New Delhi Railway Station : मौत का मंजर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर भगदड़ में 17 श्रृद्धालुओं की मौत

News Desk
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यह एक बहुत ही दर्दनाक और दिल को झकझोर देने वाली घटना थी। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन, जो हमेशा यात्रियों से भरा रहता है, उस रात मौत का मंजर बन गया। लोगों की चहल-पहल, ट्रेनों की आवाज, लाउडस्पीकर से होती घोषणाएं, प्लेटफार्म पर चाय बेचने वालों की आवाजें—सबकुछ वैसा ही था जैसा आम दिनों में होता है। लेकिन किसी को क्या पता था कि कुछ ही पलों में यह स्टेशन एक कब्रगाह में बदल जाएगा।

वो मनहूस रात

शनिवार की रात थी, तारीख 15 फरवरी। महाकुंभ में जाने वाले श्रद्धालुओं का हुजूम नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उमड़ पड़ा था। स्टेशन के बाहर से ही यह साफ दिख रहा था कि अंदर भारी भीड़ है। हर तरफ लोग ही लोग थे—कोई ट्रेन की टाइमिंग पूछ रहा था, कोई जल्दी से अंदर घुसने की कोशिश कर रहा था, तो कोई परिवार के बिछड़े सदस्यों को ढूंढने में लगा था।

प्लेटफॉर्म नंबर 14 और 15 पर विशेष भीड़ थी। प्रयागराज जाने वाली ट्रेन में सवार होने के लिए श्रद्धालु उतावले थे। किसी को लग रहा था कि अगर वो थोड़ा सा भी लेट हुए तो उनकी सीट छूट जाएगी, किसी को यह डर था कि ट्रेन में इतनी भीड़ है कि चढ़ ही नहीं पाएंगे। जब भीड़ किसी भय के साये में होती है, तो उसका नियंत्रण खो जाता है। यही हुआ उस रात।

घंटों पहले से थी अनहोनी की आहट

रेलवे अधिकारियों को भीड़ का अंदाजा था, लेकिन व्यवस्था नाकाफी थी। स्टेशन पर अनगिनत लोग थे लेकिन सुरक्षा व्यवस्था नदारद थी। टिकट खिड़की पर लगी लंबी-लंबी कतारें और हर घंटे बिकते 1500 से अधिक जनरल टिकट इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि स्थिति कभी भी हाथ से निकल सकती है।

उधर, ट्रेनों की देरी ने हालात और बिगाड़ दिए। प्रयागराज एक्सप्रेस, जो प्लेटफॉर्म नंबर 14 पर खड़ी थी, पहले ही लेट थी। वहीं, स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस और भुवनेश्वर राजधानी एक्सप्रेस की भी देरी की सूचना आ चुकी थी। इन ट्रेनों के यात्री भी स्टेशन पर ही मौजूद थे, जिससे भीड़ और बढ़ गई।

फिर एक और घोषणा हुई—प्रयागराज के लिए एक विशेष ट्रेन चलाई जा रही है। बस, यह सुनते ही हजारों यात्री प्लेटफॉर्म नंबर 14 की ओर दौड़ पड़े।

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मौत की भगदड़

9:55 बजे का समय था। प्लेटफॉर्म नंबर 14 और 15 पूरी तरह यात्रियों से खचाखच भरे थे। जब लोगों ने देखा कि ट्रेन के डिब्बे तेजी से भर रहे हैं, तो घबराहट में धक्का-मुक्की शुरू हो गई। एक शख्स किसी तरह अंदर घुसा और उसने पीछे से आने वाले लोगों को खींचना शुरू कर दिया।

पीछे से भीड़ और तेज हो गई। लोग एक-दूसरे को धकेलते हुए ट्रेन में चढ़ने की कोशिश करने लगे। कुछ यात्री प्लेटफॉर्म की दीवारों से चिपक गए, कुछ लोग जमीन पर गिर गए। एस्केलेटर और स्टेशन के दरवाजों की ओर भीड़ भागने लगी, जिससे ओवरब्रिज और सीढ़ियों पर भी लोग फंस गए।

एक महिला, जो अपने छोटे से बच्चे को गोद में लिए खड़ी थी, अचानक संतुलन खो बैठी और नीचे गिर गई। उसके गिरते ही उसके ऊपर कई और लोग गिर पड़े। कुछ ही सेकंड में वहां लाशों का ढेर लग गया। चीख-पुकार, रोने की आवाजें, मदद की गुहार—लेकिन कोई किसी की नहीं सुन रहा था। हर कोई अपनी जान बचाने में लगा था।

मौतों की गिनती

महज 10-15 मिनट के भीतर ही हालात इतने बिगड़ गए कि प्लेटफॉर्म पर चारों ओर लाशें बिछ गईं। लोकनायक अस्पताल में आपातकालीन विभाग की प्रमुख डॉ. ऋतु सक्सेना ने 15 लोगों की मौत की पुष्टि की। मृतकों में 11 महिलाएं और 3 बच्चे शामिल थे। दो लोगों की मौत लेडी हार्डिंग अस्पताल में हुई। कई घायलों को आईसीयू में भर्ती कराया गया, जिनकी हालत बेहद नाजुक थी।

