सियासत धर्म और सहिष्णुता के बीच झूलता हुआ हिन्दू-चुप रहे या मिट जाए नामोनिशान हिन्दू का हिंदुस्तान से?

News Desk
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कमला शर्मा : प्रधान संपादक

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आज़ादी के 7 दशक बीतने के बाद आज भी अपने ही देश में हिन्दुओ की स्थिति दयनीय बनी हुई है. आये दिन हिन्दुओ के ऊपर जुल्म, अत्याचार हो रहा है, कभी किसी हिन्दू की हत्या कर दी जाती है तो कभी किसी हिन्दू बहन बेटी का बलात्कार, लेकिन इस देश में हिन्दुओ की सिसकियों को सुनने वाला कोई नहीं है …दुष्कर्म के बाद 42 साल तक अरुणा कोमा में रही और कोमा में ही उसकी मौत हो गयी. लेकिन इस घटना पर किसी भी विपक्षी दल ने न्याय की बात नहीं की….2014 में बदायूं में दो बहनो की के साथ कथित रूप से बलात्कार कर उनकी हत्या कर दी गयी लेकिन उनके परिवार वाले को न्याय नहीं मिला, इस मामले में विपक्षी व क्षेत्रीय राजनैतिक दलों ने चुप्पी साध ली थी…आखिर कब तक होता रहेगा हिन्दुओं के साथ अत्याचार, आखिर कब तक अपने अस्तित्व की लड़ाई में जान गवांते रहेंगे हिन्दू ? क्या हिंदुस्तान में हिन्दुओं की सिसकियाँ सुनने वाला कोई नहीं है ?

जहाँ एक ओर देश में अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है. वहीँ दूसरी ओर राजनैतिक पार्टियां इन अपराधों को सांप्रदायिक रंग देकर अपना वोट बैंक पक्का करने की कोशिश में लगी रहती हैं. हिंदुस्तान में सर्वाधिक जनसँख्या हिन्दुओ की है लेकिन फिर भी हिन्दुओ के विरुद्ध लगातार अपराध व षड्यंत्र होते रहते हैं.

कहते है की अपराध और अपराधी का कोई धर्म नहीं होता लेकिन हिंदुस्तान के तथाकथित राजनैतिक दल व नेता इन अपराधों पर अपराधी व पीड़ित के धर्म व जाति के आधार पर राजनिती करते दिखते हैं.

सर्व विदित है कि शुरुआत से ही हिन्दुस्तान में संप्रदाय विशेष के साथ अन्याय हुआ है. बात चाहे सन 89 के समय में कश्मीरी पंडितों के साथ अत्याचार की हो या 2020 में पुलिस के सामने पालघर में साधुओं की हत्या की या गत दिनों दिल्ली के बजरंग दल कार्यकर्ता रिंकू शर्मा की हत्या की. इन सब मामलों में राजनैतिक पार्टियों ने संप्रदाय व वोट बैंक का सियासी खेल खेला है. इन सभी मामलों में पीड़ितों को न्याय मिलना तो दूर की बात बल्कि, उनके बारे में राजनैतिक दल बात भी नहीं करते हैं. सन 1989 से कश्मीरी पंडितों के साथ अत्याचार शुरू हुआ, लेकिन इन अत्याचारों के विरुद्ध किसी ने भी आवाज नहीं उठाई, जिसका परिणाम यह हुआ की हजारों निर्दोष कश्मीरी पंडितों की निर्मम हत्या कर दी गयी और लाखों कश्मीरी पंडितों को अपना घर त्याग कर कश्मीर छोड़ना पड़ा. इस मामले को तीस साल से भी ज्यादा हो चुके हैं लेकिन आज भी कश्मीरी पंडितों को इंसाफ नहीं मिल सका है. राजनैतिक दल अपने फायदे के लिए अल्पसंख्यक की बात करते हैं लेकिन किसी ने भी आज तक कश्मीरी पंडितों की की सुध नहीं ली…

