Narendra Modi’s Historic Visit| जब मॉरीशस में भारतीयता का जश्न मना | A Celebration of Indianness in Mauritius

News Desk
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नरेंद्र मोदी का ऐतिहासिक दौरा: जब मॉरीशस में भारतीयता का जश्न मना
समुद्र की लहरों में बसा एक भारत: मॉरीशस की सांस्कृतिक विरासत
मॉरीशस का अनमोल बंधन: जब बिहार की महक अफ्रीका के द्वीप पर बसी
जब मॉरीशस की धरती पर गूंजा “भारत माता की जय”
गांधी के आदर्शों से आजादी तक: मॉरीशस की प्रेरणादायक कहानी
मॉरीशस और भारत: रिश्तों की कहानी जो दिलों से जुड़ी है
मॉरीशस: हिंद महासागर में भारतीयता की अमर गाथा

समुद्र की लहरों पर झूमता एक छोटा सा द्वीप। सूरज की पहली किरणें जब हिंद महासागर को सुनहरी आभा से भर देती हैं, तो वहां की हवाओं में एक अलग ही खुमारी होती है। यह कहानी है उस द्वीप की, जहां भारत की खुशबू बसी है। एक ऐसा देश जो अफ्रीका के पूर्वी छोर पर बसा है, लेकिन जिसकी आत्मा में भारतीयता का रस है। नाम है मॉरीशस।

नरेंद्र मोदी का ऐतिहासिक दौरा

2025। मार्च का महीना।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मॉरीशस की धरती पर कदम रखते हैं। एयरपोर्ट पर भारतीय मूल के लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है। महिलाओं ने पारंपरिक बिहारी गीतों से उनका स्वागत किया। यह दृश्य अद्भुत था।

प्रधानमंत्री मोदी ने प्रवासी भारतीयों से मुलाकात की और उनके हौसले को सलाम किया। उन्होंने कहा,
यह मेरी नहीं, भारत माता की जयकार है। मॉरीशस के लोग हमारी धरोहर हैं।”
अगले दिन उन्होंने मॉरीशस के राष्ट्रीय दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। इस ऐतिहासिक मौके पर उन्होंने शिवुसागर रामगुलाम की विरासत को नमन किया और भारत-मॉरीशस के संबंधों को और मजबूत बनाने का संकल्प लिया।

मॉरीशस की धरती पर भारतीयता का आगमन

वो दौर था अंग्रेजी हुकूमत का। भारत की मिट्टी से बिछड़ कर, हजारों मजदूरों को गिरमिटिया बना कर मॉरीशस की धरती पर भेजा गया। इनकी आंखों में उम्मीद की चमक थी, लेकिन दिल में पीड़ा। अपने वतन से दूर, अजनबी धरती पर पांव रखते ही उनके कदमों में बेड़ियों की खनक थी।

मजदूरों में से अधिकतर लोग बिहार के थे। भोजपुर जिले के हरिगांव से लेकर छोटे-छोटे गांवों तक से लोग अपने सपनों के पीछे भागते हुए यहां पहुंचे। कोई अपनी किस्मत संवारने आया था, तो कोई मजबूरी में पराया हो गया था।

गिरमिटिया मजदूरों की संघर्षगाथा

मॉरीशस में गिरमिटिया मजदूरों का जीवन आसान नहीं था। बगानों में दिन-रात काम करना, अनजान लोगों के साथ रहना और अजनबी भाषा के बीच खुद को साबित करना। लेकिन भारतीय संस्कृति ने उन्हें हमेशा एकजुट रखा। भोजपुरी गीत, संस्कृत के श्लोक और भारतीय त्योहारों ने उन्हें अपनी जड़ों से जोड़े रखा।

इन्हीं मजदूरों में एक नाम था – *मोहित रामगुलाम*। बिहार से आए इस नौजवान ने मेहनत का ऐसा परचम लहराया कि उनकी संघर्षगाथा पूरे मॉरीशस के लिए प्रेरणा बन गई।

शिवुसागर रामगुलाम: आजादी का सिपाही

मोहित रामगुलाम के बेटे शिवुसागर रामगुलाम का जन्म मॉरीशस की धरती पर हुआ। लेकिन उनकी आत्मा में भारतीयता का जज्बा रचा-बसा था। शिवुसागर ने न केवल संस्कृत और भोजपुरी में शिक्षा ग्रहण की, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों से भी प्रेरणा ली।

महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस जैसे महानायकों से संवाद ने शिवुसागर को अपने देश के लिए कुछ कर गुजरने की प्रेरणा दी। जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटते समय मॉरीशस में रुके थे, तो शिवुसागर ने उनके विचारों से गहन रूप से प्रेरित होकर आजादी के संघर्ष को अपना उद्देश्य बना लिया।

