देशप्रेम की भावना के वशीभूत होकर कभी-कभी सामान्य सा दिखायी देने वाला व्यक्ति भी बहुत बड़ा काम कर जाता है. ऐसा ही बाबू गेनू के साथ हुआ. गेनू का जन्म 1908 में पुणे जिले के ग्राम महालुंगे पडवल में हुआ था. इस गाँव से कुछ दूरी पर ही शिवनेरी किला था, जहाँ छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म हुआ था.
उन दिनों देश में स्वतन्त्रता का संघर्ष छिड़ा था. स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आन्दोलन जोरों पर था. 22 वर्षीय बाबू गेनू भी इस आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे. मिल के अपने साथियों को एकत्र कर वह आजादी एवं स्वदेशी का महत्व बताया करते थे.
26 जनवरी, 1930 को ‘सम्पूर्ण स्वराज्य माँग दिवस’ आन्दोलन में बाबू गेनू की सक्रियता देखकर उन्हें तीन महीने के लिए जेल भेज दिया; पर इससे बाबू के मन में स्वतन्त्रता प्राप्ति की चाह और तीव्र हो गयी. 12 दिसम्बर, 1930 को मिल मालिक मैनचेस्टर से आये कपड़े को मुम्बई शहर में भेजने वाले थे. जब बाबू गेनू को यह पता लगा, तो उसका मन विचलित हो उठा. उसने अपने साथियों को एकत्र कर हर कीमत पर इसका विरोध करने का निश्चय किया. 11 बजे वे कालबादेवी स्थित मिल के द्वार पर आ गये. धीरे-धीरे पूरे शहर में यह खबर फैल गयी. इससे हजारों लोग वहाँ एकत्र हो गये. यह सुनकर पुलिस भी वहाँ आ गयी.
कुछ ही देर में विदेशी कपड़े से लदा ट्रक मिल से बाहर आया. उसे सशस्त्र पुलिस ने घेर रखा था. गेनू के संकेत पर घोण्डू रेवणकर ट्रक के आगे लेट गया. इससे ट्रक रुक गया. जनता ने ‘वन्दे मातरम्’ और ‘भारत माता की जय’ के नारे लगाये. पुलिस ने उसे घसीट कर हटा दिया; पर उसके हटते ही दूसरा कार्यकर्ता वहाँ लेट गया. बहुत देर तक यह क्रम चलता रहा.
यह देखकर अंग्रेज पुलिस सार्जेण्ट ने चिल्ला कर आन्दोलनकारियों पर ट्रक चढ़ाने को कहा; पर ट्रक का भारतीय चालक इसके लिए तैयार नहीं हुआ. इस पर पुलिस सार्जेण्ट उसे हटाकर स्वयं उसके स्थान पर जा बैठा. यह देखकर बाबू गेनू स्वयं ही ट्रक के आगे लेट गया. सार्जेण्ट की आँखों में खून उतर आया. उसने ट्रक चालू किया और बाबू गेनू को रौंद डाला.
सब लोग भौंचक रह गये. सड़क पर खून ही खून फैल गया. गेनू का शरीर धरती पर ऐसे पसरा था, मानो कोई छोटा बच्चा अपनी माँ की छाती से लिपटा हो. उसे तत्क्षण अस्पताल ले जाया गया; पर उसके प्राण पखेरू तो पहले ही उड़ चुके थे. इस प्रकार स्वदेशी के लिए बलिदान देने वालों की माला में पहला नाम लिखाकर बाबू गेनू ने स्वयं को अमर कर लिया. तभी से 12 दिसम्बर को ‘स्वदेशी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है.