बिलासपुर-“मुआवजा”:प्रतिकर के लिये 40 बरसो से चीत्कार,तीन पीढ़ियों से प्रशासन के इर्द-गिर्द भटक रहा किसानों का परिवार-आंचलिक ख़बरें-सत्येन्द्र वर्मा    

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 बिलासपुर  कहते हैं कि कोशिशें हमेशा कामयाबी हासिल होती है। लेकिन यहां यह देखा गया है कि 40 बरसों से चक्कर लगाने के बाद भी कोशिशों को कामयाबी की शक्ल देने में विफलता ही हर बार हाथ आती रही है। यक़ीनन यह कितनी बदसलूकी की है सरकार ने किसानों के साथ कि अपनी ही सूरत को बदसूरत कर लिया है। “कानून” हितों के लिए ही होता है लेकिन यहाँ “कानून का इस्तेमाल करके लोगों को नुकसान पहुँचाया गया,उन्हें बेसहारा और बेघर कर दिया गया। यह वो हक़ीकत है जो अभी तक दास्तां में पूर्णतः तब्दील नही हो पाई है क्योंकि इसे पीढ़ियों से जीवित रखा जा रहा है। इल्म हो कि जल संग्रहण के उद्देश्य से किसानों के हितों के लिए सरकार जलाशय, बांध,सरोवरों व एनीकट का निर्माण करवाती है और इस कार्य के लिये वह किसानों की भूमि का अधिग्रहण भी करती है,और इस भूमि के अधिग्रहण के बदले में मुआवजे या “प्रतिकर” के रूप में भूमि की कीमतें अदा कर किसानों के परिजनों को अन्यत्र स्थापित करती है।लेकिन ना जाने सरकार से यहां पर कैसे चूक हो गई या प्रशासनिक अधिकारियों ने लापरवाही की ।जिसका परिणाम यह हुआ कि एक किसान शासन को अपनी जमीन देकर भी इस नेकी का खामियाजा भुगतने के लिये विवश है। आज वे अपनी ज़मीन खो कर लगभग 40 बरसों से अपने “प्रतिकर” के लिये “चीत्कार” करते हुए प्रशासनिक अधिकारियों के चक्कर लगा रहा है।                                                                            इल्म हो कि बिलासपुर जिले के करगीरोड “कोटा” जल संसाधन विभाग अंतर्गत आने वाला घोंघा जलाशय जिसे कोरी डेम के नाम से जाना जाता है जिसका निर्माण “करगीरोड” के निकट प्रवाहित मनियारी नदी की सहायक नदी घोंघा नदी से हुआ हैं।इस बांध के निर्माण में कई गाँव डुबान में आये और अधिकांशतः किसानों की भूमि का अधिग्रहण बांध और नहरों के निर्माण में किया गया। अतः शासन ने इन सभी कार्यों को किसानों की भूमि को अधिग्रहण कर बांध के कार्य को बखूबी निभाया, और इस प्रक्रिया में किसानों को मुआवज़ा की राशि भी दी गई।किन्तु एक किसान जिसकी वर्ष 1982-83 में 3.81 एकड़ भूमि नहर बनाने के लिए अधिग्रहित की गई थी वो मुआवज़ा हासिल करने से वंचित रह गया। उसकी तीन पीढ़ियां आज भी मुआवजा राशि के लिए अधिकारियों के दफ्तर पर दस्तक दे रहे है लेकिन विवशता कि अधिकारियों के कानों में जूं तक नही रेग रही है।ज्ञातव्य हो कि वह तत्कालीन मध्यप्रदेश का दौर था।और संभवतः कांग्रेस ही सत्तासीन थी।                                                                                  इल्म हो कि आज से लगभग 40 साल पूर्व तत्कालीन मध्यप्रदेश के दौरान एक किसान परिवार होरीलाल यादव, वल्द साधुराम यादव वल्द घासीराम यादव ने  शासन द्वारा दी जाने वाली अधिग्रहित भूमि के मुआवजे की राशि जमीन के मूल्य से कम दिए जाने से इंकार करते हुए शासन से याचना किया था कि उसे मुआवजा के तौर की दी जा रही राशि भूमि के मूल्यांकन से कम है अतः एक बार पुनः विचार किया जाए और उसे उचित राशि ही प्रदान किया जाए।लेकिन विडंबना की ना तो प्रशासनिक अधिकारियों ने उनकी अर्जी पर ध्यान ही नही दिया और उसे मुआवजा राशि से भी वंचित कर दिया गया।