खामखेड़ा में शिक्षा संकट गहराया
मध्यप्रदेश के गुना जिले के आरोन क्षेत्र के खामखेड़ा गांव में सोमवार को उस समय माहौल तनावपूर्ण हो गया, जब शासकीय विद्यालय के छात्रों ने अपने प्राचार्य के ट्रांसफर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। नाराज विद्यार्थियों ने सुबह से ही आरोन-अशोकनगर मार्ग को जाम कर दिया, जिससे दोनों ओर वाहनों की लंबी कतारें लग गईं और यातायात घंटों बाधित रहा।
क्यों हुआ विवाद?
खामखेड़ा का शासकीय विद्यालय कक्षा 10वीं तक संचालित है। यहां लंबे समय से प्राचार्य कालू सिंह डोंडवा पदस्थ थे। वे हाई स्कूल के साथ-साथ प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं की जिम्मेदारी भी संभाल रहे थे।
हाल ही में उनका ट्रांसफर कर दिया गया, जिससे विद्यालय में शिक्षकों की पहले से मौजूद कमी और गहराने लगी। अब स्कूल का संचालन अस्थायी रूप से एक अतिथि शिक्षक के हवाले कर दिया गया है। यही निर्णय छात्रों और अभिभावकों को नागवार गुज़रा और उन्होंने जोरदार विरोध शुरू कर दिया।

छात्रों और अभिभावकों की नाराजगी
प्रदर्शन कर रहे छात्रों का कहना था कि:
पहले से ही विद्यालय में शिक्षकों की भारी कमी थी।
प्राचार्य के जाने से शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह अव्यवस्थित हो जाएगी।
अतिथि शिक्षक पर स्कूल की जिम्मेदारी डालना सही नहीं है।
छात्रों ने चेतावनी दी कि जब तक प्राचार्य को वापस पदस्थ नहीं किया जाता, वे सड़क से नहीं हटेंगे।
प्रशासन की दखलअंदाजी
लगातार हो रही नारेबाजी और चक्काजाम को देखते हुए तहसीलदार धीरेन्द्र गुप्ता पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे। उन्होंने छात्रों से बातचीत की और उन्हें समझाने का प्रयास किया।
प्रशासन ने आश्वासन दिया कि मामला वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचाया जाएगा और उचित समाधान के लिए प्रयास होंगे। हालांकि अपील के बावजूद छात्र अपनी मांग पर अड़े रहे और सड़क से हटने से इनकार कर दिया।
शिक्षा व्यवस्था पर उठे सवाल
खामखेड़ा की यह घटना सिर्फ एक प्राचार्य ट्रांसफर विवाद नहीं, बल्कि ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था में संसाधनों की कमी को भी उजागर करती है।
लंबे समय से पर्याप्त शिक्षक नियुक्त नहीं किए गए हैं।
एक प्राचार्य पर पूरे विद्यालय की जिम्मेदारी डाली जाती है।
अतिथि शिक्षकों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर शिक्षा व्यवस्था में समय रहते सुधार नहीं हुआ तो बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ सकता है।
नतीजा
खामखेड़ा में प्राचार्य का ट्रांसफर शिक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर करता है। छात्रों और अभिभावकों का आक्रोश इस बात का प्रतीक है कि ग्रामीण इलाकों में स्कूलों की स्थिति अब भी चिंता का विषय है। प्रशासन ने भले ही कार्रवाई का भरोसा दिया है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या वास्तव में शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी या फिर ऐसे विवाद बार-बार सामने आते रहेंगे।