प्रस्तावना:-
भारत भूमि पर धर्म, आस्था और रहस्यों से जुड़े अनेक चमत्कारी स्थल हैं, जिनमें उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर विशेष महत्व रखता है। यह मंदिर न केवल अपनी रहस्यमयी संरचना और अद्भुत मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसकी सबसे खास बात है कि इसके कपाट वर्षभर में केवल एक दिन—नागपंचमी के अवसर पर ही खुलते हैं। इस लेख में हम नागचंद्रेश्वर मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विशेषताओं को गहराई से समझेंगे।
नागचंद्रेश्वर मंदिर का इतिहास और धार्मिक महत्व:-
नागचंद्रेश्वर मंदिर की स्थापना प्राचीन काल में हुई मानी जाती है। यह मंदिर भगवान शिव के नाग रूप की उपासना का प्रमुख केंद्र है। महाकाल परिसर में स्थित मंदिर होने के कारण इसका महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि उज्जैन स्वयं भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक “महाकालेश्वर” का धाम है।
इस मंदिर में स्थापित मूर्ति में भगवान शिव को नागों के स्वामी के रूप में दर्शाया गया है। उनके सिर पर चंद्रमा सुशोभित है और उनके गले में सर्प लिपटा हुआ है। इस अनूठी प्रतिमा को नागचंद्रेश्वर मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता माना जाता है।
नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन में कहां है?
बहुत से भक्तों को यह जानने की जिज्ञासा होती है कि नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन में कहां है। यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर परिसर के ऊपरी तल पर स्थित है। यह स्थान नित्य पूजा-अर्चना के लिए खुला नहीं रहता, बल्कि विशेष अवसर पर ही इसके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है।
अगर आप महाकालेश्वर मंदिर के मुख्य गर्भगृह के दर्शन के बाद ऊपरी तल की ओर बढ़ते हैं, तो नागचंद्रेश्वर मंदिर की ओर जाने वाला मार्ग मिल जाता है। परंतु यह मार्ग सामान्यतः बंद रहता है और विशेष प्रबंध के अंतर्गत ही खोला जाता है।
नागचंद्रेश्वर मंदिर के कपाट कब खुलते हैं?
इस रहस्यमयी मंदिर की सबसे अनोखी बात यह है कि नागचंद्रेश्वर मंदिर के कपाट कब खुलते हैं – इसका उत्तर एक ही है: साल में सिर्फ एक दिन – नागपंचमी के दिन। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु उज्जैन पहुंचते हैं ताकि उन्हें भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन प्राप्त हो सकें।
नागपंचमी के दिन मंदिर के कपाट रात्रि 12 बजे से अगले दिन रात्रि 12 बजे तक यानी पूरे 24 घंटे के लिए खुले रहते हैं। इस दौरान प्रशासन विशेष व्यवस्थाएं करता है ताकि अधिक से अधिक श्रद्धालु बिना किसी अवरोध के दर्शन कर सकें।
नागचंद्रेश्वर मंदिर : जिसके द्वार सिर्फ नागपंचमी पर ही खुलते हैं|
(अंजनी सक्सेना)
