झुंझुनू-संघर्षों पर विजय प्राप्त कर प्रेरणा बनी मीना-आंचलिक ख़बरें-संजय सोनी

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झुंझुनू,23 जुलाई। 12वीं तक पढ़ी तो परिवार ने शादी कर दी… शादी के कुछ साल बाद पति की मानसिक स्थिति खराब हुई तो पूरे घर का बोझ उसपर आ गया… फिर भी खुद पढ़ी और आज हासिल किया एक मुकाम… अब वह बेचारी नहीं… बल्कि अफसर कहलाएगी। झुंझुनू की एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली अल्प मानदेय कर्मी ने सोमवार को घोषित हुए महिला सुपरवाइजर के परिणाम में सफलता हासिल की है। जिसकी कहानी जितनी संघर्षपूर्ण है… उतनी ही प्रेरणादायी भी…।

हम बात कर रहे हैं झुंझुनू के वार्ड नंबर 17 की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता मीना देवी की। जिसने सोमवार को बाल विकास विभाग के महिला सुपरवाइजर आंगनबाड़ी के पद पर सफलता प्राप्त की है। मीनादेवी करीब 13 साल से आंगनबाड़ी में मानदेय पर कार्यकर्ता के पद पर कार्यरत है। मीनादेवी के परिवार में और कोई नहीं था। उसके पति थे एक बेटा था। पति मानसिक रूप से बीमार थे। ऐसे में मीना के कंधों पर पूरे घर का बोझ था। इसलिए उसने आंगनबाड़ी में काम करके अपना परिवार चलाया। लेकिन कभी हार नहीं मानी।

मीना ने जब आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में काम किया तो उसने देखा महिलाएं कुछ भी कर सकती है। इसलिए उसने पढ़ाई छोड़ने के करीब 12 साल बाद फिर से पढ़ाई की सोची और 2015 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई शुरू की। वह दिन में नौकरी करती सुबह-शाम परिवार को संभालती और रात को पढ़कर वह ग्रेजुएट बन गई। लेकिन इसके बाद भी उसके दुख-दर्द कम नहीं हुए। एक तरफ वह ग्रेजुएट बनी तो दूसरी तरफ बीमार चल रहे उसके पति की मौत हो गई।

लेकिन यहां भी मीना हालातों के सामने नहीं झूकी। पति की मौत के एक महीने बाद ही उसे पता चला कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता में सुपरवाइजर की भर्ती हो रही है। तो उसने बिना कोई सोचे-समझे आवेदन कर दिया। अब सामने समस्या थी पढ़ाई की और कोचिंग की। जिसके पैसे उसके पास नहीं थे। क्योंकि आंगनबाड़ी से मिलने वाले पैसों से या तो घर चला ले या फिर कोचिंग की फीस दे दें। लेकिन वह जिला प्रशासन द्वारा संचालित नि:शुल्क कलेक्टर की क्लास में गई और समय निकालकर वहां पढ़ाई करती और रात-दिन मेहनत की। अब वह महिला सुपरवाइजर बन गई है। जिसका ख्वाब उसने कभी लिया भी नहीं था। लेकिन मीना की मेहनत के आगे  यह बड़ी परीक्षा भी बौनी साबित हो गई।

अब मीना जिस आंगनबाड़ी में एक कार्यकर्ता के रूप में काम करती थी। ऐसी करीब 100 कार्यकर्ताओं के ऊपर सुपरवाइजर होगी। जो लोग अब तक उसे मीना बोलकर बुलाते थे। अब वह मैडम या फिर दीदी के रूप में पुकारी जाएगी। यह सोच-सोचकर मीना भी खुश है। लेकिन खुश उसका परिवार है और हरेक महिला है। जिनके लिए मीना प्रेरणा बनकर सामने आई है।

मीना अपनी सफलता को लेकर बताती है कि उन्हें महिला अधिकारिता विभाग के उप निदेशक विप्लव न्यौला, बाल विकास विभाग के सहायक निदेशक बाबूलाल रैगर, उनकी सीडीपीओ ज्योति रेप्सवाल तथा उषा कुलहरि ने ना केवल मार्गदर्शन दिया। बल्कि उसके अंदर कुछ करने का जुनून भी पैदा किया। कम बोलने वाली मीना के मुताबिक उन्होंने यदि मार्गदर्शन नहीं दिया होता तो वह सुपरवाइजर तो दूर 12वीं से आगे पढ़ाई की भी नहीं सोच पाती।

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