भूमिका: जब भारत ज्ञान का केंद्र था
भारत सदियों तक दुनिया का ज्ञान गुरु (विश्वगुरु) रहा। उस गौरवशाली परंपरा में नालंदा विश्वविद्यालय एक चमकता हुआ तारा था। यह एक ऐसा केंद्र था जहाँ न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया से छात्र शिक्षा प्राप्त करने आते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास 5वीं शताब्दी में शुरू होता है। इसकी स्थापना गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त प्रथम (लगभग 427 ई.) ने की थी। यह विश्वविद्यालय बिहार के राजगीर के पास स्थित था और इसे बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा शिक्षा केंद्र माना जाता था।
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यहाँ 10,000 से अधिक छात्र और 2,000 शिक्षक थे।
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यह दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय था।
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यहाँ तर्क, दर्शन, आयुर्वेद, गणित, ज्योतिष, चिकित्सा, व्याकरण, बौद्ध धर्म और अन्य विषय पढ़ाए जाते थे।
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विश्वविद्यालय में 9 मंजिला लाइब्रेरी थी, जिसे ‘धर्मगंज’ कहा जाता था। इसके तीन भाग — रत्नसागर, रत्नरंजक और रत्नोदधि — विशाल ज्ञानकोष थे।
Nalanda University History in Hindi
यदि आप Nalanda University History in Hindi में खोज रहे हैं, तो जान लीजिए कि यह विश्वविद्यालय विश्व का पहला ऐसा संस्थान था जहाँ विदेशों से भी विद्यार्थी आते थे। तिब्बत, चीन, जापान, कोरिया और श्रीलंका जैसे देशों से छात्र यहाँ अध्ययन के लिए आते थे।
चीन के यात्री ह्वेनसांग (Xuanzang) और इत्सिंग (Yijing) ने यहाँ कई साल रहकर अध्ययन किया और नालंदा के वैभव को दुनिया तक पहुँचाया।
नालंदा को किसने जलाया?
इतिहास का सबसे दुखद सवाल — नालंदा को किसने जलाया?
नालंदा विश्वविद्यालय को 1193 ईस्वी में एक अफगान सेनापति मोहम्मद बख्तियार खिलजी ने जलाया। बख्तियार ने नालंदा को ‘काफिरों का अड्डा’ मानते हुए नष्ट कर दिया।
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यह हमला न केवल एक शिक्षा संस्थान पर था, बल्कि भारत की आत्मा पर भी था।
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उसने हजारों पुस्तकों से भरी नालंदा की लाइब्रेरी में आग लगा दी।
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कहा जाता है कि लाइब्रेरी में लगी आग तीन महीने तक जलती रही।
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हजारों भिक्षुओं और शिक्षकों को मारा गया या भगा दिया गया।
बख्तियार खिलजी और नालंदा: विनाश का प्रतीक
बख्तियार खिलजी और नालंदा का संबंध भारत के सबसे बड़े बौद्ध शिक्षा संस्थान के विनाश से है। बख्तियार को घोड़ों के इलाज के लिए ब्राह्मण वैद्य की सलाह ने चमत्कृत कर दिया। इससे वह नाराज़ हुआ कि कैसे एक “अशिक्षित” ब्राह्मण उसका इलाज कर सका — और उसने सभी शास्त्रों और ग्रंथों को जलाने का आदेश दे दिया।
इसने भारत की ज्ञान परंपरा को एक सदियों लंबा आघात पहुंचाया।
प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली की महानता
प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली केवल किताबी ज्ञान नहीं थी, बल्कि:
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नैतिकता और आत्म-ज्ञान पर आधारित थी।
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गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित थी।
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छात्रों को ध्यान, योग, आत्म-नियंत्रण और व्यवहारिक जीवन सिखाया जाता था।
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नालंदा, तक्षशिला और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालय इसका प्रमाण हैं।
नालंदा इसका सबसे सुंदर उदाहरण था, जहाँ ज्ञान ही धर्म था।
आज का नालंदा विश्वविद्यालय: पुनर्जन्म
21वीं सदी में, भारत सरकार ने नालंदा के पुनर्निर्माण की पहल की। 2010 में नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम पारित हुआ और 2014 में इसका नया परिसर शुरू हुआ।
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इसका उद्देश्य: प्राचीन नालंदा की भावना को आधुनिक रूप देना।
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यह आज भी अंतरराष्ट्रीय छात्रों को आकर्षित कर रहा है।
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इसमें विज्ञान, पर्यावरण, इतिहास, बौद्ध अध्ययन, अंतरराष्ट्रीय संबंध जैसे विषय पढ़ाए जा रहे हैं।
निष्कर्ष: राख से फिर उठा है नालंदा
नालंदा विश्वविद्यालय का इतिहास केवल अतीत की एक कहानी नहीं है — यह एक प्रेरणा है कि शिक्षा और ज्ञान को कोई आग जला नहीं सकती।
नालंदा को किसने जलाया यह प्रश्न जितना दुखद है, उतनी ही उम्मीद की बात है कि आज नालंदा फिर से शिक्षा का प्रकाश फैला रहा है।
प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली को जानना, समझना और अपनाना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
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