अगर बात करें हिन्दुओं के साथ होने वाले अत्याचार की तो यह कोई नहीं बात नहीं है. अपने सहिष्णु व्यव्हार की वजह से हिन्दुओं को आदिकाल से ही कई अत्याचारों का सामना करना पड़ा है. अगर इतिहास की बात करें तो हिन्दुओं के शोषण, जबरन धर्मपरिवर्तन, सामूहिक नरसहांर, गुलाम बनाने तथा उनके धर्मस्थलों, शिक्षणस्थलों के विनाश करने की घटनाएं इतिहास के पन्नो पर दर्ज हैं. इसकी शुरुआत मध्यकाल में अरबी आक्रांताओ के भारत पर आक्रमण से हुयी जब 713 ई० में मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला करके राजा दहिर को मारा और सिन्ध के मन्दिरों को तोड कर उनमें स्थापित मूर्तियों को खण्डित कर दिया. चचनामा के अनुसार अनेक लोगों को जबरन धर्मपरिवर्तन के लिए बाधित किया गया और बहुत से जाट नागरिकों को गुलाम बना के ईराक ले जाया गया. सामरिक इतिहासकार विक्टोरिया स्कोफील्ड के मुताबिक “महमूद ग़ज़नवी के पिता ने क़ाबुल घाटी व गांधार को हिन्दुओं से मुक्त करने का प्रण लिया था जिसे उसके उत्तराधिकारी ने कायम रखा. 980 ई. तक गान्धार इलाके पर हिन्दु शाही राजाओं का राज था जिनके आखिरी राजा जयपाल को सबुक्ताजिन ने परास्त किया. इतिहासकार इब्न बतूता ने लिखा है कि, हिन्दूकुश पर्वत के नाम के पीछे वहाँ अनेकों हिन्दूओं की मौत है जो भारत से बंधुआ गुलाम के तौर पर अरब देशों को ले जाते हुए, सर्द हवाओं और बर्फ से इन पहाडियों में हुयी थी.

Mahmud Ghaznavi Attack on Somnath Temple
सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण /सांकेतिक छवि

अल बरुनी, जोकि महमूद का समकालीन था उसके अनुसार महमूद ने इस इलाके को इतना प्रभावित किया कि सभी हिन्दू इस इलाके को छोड़ कश्मीर, वाराणसी व अन्य स्थानो में चले गये. सोमनाथ के मन्दिर को 1024 में महमूद ग़ज़नवी ने लूटा और वहाँ स्थापित शिवलिङ्ग को अपने हाथों से भंग कर दिया. ये सोमनाथ के मन्दिर के अपमान की दूसरी घटना थी, इससे पहले अरब के जुनैद ने मन्दिर को ढाया था. इस मन्दिर को बचाने में लगभग 50000 हिन्दुओं की हत्या कर दी गयी थी.

आज़ादी के 7 दशक बीतने के बाद आज भी अपने ही देश में हिन्दुओ की स्थिति दयनीय बनी हुई है. आये दिन हिन्दुओ के ऊपर जुल्म, अत्याचार हो रहा है, कभी किसी हिन्दू की हत्या कर दी जाती है तो कभी किसी हिन्दू बहन बेटी का बलात्कार, लेकिन इस देश में हिन्दुओ की सिसकियों को सुनने वाला कोई नहीं है …

इतिहास में अमानवीय अत्याचारों को सहने व आज़ादी के 7 दशक बीतने के बाद आज भी देश में संप्रदाय व वोटबैंक की राजनिती जारी है. कुछ राजनैतिक पार्टियों द्वारा देश में अपराध का विरोध धर्म और संप्रदाय देख कर किया जाता है. जब भी यहाँ किसी हिन्दू, सिखों के साथ कोई घटना घटती है या उसकी हत्या कर दी जाती है तो कांग्रेस, सपा, आम आदमी पार्टी सहित अन्य विपक्षी दलों के नेता चुप्पी साध लेते हैं. जबकि वहीँ अगर ऐसी कोई अपराधी घटना किसी अन्य संप्रदाय के व्यक्ति के साथ घटती है तो ये विपक्षी दल बोलते हैं कि हिंदुस्तान में संप्रदाय विशेष सुरक्षित नहीं है. कुछ समय पूर्व इन विपक्षी दलों द्वारा रोहंगिया के मुसलमानों को न्याय दिलाने व सहायता करने की आवाज उठाई जा रही थी. लेकिन विपक्षी दलों द्वारा न तो 84 के दंगा पीड़ितों के लिए कोई आवाज उठाई गयी और न ही कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाने के लिए अभियान चलाया गया.

उपरोक्त तथ्यों के पुस्टि के लिए वर्तमान व पूर्व में हुए कुछ घटनाओं पर नजर डालते हैं. जिससे यह स्पस्ट हो जायेगा की देश के विपक्षी दल धर्म का ध्रुवी करण कर अपना वोट बैंक साधने की जुगत में लगे रहते हैं.