आपने भगवान विष्णु को सर्प शैया पर विराजमान तो अनेक जगह देखा होगा लेकिन एक ऐसा भी मंदिर है जहाँ भगवान भगवान शंकर सर्प शैय्या पर विराजमान हैं। इस मंदिर को नागचंद्रेश्वर के नाम से जाना जाता है और यह मंदिर वर्ष में केवल एक बार नागपंचमी के दिन ही खोला जाता है। यह मंदिर मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में है। महाकाल मंदिर के शिखर तल पर स्थापित इस नागचंद्रेश्वर प्रतिमा के दर्शन करने के लिए उज्जैन में प्रतिवर्ष इस दिन लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन अद्भुत ,अनुपम और विलक्षण हैं। यहां भगवान महाकाल विविध स्वरुपों में विराजमान हैं। वे कहीं स्वप्नेश्वर महादेव के रुप में दर्शन देते हैं तो कहीं बृहस्पतेश्वर महादेव के रुप में। अकेले महाकाल परिसर में ही नवग्रहों से लेकर अन्य अनेक अनगिनत रुपों में भगवान महाकाल विराजमान हैं। इसी मंदिर में वे भगवान नागचंद्रेश्वर भी विराजमान हैं जो सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही अपने भक्तों को दर्शन देते हैं।
लाखों करोड़ों शिवभक्तों की आस्था का केंद्र नागचन्द्रेश्वर मंदिर एक अद्वितीय मंदिर है जो भगवान शिव और नाग देवता को समर्पित है। महाकाल परिसर के गर्भग्रह में देवाधिदेव महाकाल अपने विशाल स्वरुप में स्थापित हैं। इसी मंदिर के ठीक ऊपर भगवान सदाशिव ओंकारेश्वर स्वरुप में विराजित हैं और इनके ठीक ऊपर भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर हैं।
नागचन्द्रेश्वर मंदिर वर्ष में केवल एक दिन, नाग पंचमी के अवसर पर खुलता है। स्कंद पुराण के अवंत्यखंड में नागचन्द्रेश्वर का उल्लेख है। पुराणों में वर्णित कथाओं और विवरणों के अनुसार, नागचन्द्रेश्वर मंदिर भगवान शिव और नागराज तक्षक से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि सर्पों के राजा तक्षक ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घनघोर तपस्या की। नागराज की कठोर तपस्या से भगवान शंकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें अमरता का वरदान प्रदान किया। महादेव की कृपा पाकर नागराज तक्षक महाकाल वन में ही वास करना चाहते थे लेकिन वे यह भी चाहते थे कि इससे उनकी शिवाराधना में कोई विघ्न न आए। उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए इस मंदिर के द्वार वर्ष में केवल एक दिन नागपंचमी पर ही खोले जाते हैं।
परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के करीब इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया परिवार के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। श्री नागचंद्रेश्वर भगवान की यह मनमोहक प्रतिमा ग्यारहवीं सदी में नेपाल से लाकर स्थापित की गयी है। इस मूर्ति में भगवान शिव, माता पार्वती, दोनों पुत्रों गणेशजी और स्वामी कार्तिकेय सहित विराजमान हैं। मूर्ति में ऊपर की ओर सूर्य और चन्द्रमा भी है। माना जाता है कि संपूर्ण विश्व में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान शिव पूरे परिवार के साथ नाग की शैय्या पर विराजमान हैं। इसमें नागचंद्रेश्वर सात फनों से सुशोभित हैं। मान्यता है कि उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।
नागपंचमी के अवसर पर नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा की जाती है। यहां भगवान नागचंद्रेश्वर की त्रिकाल पूजा की परंपरा है। त्रिकाल पूजा का मतलब होता है,तीन अलग-अलग समय पर अलग अलग पूजा। जिसमें सबसे पहली पूजा मध्यरात्रि में महानिर्वाणी होती है, दूसरी पूजा नागपंचमी के दिन दोपहर में शासन द्वारा की जाती है और तीसरी पूजा नागपंचमी की शाम को भगवान महाकाल की पूजा के बाद मंदिर समिति करती है। इसके बाद रात बारह बजे फिर से एक वर्ष के लिए कपाट बंद कर दिए जाते हैं।
उज्जैन नागपंचमी के दर्शन कैसे करें?
