भाई दूज के दिन विशेष रूप से की जाने वाली चित्रगुप्त पूजा — हमारे कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले देवता की भक्ति, संस्कृति और लोकजीवन में महत्ता।
दीपावली के बाद का सवेरा
भगवान चित्रगुप्त का रहस्य, जब दीपावली की रोशनी मंद पड़ जाती है और शहर के आकाश में पटाखों का शोर थम जाता है, तब आता है एक ऐसा सवेरा जो सिर्फ पूजा का नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और कर्मों का लेखा-जोखा रखने का दिन होता है।
कहते हैं — हर इंसान के जन्म से मृत्यु तक, उसके हर कर्म, हर शब्द, हर विचार का कहीं न कहीं हिसाब लिखा जाता है।
भगवान चित्रगुप्त कौन हैं?
यह कर्मों के लेखाकार देवता कहलाते है। यमराज के आदेश पर प्रत्येक आत्मा का लेखा लिखते हैं।इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के मन से मानी जाती है हाथ में कलम और लेखा-बही लिए है।
इनका जन्म कार्तिक शुक्ल द्वितीया को हुआ और इसी दिन भाई दूज के अवसर पर इनकी पूजा होती है।यह ज्ञान, सत्य और न्याय के प्रतीक है।
चित्रगुप्त पूजा का महत्व
भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा साथ-साथ मनाई जाती है।यह न केवल भाई-बहन के स्नेह का पर्व है, बल्कि हमारे कर्मों की जिम्मेदारी का दिन भी है।पूजा के दौरान घर और मंदिरों की विशेष तैयारी होती है — सफाई, फूल, रंगोली और दीप सजाना, पंचामृत, प्रसाद और मिठाइयाँ तैयार करना।
कौन पूजा करता है?
विशेष रूप से शिक्षक, विद्यार्थी, लेखक और व्यापारी श्रद्धा पूर्वक पूजा करते हैं।
पूजा में भगवान चित्रगुप्त की मूर्ति या चित्र का पूजन, कलम, दवात और लेखा-बही का पूजन शामिल है।
दरभंगा में चित्रगुप्त पूजा का उत्सव
दरभंगा में यह पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि लोकजीवन और संस्कृति का उत्सव बन जाती है।लोकगीत, नृत्य और रंगारंग नाट्य प्रस्तुतियाँ इस दिन का अहम हिस्सा हैं।जनसाधारण और क्षेत्रीय विधायक भी कार्यक्रम में शामिल होकर इसे भव्य बनाते हैं।
पूजा और कार्यक्रम के बाद प्रसाद वितरण और दीप जलाना, सुरक्षा और खुशहाली की कामना का प्रतीक होता है।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संदेश
यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारे विचार, शब्द और कर्म हमेशा दर्ज होते हैं।भाई दूज और चित्रगुप्त पूजा एक साथ होने के कारण स्नेह, आस्था और आत्मचिंतन का संगम बनती है।
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