पहले बात करते हैं हाल ही में हुई बजरंग दल के कार्यकर्ता रिंकू शर्मा की हत्या की. ज्ञात हो कि देश की राजधानी दिल्ली के मंगोलपुरी में रिंकू शर्मा नाम के युवक की चाकू से गोदकर हत्या कर दी गई. इस हत्याकांड के बाद मंगोलपुरी पुलिस ने 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. इस बीच मृतक रिंकू के परिवार के लोगों ने शुक्रवार को दिल्ली पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगाई है. इस मामले में दिल्ली पुलिस की जांच में सामने आया है कि रिंकू शर्मा जिनके दुख में अपना खून देकर शामिल हुए उन्हीं लोगों ने उनकी पीठ में चाकू घोंपकर मौत के घाट उतार दिया. इस घटना से आसपास के लोगों में भारी रोष है. हत्या में शामिल एक आरोपित इस्लाम की पत्नी डेढ़ वर्ष पहले गर्भवती थी. उस दौरान उसकी हालत बहुत खराब थी. रोहिणी स्थित अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान उपचार के लिए खून की आवश्यकता थी.

ऐसे में रिंकू शर्मा ने दो बार रक्त दान कर आरोपित इस्लाम की पत्नी को जीवनदान दिया. इस मामले में रिंकू के परिवार का आरोप है कि राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा एकत्र करने के अभियान में सक्रिय रहने के कारण रिंकू की हत्या की गई है. हालांकि, हत्याकांड को लेकर पुलिस ने किसी भी सांप्रदायिक एंगल से इनकार किया है. पुलिस का कहना है कि मृतक और आरोपी एक ही इलाके के रहने वाले हैं और एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं. बुधवार रात जन्मदिन की पार्टी में किसी कारोबारी रंजिश के चलते झगड़ा हुआ था.पुलिस के मुताबिक, हत्या के मामले में पुलिस ने पांचवें आरोपी को भी गिरफ्तार कर लिया है. आरोपी की पहचान ताजुद्दीन (29) के रूप में हुई है जोकि पहले होम गार्ड के तौर पर कार्य करता था. इससे पहले पुलिस ने गुरुवार को चार अन्य आरोपियों जाहिद, मेहताब, दानिश और इस्लाम को गिरफ्तार कर लिया गया था. पुलिस ने कहा कि घटना की सीसीटीवी फुटेज में दिखाई दे रहा है कि आरोपी पीड़ित के घर की तरफ लाठी-डंडे लेकर जा रहे हैं.

देश की राजधानी में हुए इस हत्या पर कांग्रेस, सपा, आम आदमी पार्टी द्वारा न ही कोई शोक व्यक्त किया गया और न ही पीड़ित रिंकू के परिवार से मिलने कोई भी विपक्षी दल का नेता पहुंचा. जबकि अगर यही घटना किसी अन्य संप्रदाय के व्यक्ति के साथ हुई होती तो विपक्षी दल सरकार को घेरने और अपने वोट के तुस्टीकरण में लग जाति है.

हालाँकि इस हत्या कांड के बहुचर्चित होने के बाद भाजपा के पूर्व दिल्ली प्रदेशाध्यक्ष व सांसद मनोज तिवारी ने रविवार को मंगोलपुरी में दिवंगत रिंकू शर्मा के परिजनों से मुलाकात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि दिल्ली में एक के बाद एक हो रही हिंसात्मक घटनाएं इत्तेफाक नहीं बल्कि किसी बड़ी साजिश का हिस्सा है. आखिर वह कौन सी शक्तियां हैं, जो देश की राजधानी को बड़े जख्म देकर कानून व्यवस्था के लिए चुनौतियां खड़ी कर रही हैं. रिंकू की निर्मम हत्या का जख्म दिल्ली को एक बड़े दर्द की आहट से परेशान कर रहा है.

अब गौर करते हैं इन घटनाओं के दूसरे रुख पर जहाँ गत वर्षों में कुछ अन्य संप्रदाय के लोगों के साथ आपराधिक घटनाएं घटीं जिनमे, एक संप्रदाय विशेष के लिए कांग्रेस, सपा, आम आदमी पार्टी सहित अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने खूब राजनिती की जबकि वहीँ दूसरे संप्रदाय के साथ हुए अन्याय के सन्दर्भ में इन राजनैतिक दलों ने आवाज नहीं उठाई.

