परिचय
भारत प्राचीन काल से ही विश्व में ज्ञान, शिक्षा और संस्कृति का केंद्र रहा है। यहाँ के विश्वविद्यालय और गुरुकुल केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के विद्वानों को आकर्षित करते थे। इन्हीं में से एक महान शिक्षा केंद्र था नालंदा विश्वविद्यालय (Nalanda University)। यह विश्वविद्यालय न सिर्फ़ भारत का बल्कि पूरी दुनिया का पहला रेज़िडेंशियल (Residential) और अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय था, जहाँ हजारों विद्यार्थी और आचार्य साथ रहते, पढ़ते और शोध कार्य करते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय का नाम सुनते ही भारत की गौरवशाली शैक्षिक परंपरा का स्मरण होता है। आइए विस्तार से जानते हैं नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास, स्थापत्य, शिक्षण पद्धति, पतन और पुनर्निर्माण की गाथा।
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना पाँचवीं शताब्दी (5th Century CE) में कुमारगुप्त प्रथम (Gupta dynasty) ने की थी।
- यह विश्वविद्यालय बिहार राज्य के नालंदा जिले में स्थित था।
- “नालंदा” शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ है – ज्ञान देने वाला अथवा ज्ञान की अनंत धारा।
- यह विश्व का पहला विश्वविद्यालय था जहाँ हज़ारों विद्यार्थी और शिक्षक एक साथ अध्ययन और अध्यापन करते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय का विकास
स्थापना के बाद आने वाले शासकों ने इसे निरंतर विकसित किया।
- गुप्त राजाओं के बाद हर्षवर्धन (7वीं शताब्दी) और पाली वंश (पाल वंश के शासक) ने इसे और आगे बढ़ाया।
- विशेषकर पाल वंश के राजाओं ने यहाँ बौद्ध शिक्षा को और मज़बूत किया।
- यहाँ केवल भारत ही नहीं, बल्कि तिब्बत, चीन, कोरिया, जापान, श्रीलंका, मंगोलिया, फारस (Iran), और मध्य एशिया से भी विद्यार्थी पढ़ने आते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय का विशाल परिसर
पुरातत्व खुदाई और ऐतिहासिक विवरणों से हमें पता चलता है कि नालंदा विश्वविद्यालय बेहद विशाल और योजनाबद्ध था।
- विश्वविद्यालय में 8 विशाल कंपाउंड, 10 मंदिर, 427 ईंटों के कमरे (कक्षाएँ), और कई अध्ययन हॉल थे।
- यहाँ एक बहुत बड़ी लाइब्रेरी “धर्मगंज” (Dharmaganja) थी जिसमें लाखों ग्रंथ रखे थे।
- लाइब्रेरी के तीन मुख्य भवन थे:
- रत्नसागर
- रत्नोदधि
- रत्नरंजक
कहा जाता है कि इस लाइब्रेरी में इतने पांडुलिपियाँ थीं कि जब इसे जलाया गया तो कई महीने तक आग बुझ नहीं पाई।
नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा प्रणाली
- यहाँ बौद्ध धर्म के साथ-साथ वेद, व्याकरण, गणित, ज्योतिष, चिकित्सा, तंत्र, राजनीति, शास्त्र और दर्शन की शिक्षा दी जाती थी।
- प्रवेश परीक्षा बेहद कठिन होती थी। केवल योग्य और मेधावी छात्र ही यहाँ प्रवेश ले पाते थे।
- एक समय में यहाँ 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक रहते थे।
- विद्यार्थी को आचार्य के मार्गदर्शन में शोध करना अनिवार्य था।
प्रसिद्ध विद्वान और यात्री
नालंदा विश्वविद्यालय से कई महान विद्वान जुड़े रहे, जैसे:
- आर्यभट – महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री
- धर्मपाल, शीलभद्र, रत्नसिद्धि – बौद्ध विद्वान
- ह्वेनसांग (Xuanzang) – चीन के यात्री जिन्होंने यहाँ कई वर्ष अध्ययन किया
- इत्सिंग (I-Tsing) – चीनी बौद्ध भिक्षु जिन्होंने नालंदा का उल्लेख विस्तार से किया
- इन यात्रियों की लिखी पुस्तकों से नालंदा विश्वविद्यालय का पूरा चित्र मिलता है।
नालंदा विश्वविद्यालय का पतन
इतिहासकारों के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय का पतन 12वीं शताब्दी (1193 ई.) में हुआ।
- तुर्क आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने विश्वविद्यालय पर हमला किया।
- लाखों पांडुलिपियाँ और ग्रंथ जलाकर राख कर दिए गए।
- हजारों विद्वानों और भिक्षुओं की हत्या कर दी गई।
- इस विनाश के बाद नालंदा विश्वविद्यालय कभी पुनः अपने पुराने स्वरूप में नहीं लौट सका।
नालंदा विश्वविद्यालय का महत्व
- यह प्राचीन भारत की शैक्षिक श्रेष्ठता का प्रमाण है।
- यह दुनिया का पहला अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय था।
- यहाँ का लाइब्रेरी सिस्टम और होस्टल व्यवस्था आधुनिक शिक्षा संस्थानों के लिए प्रेरणा है।
- यह शिक्षा का केंद्र होने के साथ-साथ संस्कृति और ज्ञान विनिमय (Knowledge Exchange) का भी प्रमुख स्थल था।
नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण
भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को पुनः जीवित करने का प्रयास किया।
- 2010 में नालंदा विश्वविद्यालय पुनर्निर्माण अधिनियम (Nalanda University Act, 2010) पारित हुआ।
- 2014 में नया नालंदा विश्वविद्यालय (Rajgir, Bihar के पास) स्थापित किया गया।
- इस प्रोजेक्ट में भारत के साथ 18 देशों ने सहयोग किया, जैसे – चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर आदि।
- नया नालंदा विश्वविद्यालय एक अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है, जहाँ पर्यावरण, इतिहास, बौद्ध अध्ययन, विकास अध्ययन जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं।
- 2025 तक यहाँ का परिसर अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस हो चुका है।
नालंदा विश्वविद्यालय और आज का भारत
नालंदा विश्वविद्यालय आज भी भारत की प्राचीन शैक्षिक धरोहर और आधुनिक ज्ञान शक्ति का प्रतीक है।
- यह हमें याद दिलाता है कि भारत शिक्षा, संस्कृति और शोध में कितना आगे था।
आज जब भारत फिर से शिक्षा और टेक्नोलॉजी में विश्व गुरु बनने की ओर बढ़ रहा है, तो नालंदा विश्वविद्यालय हमारी प्रेरणा है।
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