गांधी का संदेश और स्वतंत्रता का सपना

गांधीजी का संदेश था – *शिक्षा का महत्व, राजनीतिक सशक्तीकरण और भारत से जुड़े रहने का मंत्र।* इन तीन सिद्धांतों ने शिवुसागर रामगुलाम के विचारों को नया आयाम दिया। उन्होंने मॉरीशस के लोगों को जागरूक किया कि शिक्षा से ही वे अपनी पहचान और अधिकारों को सुरक्षित कर सकते हैं।

शिवुसागर ने देखा कि मजदूरों के पास न तो शिक्षा थी और न ही अधिकार। उन्होंने शिक्षा के प्रचार-प्रसार को अपने आंदोलन का मुख्य आधार बनाया। गांव-गांव में जाकर लोगों को पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित किया।

आजादी का सूरज और मॉरीशस का राष्ट्रीय दिवस

वर्ष 1968। तारीख – 12 मार्च।
वही तारीख, जब महात्मा गांधी ने 1930 में दांडी यात्रा की शुरुआत की थी। संयोगवश, इसी दिन मॉरीशस को भी ब्रिटिश शासन से आजादी मिली। यह केवल एक संयोग नहीं था, बल्कि गांधीजी के संघर्ष का प्रतीक था।

शिवुसागर रामगुलाम मॉरीशस के पहले प्रधानमंत्री बने। उनके नेतृत्व में देश ने स्वतंत्रता का स्वाद चखा। उन्होंने भारतीय मूल के लोगों के अधिकारों के लिए न केवल संघर्ष किया, बल्कि उन्हें गर्व से जीना सिखाया।

वर्तमान में भारत और मॉरीशस का रिश्ता

आज मॉरीशस की 70 प्रतिशत जनसंख्या भारतवंशी है। हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और अन्य धर्मों का मिलाजुला समाज है। लेकिन इन सबके बीच भारतीयता की महक हर गली और कूचे में महसूस होती है। भोजपुरी गीत, हिंदी फिल्में और भारतीय त्योहार यहां की पहचान बन चुके हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में मॉरीशस का दौरा किया और दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत किया। उन्होंने अगलेगा द्वीप पर परिवहन व्यवस्था को सुधारने के लिए समझौता किया। यह द्वीप भारत के सुरक्षा रणनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मॉरीशस: कूटनीतिक दृष्टिकोण से भारत के लिए महत्वपूर्ण

मॉरीशस की भौगोलिक स्थिति भारत के लिए रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। हिंद महासागर में स्थित होने के कारण यह व्यापार और सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण केंद्र है।

भारत और मॉरीशस ने हाल ही में एक एयर स्ट्रिप और जेटी प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया है। यह प्रोजेक्ट चीन की बढ़ती गतिविधियों को देखते हुए सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक बड़ी पहल है।

सांस्कृतिक बंधन और भविष्य का सपना

मॉरीशस और भारत का रिश्ता केवल राजनीतिक या कूटनीतिक नहीं है। यह रिश्ता दिलों का है। जब बिहार का कोई गीत मॉरीशस की गलियों में गूंजता है या गणेश चतुर्थी का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है, तो लगता है जैसे भारत मॉरीशस की नसों में दौड़ रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी ने मॉरीशस के लोगों को आश्वासन दिया कि भारत हमेशा उनके साथ खड़ा रहेगा। उन्होंने कहा,
“हम आपके साथ थे, हैं और हमेशा रहेंगे। यह रिश्ता आत्मा का है, जिसे कोई तोड़ नहीं सकता।”

अनमोल बंधन की कहानी

मॉरीशस की कहानी एक ऐसी दास्तान है जो संघर्ष, साहस और सफलता से भरी है। गिरमिटिया मजदूरों का दर्द, शिवुसागर रामगुलाम का संघर्ष और नरेंद्र मोदी का संकल्प – ये सब मिलकर एक ऐसा रिश्ता बनाते हैं जो दुनिया में बेमिसाल है।

मॉरीशस का इतिहास हमें सिखाता है कि कितनी भी मुश्किलें क्यों न आएं, अगर इरादे मजबूत हों और विरासत का साथ हो, तो कोई भी मंजिल दूर नहीं होती।

मॉरीशस और भारत का यह अनमोल बंधन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा। जब-जब समंदर की लहरें उठेंगी, यह कहानी उनके साहस और एकजुटता की मिसाल देती रहेगी।

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