भीड़ द्वारा मोहम्मद अख़लाक़ की हत्या और सियासी खेल: ज्ञात हो की 28 सितंबर, 2015 को ग्रेटर नोएडा के दादरी इलाके के बिसाहड़ा गांव में 52 साल के मोहम्मद अख़लाक़ को एक उग्र भीड़ ने घर से खींचकर मार डाला और उसके युवा बेटे दानिश को गंभीर रूप से घायल कर दिया था.
इस मामले को विपक्षी दलों ने खूब राजनैतिक रंग दिया. कांग्रेस की ऒर से राहुल गाँधी ने अख़लाक़ के परिवार से जाकर मुलाकात की थी व उन्हें हर संभव मदद व न्याय दिलाने का अस्वासन दिया था.
वहीँ सीएम अखिलेश यादव ने कहा था कि इस मामले में राजनिती हो रही है. अखिलेश यादव ने कहा कि सरकार पीड़ित परिवार की पूरी मदद करेगी, जरूरत पड़ी तो सरकारी नौकरी भी दी जाएगी. उन्होंने पीड़ित परिवार को 30 लाख रुपए देने का ऐलान किया था . साथ ही उसके तीनों भाइयों को 5-5 लाख देने का ऐलान किया था.

दुष्कर्म के बाद 42 साल तक अरुणा कोमा में रही और कोमा में ही उसकी मौत हो गयी. लेकिन इस घटना पर किसी भी विपक्षी दल ने न्याय की बात नहीं की….

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अरुणा शानबाग

अरुणा शानबाग के साथ दुष्कर्म और उसे न्याय न मिलना : अरुणा शानबाग की मौत 18 मई, 2015 को मौत हुई थी. ज्ञात हो की सन 1966 ई० में अरुणा मुम्बई के “के० ई० एम०” हॉस्पिटल में नर्श के पद पर नियुक्त हुई. उसका दुर्भाग्य यह था की वह नवम्बर सन 1973 में एक वहशी दरिन्दे की हवश का शिकार हो गई. जब अरुणा हॉस्पिटल के बेश्मेंट में कपडे बदल रही थी तभी वार्डबॉय ने उसकी अस्मत पर हमला बोल दिया. उसने अरुणा के गले में कुत्ता बांधने वाली चेन को कस कर बाँधा और उसके साथ बलात्कार किया. गले में चेन का कसाव इतना मजबूत था की अरुणा के मष्तिष्क का रक्तसंचार बाधित हो गया और वह कोमा में चली गई. उसके बाद अरुणा शानबाग अपंग हो गयी और कोमा में ही रही. उसके दाँत सड़ने लगे थे और हाथ पैर अकड़ने लगे थे. इस हादसे के बाद 42 साल तक अरुणा कोमा में रही और कोमा में ही उसकी मौत हो गयी. लेकिन इस घटना पर किसी भी विपक्षी दल ने न्याय की बात नहीं की.

हाथरस दलित लड़की की हत्या व बलात्कार मामला : 14 सितम्बर 2020 को हाथरस में एक दलित युवती के साथ हुई कथित सामूहिक बलात्कार की घटना हुई थी. इस युवती की बाद में दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मौत हो गई थी. इसके बाद जिला प्रशासन के कथित दबाव में लड़की का जल्दबाजी में रात में ही अंतिम संस्कार कर दिया गया था. घटना में लड़की के गंभीर रूप से घायल होने और उसकी मृत्यु के बाद प्रशासन द्वारा उसका देर रात कथित जल्दबाजी में अंतिम संस्कार किए जाने पर लोगों में बहुत रोष था जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली से लेकर हाथरस तक राजनैतिक घमासान शुरू हो गया. इस मामले को कांग्रेस, सपा, आम आदमी पार्टी सहित तमाम विपक्षो दलों ने सियासी रंग देने का भरकस प्रयास किया था. किसी भी अपराध का विरोध करना मानवीय कर्तब्य है लेकिन यदि अपराध का विरोध पीड़ित की जाती व संप्रदाय के आधार पर हो तो इसे मात्र सियासी खेल की कहा जा सकता है.

दूसरा मामला है राजस्थान का जहाँ 2017 में अलवर में पहलु खान को भीड़ ने पीटा था, उस पर गोतस्करी करने का आरोप लगा था. पहलु खान की घटना को तमाम राजनैतिक दलों ने सियासी रंग दिया और इसमें धर्म की राजनिती की. कांग्रेस ने इस मामले में भाजपा को घेरा था और कहा था की भाजपा के शासन में देश सुरक्षित नहीं है. वहीँ AIMIM के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस मामले पर बीजेपी व कांग्रेस दोनों पर निशाना साधा था. उन्होंने राजस्थान के मुसलमानों से कहा था कि सत्ता पाने के बाद कांग्रेस भी बीजेपी की कॉपी बन गई है. ऐसे लोगों और संगठनों को नकार दीजिए जो कांग्रेस पार्टी के दलाल हैं. ओवैसी ने यह भी कहा कि मुसलमानों को अपना स्वतंत्र राजनैतिक प्लैटफॉर्म तैयार करना चाहिए.