मौतों से अनजान रेलवे प्रशासन

सबसे शर्मनाक बात यह थी कि जब यह हादसा हुआ, तब रेलवे अधिकारी इसे ‘अफवाह’ बताने में लगे थे। उत्तर रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी हिमांशु शेखर उपाध्याय ने भगदड़ से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, “कोई भगदड़ नहीं हुई, यह अफवाह है। भारी भीड़ के कारण यात्रियों ने एक-दूसरे को धक्का दे दिया, जिससे कुछ यात्रियों को चोटें आईं।”

लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो कुछ और ही कह रहे थे। प्लेटफॉर्म पर पड़ी लाशें, रोते-बिलखते यात्री, बदहवास भागते लोग—यह सब किसी अफवाह का हिस्सा नहीं था। यह हकीकत थी, जिसे छिपाने की कोशिश की जा रही थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हादसे पर दुख जताते हुए कहा, “स्टेशन पर भगदड़ से व्यथित हूं। मेरी संवेदनाएं उन सभी के साथ हैं, जिन्होंने अपने प्रियजनों को खोया है। घायलों के जल्द स्वस्थ होने की कामना करता हूं। अधिकारी उन लोगों की सहायता कर रहे हैं जो भगदड़ से प्रभावित हुए हैं।”

कुछ अपनों को खोने का दर्द

पटना के रहने वाले पप्पू, जो अपनी माँ के साथ महाकुंभ के लिए निकले थे, अपनी माँ को खो चुके थे। उन्होंने रोते हुए कहा, “हम दोनों साथ आए थे। मैंने उनका हाथ थाम रखा था, लेकिन अचानक भीड़ में वो मुझसे बिछड़ गईं। मैं उन्हें ढूंढता रहा, लेकिन जब तक मिला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।”

राजकुमार माझी, जो बिहार के नवादा जिले से थे, अपनी पत्नी और बेटी के साथ यात्रा कर रहे थे। लेकिन हादसे में उनकी पत्नी और बेटी की मौत हो गई। उनकी आँखों में आँसू थे, पर शब्द नहीं। उन्होंने बस इतना कहा, “अब मैं अपने बेटे को लेकर जाऊँगा, लेकिन मेरी दुनिया तो यहीं खत्म हो गई।”

सीसीटीवी कैमरों का दिखावा और प्रशासन की नाकामी

रेलवे स्टेशन पर हर तरफ सीसीटीवी कैमरे लगे थे, जो 24 घंटे मॉनिटरिंग के लिए थे। डीआरएम अपने ऑफिस में हर प्लेटफॉर्म की लाइव स्ट्रीमिंग देख सकते थे। इसके बावजूद वे यह नहीं देख पाए कि स्टेशन पर भीड़ बेकाबू हो रही है?

रेलवे अधिकारियों का तर्क था कि हर घंटे 1500 से ज्यादा जनरल टिकट बेचे गए, इसलिए स्थिति हाथ से निकल गई। लेकिन सवाल यह है कि जब इतनी भीड़ बढ़ रही थी, तो पहले से अतिरिक्त सुरक्षा के इंतजाम क्यों नहीं किए गए?

कब सुधरेगी व्यवस्था?

यह कोई पहली बार नहीं था जब रेलवे स्टेशन पर ऐसी भगदड़ हुई हो। कुंभ, महाकुंभ और छठ जैसे आयोजनों के दौरान ट्रेनों में भारी भीड़ होती है। हर साल लाखों यात्री इन स्टेशनों से गुजरते हैं, लेकिन फिर भी प्रशासन इससे कोई सबक नहीं लेता।

किसी भीड़भाड़ वाले आयोजन में प्राथमिकता होती है—सुरक्षा। लेकिन रेलवे, पुलिस और प्रशासन की उदासीनता ने इस हादसे को और भयावह बना दिया। यदि समय रहते पर्याप्त पुलिसबल तैनात किए गए होते, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बैरिकेड्स लगाए गए होते, और ट्रेनों की सही समय पर व्यवस्था की जाती, तो शायद इतनी जानें नहीं जातीं।

इस हादसे ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि जब तक प्रशासन और रेलवे विभाग अपनी कमियों को दूर नहीं करेगा, तब तक ऐसे दर्दनाक हादसे होते रहेंगे। हर बार सरकार संवेदनाएं जाहिर करती है, उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए जाते हैं, लेकिन कुछ दिनों बाद सब भूल जाते हैं। और फिर, एक नई भगदड़ किसी नई जगह पर नए परिवारों को उजाड़ देती है।

क्या इस बार कुछ बदलेगा? या फिर यह भी सिर्फ एक और खबर बनकर रह जाएगी?

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