मुंबई में कबूतरों को सार्वजनिक रूप से दाना डालना पड़ सकता है आपको महंगा
– आईपीसी नहीं, अब BNS के अंतर्गत FIR; दोषी पाए गए तो जेल भी हो सकती है
पृष्ठभूमि: कबूतर तथा मुंबई का सांस्कृतिक रिश्ता
मुंबई में कबूतरों को दाना खिलाने की परंपरा दशकों पुरानी है। इस रीति की उत्पत्ति गुजराती और जैन समुदायों द्वारा की गई, जो इसे पुण्य कर्म मानते आए हैं। ‘कबूतरखाने’– ये विशेष स्थान, जैसे कि दादर, सीएसएमटी, महिम आदि, मंदिरों, जैन तीर्थ और ट्रस्ट के आसपास स्थापित हैं और इनकी स्थापना सन् 1930‑40 के दशक के आस‑पास हुई मानी जाती है। इन जगहों पर प्रतिदिन भक्तजन भोजन लेकर आते, बचत अनाज डालते और कबूतरों को पालतू समझकर सेवा की भावना से दाना देते थे|
उच्च न्यायालय का आदेश: सार्वजनिक स्वास्थ्य साधनों को प्राथमिकता
31 जुलाई 2025 को बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक आदेश जारी किया: मुंबई में सार्वजनिक रूप से कबूतरों को दाना डालने पर पूरी तरह प्रतिबंध लागू करें, और जो लोग इसका उल्लंघन करें—उन पर FIR दर्ज हो। अदालत ने स्पष्ट किया कि कबूतरों की बढ़ी आबादी से सांस्कृतिक विरासत को तो खतरा नहीं लेकिन स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को गंभीर जोखिम है—विशेषकर respiratory infections और पैथोजन फैलाव का। अदालत ने इस निर्देश से जुड़ी पाबंदी को सख्ती से लागू करने को कहा और BMC को मामलों के दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया
पहला FIR: महिम, एलजे रोड – अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ
सिर्फ दो दिन बाद, 3 अगस्त को महिम पुलिस ने मुंबई के पहले–ever FIR दर्ज किया—एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ जिसे सुबह 6:50 बजे एलजे रोड पर कबूतरों को दाना डालते देखा गया। अपराध में BNS की धारा 223 (सरकारी आदेश का उल्लंघन), धारा 270 (संक्रामक रोग फैलाने वाला कुप्रवृत्ति), और धारा 271 (क्वारंटीन नियमों का उल्लंघन) शामिल है। व्यक्ति का वाहन नंबर अस्पष्ट था, पुलिस अब CCTV और आसपास के सबूतों के आधार पर पहचान करने की कोशिश कर रही है
प्रशासन की कड़ी कार्रवाई: कबूतरखानों पर निगरानी और जुर्माना
BMC ने अदालत के आदेशानुसार कदम उठाना शुरू किया:
51 kabutarkhanas को सील किया गया, जिसमें Grade-II heritage साइट दादर कबूतरखाना भी शामिल है, जिसे बांस व प्लास्टिक से ढंक दिया गया और बिजली बंद कर दी गयी
CCTV निगरानी व फ़ाइन प्रणाली लागू की गई। 13 जुलाई से 3 अगस्त तक कुल 142 व्यक्तियों पर ₹68,700 का जुर्माना लगाया गया, जिसमें अकेले दादर से ही 61 लोग ₹22,200 का जुर्माना चुका चुके हैं
पुलिस तीन शिफ्टों में ड्यूटी दे रही है ताकि feeding की घटना तुरंत रोकी जाए
स्वास्थ्य‑वैज्ञानिक कारण: कबूतरों से फैलने वाले रोग
BMC और न्यायालय ने कई गंभीर स्वास्थ्य की कसौटी को आधार बनाया है:
Hypersensitivity pneumonitis (पिजन लंग), जो कबूतर के मल और पंखों की सूखी बिखरी सामग्री से फंगल स्पोर्स के कारण फेफड़ों में एलर्जी और संक्रमण पैदा कर सकती है
