जहां सत्य ज्ञान है वहां पवित्रता और स्वच्छता है न्यायाधीश विनोद शर्मा

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भैयालाल धाकड़

विदिशा // प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय मंशापूर्ण हनुमान मंदिर के पास स्थित सेवा केंद्र द्वारा शिव जयंती महोत्सव के रूप में कार्यक्रम आयोजित किया गया। ब्रह्माकुमारी रुकमणी दीदी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि नवसृजन का कार्य एक प्रक्रिया के तहत ईश्वरीय संविधान के अनुसार होता है। जैसे एक विद्यार्थी विद्या अध्ययन की शुरुआत पहली कक्षा से करता है और फिर वह साल दर साल आगे बढ़ते हुए एक दिन विशेष योग्यता प्राप्त कर न्यायाधीश, आईएएस, सीए, पायलट, शिक्षक, वैज्ञानिक और पत्रकार बनता है। इसी तरह निराकार परमात्मा ईश्वरीय संविधान के तहत शिक्षा देकर स्वर्णिम दुनिया, नवयुग के स्थापना की आधारशिला रखते हैं। स्वयं परमात्मा ही नर से श्रीनारायण और नारी से श्रीलक्ष्मी बनने के लिए राजयोग ध्यान सिखाते हैं। इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय में आज लाखों लोग अपना दाखिला कराकर पढ़ाई को पूरी लगन, मेहनत, त्याग और तपस्या के साथ पढ़ रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप मानव के व्यक्तित्व में दिव्यगुण, विशेषताएं और दिव्य शक्तियां स्वाभाविक रूप से झलकने लगती हैं। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए न्यायाधीश विनोद शर्मा ने कहा कि आध्यात्मिकता स्वयं की रुचि, पुरुषार्थ और लगन से ही संभव है। आत्मा में सत्य से शक्ति आती है। इस विद्यालय में आत्मा को सुंदर, पवित्र बनाने की शिक्षा दी जाती है। हम हर एक अपने जीवन के मालिक बनें। योगी बनना अर्थात् योग्य बनना। भगवान के बच्चे कहलाने लायक बनना। खुद के जीवन को सुधार कर दूसरों के लिए शुभभावना रखें। ‘हम ईश्वर के बच्चे हैं’ इस स्वमान में रहने की जरूरत है। आज हम हर बात को विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरने के बाद ही अपनाते हैं तो धर्म के मामले में अंधश्रद्धा क्यों? जहां सत्य ज्ञान है वहां पवित्रता है और स्वच्छता है। शास्त्रों में वर्णित धर्म की अतिग्लानि का यह वही समय है। इस समय ही स्वयं परमपिता परमात्मा आकर मानव को फिर से देव बनने की शिक्षा देते हैं। यदि हम पवित्र बनें तो इस भूमि पर स्वर्ग आने में देरी नहीं लगेगी। ब्रह्माकुमारी रेखा दीदी ने बताया परमपिता शिव अजन्मा हैं, अभोक्ता, ज्ञान के सागर हैं, आनंद के सागर हैं, प्रेम के सागर हैं, सुख के सागर हैं। उनका स्वरूप ज्योतिर्बिन्दु है। परमात्मा शिव परमधाम के निवासी है। शिव का अर्थ ही है ‘कल्याणकारी।’ परमात्मा शरीरधारी नहीं है। इसका मतलब ये नहीं कि उनका कोई आकार नहीं बल्कि स्थूल आंखों से न दिखने वाला सूक्ष्म ज्योति स्वरूप है। परमात्मा शिव को सभी ग्रंथों, पुराणों और वेदों में भी सर्वोपरि ईश्वर माना गया है। परमपिता परमात्मा शिव का ध्वजारोहण किया गया नंदिनी बहन ने आखिर में सभी को मेडिटेशन व प्रतिज्ञा कराई कार्यक्रम में न्यायधीश नीलम मिश्रा, न्यायाधीश धनेंद्र सिंह परमार, न्यायाधीश संदीप कुमार जैन, न्यायाधीश पार्थ शंकर मिश्रा, न्यायाधीश शशांक सिंह, न्यायाधीश कृष्ण बरार, आदि उपस्थित रहे।

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