2014 में बदायूं में दो बहनो की के साथ कथित रूप से बलात्कार कर उनकी हत्या कर दी गयी लेकिन उनके परिवार वाले को न्याय नहीं मिला, इस मामले में विपक्षी व क्षेत्रीय राजनैतिक दलों ने चुप्पी साध ली थी…

2014 बदायूं में दो बहनो की बलात्कार व हत्या : 28 मई 2014 को बदायूं में दो बहनो के साथ कथित रूप से दुष्कर्म कर हत्या की गयी व उनका शव पेड़ से लटका दिया गया. इस मामले में केस सीबीआई को सौंपा गया, लेकिन सीबीआई ने बाद में कहा कि लड़कियों पर यौन हमला नहीं हुआ था. बाद में सितंबर में सभी पांचों आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया था, क्योंकि सीबीआई ने उनके खिलाफ चार्जशीट दायर करने से इनकार कर दिया था. दिलचस्प बात यह है की कथित दुष्कर्म व हत्या के इस मामले पर भी विपक्षी दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई. और न न्याय की बात की और न ही कोई राजनैतिक दल पीड़ित परिवार से मिलने पहुंचा.

चाहे कश्मीरी पंडितों का पलायन हो, अरुणा शानबाग के साथ हुई अमानवियता हो, बदायू की बहनो की हत्या या फिर पालघर में साधुओं की निर्मम हत्या इन सभी मामलों में विपक्षी राजनैतिक दलों ने चुप्पी साध ली.

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कश्मीरी हिन्दुओ को न्याय दिलाने के लिए पीड़ितों द्वारा अभियान

हाल ही में रिंकू शर्मा की हत्या के बाद कांग्रेस, सपा, आम आदमी पार्टी व अन्य विपक्षी दलों द्वारा न तो शोक व्यक्त किया गया, न ही कोई विपक्षी दल उसके परिवार से मिलने गया और न ही उसे न्याय या मुआवजा दिलाने की बात की गयी. ये घटनाएं और इन घटनाओं पर विपक्षी दलों की निष्क्रियता व मौन इन दलों के दोमुहे व्यव्हार को दर्शाता है. देश की जनता को चाहिए की ऐसे राजनैतिक पार्टियों से बचे जो सिर्फ संप्रदाय विशेष को महत्व देते हैं व धर्म की राजनिती करके अपना वोट बैंक साधने की कोशिश में लगे रहते हैं.

आखिर कब तक होता रहेगा हिन्दुओं के साथ अत्याचार, आखिर कब तक अपने अस्तित्व की लड़ाई में जान गवांते रहेंगे हिन्दू ? क्या हिंदुस्तान में हिन्दुओं की सिसकियाँ सुनने वाला कोई नहीं है ?

उपरोक्त इन मामले को देखने से यह स्पस्ट होता है की देश में अपराध और अपराधी के विरोध का निर्णंय उसकी जाति व धर्म देख कर किया जाता है. कांग्रेस, सपा, आम आदमी पार्टी व अन्य विपक्षी दलों द्वारा मात्र संप्रदाय विशेष की बात की जाती है. वहीँ जब भी देश में दूसरे संप्रदाय के साथ कोई दुखद घटना घटती है तो तमाम विपक्षी दल चुप्पी साध लेते हैं, लेकिन जब ऐसी कोई आपराधिक घटना किसी मुस्लिम के साथ घटती है ये नेता धर्म की राजनिती करने लगते हैं.
सवाल यह उठता है की आखिर कब तक देश में अपराधों को संप्रदाय और सियासी आईने से देखा जायेगा?. आखिर कब तक ये राजनैतिक पार्टियां वोट बैंक के लिए अपराधों को अलग-अलग श्रेणियों में विभक्त करेंगी? सोंचने वाली बात है की हिंदुस्तान में आज़ादी के पूर्व, आज़ादी के समय व आज़ादी के 7 दशक बाद भी देश में हिन्दू क्यों नहीं सुरक्षित हैं ? आखिर कब तक सियासी फायदे के लिए हिन्दुओं की बलि दी जाति रहेगी?

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