Cryptococcosis, Histoplasmosis जैसे संक्रमण, और लंबी अवधि में अस्थिर श्वसन संबंधी विकार जैसे कि ब्रोंकाइटिस और एलर्जी।
इन रोगों के जोखिम खासकर अस्थमा, बुजुर्ग, बच्चे और फेफड़ों से जुड़ी बीमारी वाले लोगों के लिए अधिक है|
सार्वजनिक प्रतिक्रिया: विरोध, धार्मिक भावनाएँ और तनाव
हालांकि प्रशासन ने स्वास्थ्य‑निहित कारणों से कठोर कदम उठाए, लेकिन इसके चलते व्यापक विरोध भी शुरू हो गया:
जैन समुदाय और गायत्री‑समुदायों ने दादर कबूतरखाना पर आयोजित तेज विरोध किया। जैन सिद्धांत में पवित्र कर्म माना जाने वाला यह कार्य रोकना धर्म‑विरोधी बताया गया।
500 से अधिक प्रदर्शनकारियों ने कोलाबा से लेकर गेटवे ऑफ इंडिया तक विरोध मार्च निकाला। जैन संतों ने महापूजा और उपवास की चेतावनी दी, जबकि सामुदायिक प्रतिनिधियों ने अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की भी बात कही
दूसरी ओर, कई नागरिकों ने समर्थित किया कि सार्वजनिक जगहों पर अनाज डालना यातायात, सफाई और दाने‑फूल से गंदगी उत्पन्न करता है—जो सार्वजनिक असुविधा और स्वास्थ्य जोखिम है
राज्य सरकार की पहल: मध्य मार्ग तलाशने की कोशिश
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने प्रतिक्रिया स्वरूप August 4 को बैठक बुलाई। इसमें प्रमुख नागरिकों को भी बुलाया गया ताकि एक संतुलित समाधान निकाला जा सके—जैसे अस्थायी निगरानी‑युक्त feeding zones की व्यवस्था BKC, महालक्ष्मी रेसकोर्स, और आरे कॉलेज जैसे स्थानों पर स्थापित करना, ताकि धार्मिक भावनाओं व सार्वजनिक हित में सामंजस्य स्थापित किया जा सके
हाई कोर्ट में आगे क्या? अगला सुनवाई 7 अगस्त को
बॉम्बे हाई कोर्ट ने विभिन्न पक्षों—सनातन समाज, BMC, Mumbai Police, KEM Hospital (पल्मोनरी विभाग प्रमुख), AWBI, राज्य‑केंद्र सरकार आदि से मेडिकल डेटा और रिपोर्ट्स मांगे हैं। अगली सुनवाई 7 अगस्त 2025 को निर्धारित है, जिसमें अदालत इन सब सबूतों पर निर्णय करेगी कि कबूतर‑दाना‑पाबंदी वैधानिक व तर्कसंगत है या सामाजिक‑धार्मिक परंपरा की दृष्टि से न होती हुई है
निष्कर्ष: समाज, कानून और सांस्कृतिक परंपरा में संतुलन की चुनौती
मुंबई की इस घटना ने दिखाया कि कभी शांतिप्रिय धार्मिक कृत्य अब न्यू क्रिमिनल ऑफेन्स बन गया है। सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, और गंदगी‑सफाई जैसे आधुनिक चिंताओं और धार्मिक विश्वास, सांस्कृतिक भावना के बीच संघर्ष स्पष्ट हो गया है।
अदालत और प्रशासन ने स्पष्ट स्वास्थ्य‑खतरा सिद्ध किया
वहीं, धार्मिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से यह कृत्य पक्षपाती, संवेदनशील और एतिहासिक रहा है
अब यह कोर्ट सुनवाई, प्रशासकीय समझौता प्रयास और सार्वजनिक प्रतिक्रिया किन दिशा में ले जाएगी—ये आने वाले हफ़्तों में स्पष्ट होगा।
इस नयी लहर में मुंबई नगरसंस्कृति, कानून‑व्यवस्था और सामुदायिक विश्वास की कहानी एक नए मोड़ पर पहुँच चुकी है।
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