शहीद ऊधम सिंह की 81वीं पुण्यतिथि पर शत शत नमन-आँचलिक ख़बरें-डॉ0 प्रशांत सी बाजपेयी

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26 12 2018 udhamddasingh 18788968

 

स्वतंत्रता संग्राम की क्रांतिकारी धारा के अग्रणी प्रतिनिधि तथा मुहम्मद सिंह आज़ाद नाम रख कर हिंदू-मुस्लिम-सिख एकता का संदेश देने वाले अमर शहीद उधम सिंह थे।🇮🇳
जनरल डायर की हत्या कर के जलियाँवाला बाग नरसंहारक में शहीद हुए सैकड़ों निर्दोष भारतीयों के बलिदान का प्रतिशोध लिया।
महान क्रांतिवीर एवं स्वतंत्रता सेनानी क़ी 81वीं की पुण्यतिथि पर शहीद उधम सिंह को शत् शत् नमन।
ऊधम सिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गाँव में हुआ था। सन 1901 में उधमसिंह की माता और 1907 में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। ऊधमसिंह के बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्तासिंह था जिन्हें अनाथालय में क्रमश: ऊधमसिंह और साधुसिंह के रूप में नए नाम मिले।
अनाथालय में उधमसिंह की जिन्दगी चल ही रही थी कि 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया। वह पूरी तरह अनाथ हो गए। 1919 में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शमिल हो गए। ऊधमसिंह अनाथ हो गए थे, लेकिन इसके बावजूद वह विचलित नहीं हुए और देश की आजादी तथा डायर को मारने की अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए लगातार काम करते रहे।
उधमसिंह 13 अप्रैल 1919 को घटित जालियाँवाला बाग नरसंहार के प्रत्यक्षदर्शी थे। राजनीतिक कारणों से जलियाँवाला बाग में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई। इस घटना से वीर ऊधमसिंह तिलमिला गए और उन्होंने जलियाँवाला बाग की मिट्टी हाथ में लेकर माइकल ओ डायर को सबक सिखाने की प्रतिज्ञा ले ली।
अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह ने विभिन्न नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् 1934 में उधम सिंह लंदन पहुँचे और वहां 9, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। वहां उन्होंने यात्रा के उद्देश्य से एक कार खरीदी और साथ में अपना मिशन पूरा करने के लिए छह गोलियों वाली एक रिवाल्वर भी खरीद ली। भारत का यह वीर क्रांतिकारी माइकल ओ डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगा।
ऊधम सिंह को अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। उधम सिंह उस दिन समय से ही बैठक स्थल पर पहुँच गए। अपनी रिवॉल्वर उन्होंने एक मोटी किताब में छिपा ली। इसके लिए उन्होंने किताब के पृष्ठों को रिवॉल्वर के आकार में उस तरह से काट लिया था, जिससे डायर की जान लेने वाला हथियार आसानी से छिपाया जा सके।
बैठक के बाद दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए ऊधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं, जिससे उसकी तत्काल मौत हो गई। ऊधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला और 4 जून 1940 को ऊधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया। 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फाँसी दे दी गई।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान स्वतंत्रता सेनानी और जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड का बदला लेते हुए देश की आज़ादी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले अमर शहीद सरदार उधम सिंह 🇮🇳के बलिदान दिवस पर उन्हें शत् शत् नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।

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