा हैं, उन्होंने भी कई मोर्चों से इज़राइल पर हमले शुरू किए। इन संगठनों को ईरान से फंडिंग, हथियार और प्रशिक्षण मिलता है।

ईरान-इज़राइल टकराव अब केवल दो देशों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इराक, सीरिया, लेबनान और यमन तक फैल गया। अमेरिका ने भी जवाबी कार्रवाई की, जिससे यह संघर्ष और गहराता गया।

2. प्रत्यक्ष युद्ध की शुरुआत

2024 में स्थिति और बिगड़ गई। 1 अप्रैल को दमिश्क (सीरिया) में स्थित ईरानी वाणिज्य दूतावास पर इज़राइली हमले में ईरान के दो जनरल और पांच सलाहकार मारे गए। जवाब में, ईरान ने पहली बार इज़राइल पर सीधे 300 से ज्यादा ड्रोन और मिसाइलें दागीं।

अक्टूबर 2024 में ईरान ने 180 बैलिस्टिक मिसाइलें दागीं, जिसके बाद इज़राइल ने उसके मिसाइल कारखानों, एयर डिफेंस सिस्टम और सैन्य ठिकानों पर बड़ा हमला किया। इस सीधी टकराव की वजह से ईरान-इज़राइल दुश्मनी एक नए चरण में पहुँच गई।

3. ईरान की ‘रेज़िस्टेंस एक्सिस’ का पतन

इज़राइल द्वारा हमास और हिज़बुल्ला के कई प्रमुख नेताओं को मार गिराया गया। साथ ही सीरिया में बशर अल-असद की सरकार भी गिर गई, जो ईरान का करीबी था। इससे ईरान-इज़राइल टकराव में ईरान की ताकत कमज़ोर पड़ने लगी।

4. ट्रम्प की वापसी और परमाणु तनाव

2025 में डोनाल्ड ट्रम्प फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति बने और उन्होंने ईरान पर “मैक्सिमम प्रेशर” नीति को दोबारा शुरू किया। हालांकि, साथ ही उन्होंने परमाणु मुद्दे पर बातचीत भी शुरू की, जिससे इज़राइल नाराज़ हो गया।

इज़राइल को शक था कि ईरान गुपचुप तरीके से परमाणु हथियार बना रहा है, जो पूरे क्षेत्र की शक्ति संतुलन को बदल सकता है। इसलिए उन्होंने ईरान के खिलाफ सख्त रुख अपनाया।

5. IAEA की रिपोर्ट और बड़ा हमला

12 जून 2025 को अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने कहा कि ईरान परमाणु संधि के नियमों का उल्लंघन कर रहा है। इसके अगले ही दिन, इज़राइल ने ईरान की परमाणु साइट्स पर बड़ा हमला किया। इस हमले में मिसाइल फैक्ट्री, सैन्य अधिकारी और वैज्ञानिकों को निशाना बनाया गया।

ईरान के विदेश मंत्री ने इसे “युद्ध की घोषणा” बताया और जवाब में बड़ी संख्या में मिसाइलें और ड्रोन इज़राइल पर दागे।

6. अमेरिका की सीधी भागीदारी

इस पूरे ईरान-इज़राइल संघर्ष में अमेरिका लंबे समय तक सीधा हिस्सा नहीं बना, लेकिन 21 जून 2025 को उसने ईरान के फोर्डो, इस्फहान और नतांज में तीन परमाणु ठिकानों पर ‘बंकर बस्टर’ बम गिराए। इससे ईरान के परमाणु कार्यक्रम को थोड़ी देर के लिए रोका गया, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह देरी कुछ ही महीनों की थी।

23 जून को ईरान ने कतर में मौजूद अमेरिकी बेस पर मिसाइल हमला किया, हालांकि किसी की जान नहीं गई। उसी दिन ट्रम्प ने युद्धविराम की घोषणा की। इस युद्धविराम के बाद भी छिटपुट हमले होते रहे, पर शांति बनी रही।

7. ईरान का परमाणु इतिहास

ईरान ने 1957 में परमाणु कार्यक्रम शुरू किया। 1980 के दशक में इराक के साथ युद्ध के दौरान इसे सैन्य दृष्टिकोण से तेज़ किया गया। 2002 में एक ईरानी विपक्षी समूह ने दो गुप्त परमाणु ठिकानों का खुलासा किया। इसके बाद IAEA ने जांच शुरू की।

2006 में संयुक्त राष्ट्र ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए और 2015 में अमेरिका समेत P5+1 देशों ने ईरान के साथ JCPOA नामक परमाणु समझौता किया। इसके तहत ईरान को अपने यूरेनियम भंडार का 98% खत्म करना पड़ा और कई साल तक सख्त निगरानी का सामना करना पड़ा।

2016 में ईरान को करीब 100 अरब डॉलर की राहत मिली, पर उसने बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम जारी रखा, जिससे अमेरिका को आपत्ति थी।

8. ईरान की क्षेत्रीय रणनीति और आतंकी नेटवर्क

हालांकि JCPOA ने परमाणु मुद्दे को सीमित किया, लेकिन ईरान ने हमास, हिज़बुल्ला, हौथी और इराकी मिलिशिया जैसे गुटों को लगातार फंडिंग और ट्रेनिंग देना जारी रखा। IRGC की कुद्स फोर्स ने इन संगठनों को मिसाइल, ड्रोन और हथियार दिए। अमेरिका इसे दुनिया का सबसे बड़ा ‘स्टेट स्पॉन्सर ऑफ टेररिज़्म’ मानता है।

ईरान-इज़राइल संघर्ष में इन समूहों की भूमिका बेहद अहम रही है। इनकी मदद से ईरान ने सीधे युद्ध से बचते हुए इज़राइल पर दबाव बनाया।

9. ट्रम्प और ईरान: पहली टर्म की कहानी

2018 में ट्रम्प ने JCPOA से अमेरिका को अलग कर दिया और ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाए। इससे ईरान की अर्थव्यवस्था चरमरा गई, पर ईरान ने भी परमाणु समझौते की शर्तें तोड़ना शुरू कर दिया।

2019 में अमेरिका ने ईरानी सैन्य संगठन IRGC को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया और मध्य पूर्व में सेना बढ़ा दी। इसी साल ईरान ने अमेरिकी ड्रोन गिरा दिया और अमेरिका ने साइबर अटैक किया। जनवरी 2020 में अमेरिका ने ईरान के कुद्स फोर्स के प्रमुख कासिम सुलेमानी को मार गिराया, जिससे तनाव चरम पर पहुँच गया।

निष्कर्ष

ईरान-इज़राइल संघर्ष केवल दो देशों का मामला नहीं रह गया है। यह अब एक व्यापक भू-राजनीतिक युद्ध बन चुका है, जिसमें परमाणु हथियारों, आतंकवाद, धार्मिक कट्टरता और वैश्विक कूटनीति की बड़ी भूमिका है।

जहाँ इज़राइल अपनी सुरक्षा के लिए हर कदम उठा रहा है, वहीं ईरान इसे अपनी संप्रभुता और अधिकार पर हमला मानता है। अमेरिका की भूमिका इस पूरे संघर्ष में निर्णायक बनी हुई है।

आज का यह ईरान-इज़राइल संघर्ष भविष्य की दिशा तय करेगा—क्या दुनिया एक नए विश्व युद्ध की ओर बढ़ रही है, या कूटनीति से रास्ता निकलेगा? जवाब समय देगा, पर इतना तय है कि मध्य पूर्व अब पहले जैसा नहीं रहेगा।

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