हर साल नागपंचमी के दिन उज्जैन नागपंचमी के दर्शन कैसे करें—यह सवाल हजारों श्रद्धालुओं के मन में होता है। इस दिन उज्जैन प्रशासन विशेष सुरक्षा, व्यवस्था और भीड़ नियंत्रण के उपाय करता है।
- ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन या टोकन सिस्टम: कुछ वर्षों में भीड़ के कारण दर्शन के लिए ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य किया गया है।
- प्रवेश और निकास मार्ग अलग: ताकि भीड़भाड़ न हो और दर्शन शीघ्रता से हो सके।
- प्रशासनिक मार्गदर्शन: मंदिर परिसर में वालंटियर और पुलिस बल तैनात रहते हैं।
- धार्मिक अनुशासन:-
भक्तों से अपील की जाती है कि वे दर्शन करते समय धैर्य और श्रद्धा बनाए रखें।
नागचंद्रेश्वर मंदिर के दर्शन का यह वार्षिक अवसर एक अलौकिक अनुभव प्रदान करता है, जिसे हर भक्त जीवन में एक बार अवश्य अनुभव करना चाहता है।
नाग और चंद्रमा की प्रतीकात्मकता:-
भगवान शिव के आभूषणों में नागों का विशेष स्थान है। वे नागराज वासुकी को गले में धारण करते हैं और उनके सिर पर चंद्रमा विराजमान रहता है। नागचंद्रेश्वर मंदिर इसी प्रतीकात्मकता को मूर्त रूप में प्रस्तुत करता है। यहाँ शिव की वह छवि स्थापित है जो शांति, रहस्य और शक्ति का मेल है।
इस मंदिर में दर्शन करने से पितृ दोष, कालसर्प दोष, और नाग दोष से मुक्ति मिलने की मान्यता है। नागचंद्रेश्वर मंदिर इन सभी आध्यात्मिक समस्याओं के समाधान का केंद्र माना जाता है।
महाकाल परिसर में स्थित मंदिर की विशेषता:-
नागचंद्रेश्वर मंदिर महाकाल परिसर में स्थित मंदिर है, इसलिए इसे विशेष रूप से पवित्र माना गया है। महाकालेश्वर शिवलिंग की महत्ता के साथ-साथ यह मंदिर शिव के एक अद्भुत रूप की पूजा का स्थान है। यह समस्त भारत में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जो सिर्फ एक दिन के लिए ही दर्शनार्थ खुलता है।
महाकाल मंदिर तीन तल पर निर्मित है—नीचे महाकालेश्वर, मध्य में ओंकारेश्वर और सबसे ऊपर नागचंद्रेश्वर मंदिर। यह त्रिस्तरीय संरचना भारतीय मंदिर वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है।
नागचंद्रेश्वर मंदिर के दर्शन का आध्यात्मिक प्रभाव:-
नागचंद्रेश्वर मंदिर की महत्ता केवल पौराणिक या सांस्कृतिक ही नहीं है, बल्कि यह एक शक्तिशाली आध्यात्मिक केंद्र भी है। मान्यता है कि जो श्रद्धालु इस मंदिर के दर्शन पूरी श्रद्धा और नियमों के साथ करता है, उसे जीवन में शांति, समृद्धि और संकटों से मुक्ति प्राप्त होती है।
यहां दर्शन मात्र से ही कालसर्प योग जैसे ग्रह दोषों से राहत मिलती है। साथ ही, संतान प्राप्ति, विवाह में बाधा, और पितृ दोष से जुड़ी समस्याओं में भी इस मंदिर की पूजा चमत्कारी मानी जाती है।
नागचंद्रेश्वर मंदिर के दर्शन की तैयारी कैसे करें?:-
अगर आप नागपंचमी के दिन नागचंद्रेश्वर मंदिर के दर्शन करना चाहते हैं, तो निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है:
यात्रा की पूर्व योजना: होटल बुकिंग, यात्रा टिकट आदि पहले से कर लें, क्योंकि नागपंचमी के दौरान भारी भीड़ होती है।
ऑनलाइन जानकारी: उज्जैन प्रशासन द्वारा जारी सूचना, वेबसाइट या हेल्पलाइन से अपडेट लेते रहें।
शारीरिक तैयारी: लंबी कतार और प्रतीक्षा के लिए तैयार रहें।
धार्मिक भावना: यह एक विशिष्ट अवसर है, इसलिए श्रद्धा, संयम और नियमों का पालन करें।
निष्कर्ष:-
नागचंद्रेश्वर मंदिर न केवल एक मंदिर है, बल्कि यह शिवभक्ति, नाग आराधना और चंद्रमा के प्रतीकात्मक महत्व को समेटे एक दिव्य स्थल है। इसका रहस्यमयी स्वरूप, एक दिन के दर्शन का विशेष अवसर, और महाकाल परिसर में स्थित मंदिर होने का गौरव इसे अत्यंत विशिष्ट बनाता है।
यदि आप कभी उज्जैन जाएं, तो इस मंदिर की कहानी को जानना और इसके दर्शन का प्रयास अवश्य करें। नागचंद्रेश्वर मंदिर के दर्शन से न केवल धार्मिक संतोष मिलता है, बल्कि यह आध्यात्मिक जीवन में एक अनमोल अनुभव बन जाता है।
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