लेकिन यहाँ परिवार पहले मध्यप्रदेश शासन से फरियाद करता रहा  और धीरे-धीरे समय बितता गया और फ़िर छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हो गया। लेकिन इस  परिवार ने फरियादी का कार्य जारी रखा। पूर्व में  मध्यप्रदेश और फिर अब छत्तीसगढ़ सरकार के प्रशासनिक अधिकारियों के चक्कर लगाने को विवश है लेकिन अब तक कोई राह दिखलाई नही दे रही है। इसी संदर्भ में जब हमारे संवाददाता ने पीड़ित किसान होरीलाल यादव से चर्चा कि तो उसने बताया ” कि मेरे पिता साधूराम के पिता घासीराम यादव अर्थात मेरे दादा के वक़्त में कोरी डैम का निर्माण कार्य आरंभ किया गया था। तब नहर परियोजना में हमारी 3.81 एकड़ कृषि भूमि का भी अधिग्रहण किया गया था, जिसका खसरा नंबर क्रमशः 158/2,1052/2,150/3,155/1 ठीक इसी तरह से इसका रकबा क्रमशः0.66,0.56,0.54,0.68,1.33 कुल रकबा अर्थात 3.81एकड़ अधिग्रहित भूमि शासन की नहर परियोजना की मुफ़्त में भेंट चढ़ गई, यह हमारे लिए एक परेशानी का बड़ा सबब बन कर रह गया है” यक़ीनन यह एक कृषक परिवार के लिए परेशानी का सबब है आख़िर वो जमीन जो शासन की नहर परियोजना की भेंट चढ़ा दी गई वह किसान की जीवन रेखा ही थी।जिसके “प्रतिकर” के लिये उक्त किसान परिवार शासन से लगातार फ़रियाद करते चले आ रहे है और यह सिलसिला फरियादी की तरफ से अब भी इस उम्मीद से जारी है कि उनको उनकी जमीन का “हर्जाना” अवश्य मिलेगा। लेकिन कब इसका अभी कोई पता नही है जबकि “प्रतिकर” की प्रतीक्षा में होरीलाल के पिता और दादा का स्वर्गवास भी हो चूका,अर्थात दो पीढ़ी गुज़र गई।लेकिन शासन ने अपनी आंखें इस ओर से फेर ली है।                                                                                    ऐसा नही है कि इस पीड़ित किसान परिवार ने शासन से आवेदन देकर फ़रियाद ना कि हो,आवेदन का यह क्रमबद्ध सिलसिला तो सन 1982-83 से ही चला आ रहा है जब से नहर परियोजना का प्रारंभ हुआ था।लेकिन शासन ने सिर्फ़ आश्वासन ही दिया कभी भी इनके आवेदनों पर करवाई नही की गई,अतः उस दौरान इस किसान परिवार को इनकी अधिग्रहित भूमि 3.81 एकड़ भूमि का मुआवजा राशि के रूप में मात्र 2500 रुपये प्रति एकड़ की दर से दिया जा रहा था जो उन्हें काफ़ी कम लगा और इन्होंने उक्त राशि को लेना अस्वीकार कर दिया और मुआवज़ा बढ़ा कर नए दर से देने का शासन के अधिकारियों से अनुरोध किया।लेकिन अधिकारियों ने आवेदन तो लिया लेकिन इस मामले पर कार्यवाही नही किया गया।जिसका परिणाम यह हुआ कि मध्यप्रदेश शासन से यह मामला छत्तीसगढ़ शासन की दया पर निर्भर होकर रह गया है, समय बितता गया और पीड़ित किसान की पीड़ा लगातार बढ़ते चली गई।                                       इतना ही नही अपनी इस समस्या के समाधान के लिये इन्होंने प्रमुख कार्यपालन अभियंता जलसंसाधन विभाग रायपुर को पत्र भी लिखा और उस पर कोई कार्यवाही ना होता देखकर सचिव जल संसाधन विभाग छत्तीसगढ़ शासन को भी पत्र लिखकर “हर्जाना” के लिए गुहार लगाई, लेकिन उस का भी कोई  परिणाम सामने नही आया। पीड़ित किसान फिर और भी असन्तुष्ट हो गये और फिर राजधानी रायपुर के चक्कर लगाना शुरू कर दिया।लेकिन लगातार चक्कर लगाने में पैसा पानी की तरह बहने लगा,लेकिन मुआवजा की राशि का कही भी नामोनिशान नही दिखा,उल्टे पीड़ित किसान भारी क़र्ज़ के बोझ तले दबता चला गया।लेकिन पीड़ित किसान का लगातार चक्कर लगाने का परिणाम भी सार्थक सिद्ध नही हो पा रहा था,बस इस भाग-दौड़ का यह नतीजा निकाल की शासन की ओर से दो पत्र जारी किया गया। जिसमें पीड़ित किसान के मुआवजे के संदर्भ में जानकारी माँगी गई है।लेकिन ऐसा नही लगता कि शासन इसमें त्वरीत निर्णय लेने के पक्ष में है क्योंकि अगर अधिकारियों को निर्णय लेना होता तो पीड़ित किसान परिवार अब तक मुआवजा या प्रतिकर के लिए इतना परेशान ना होता। कुछ भी हो आख़िर उक्त पीड़ित किसान परिवार की 3.81 एकड़ भूमि नहर परियोजना की भेंट चढ़ गई है उसके बदले में हर्जाना के हक का वो अधिकारी तो है ही। लेकिन अधिकारियों की लापरवाही ने किसान परिवार को उस का हक ना देकर भटकने के लिए छोड़ दिया।.                                                                                  इल्म हो कि 40 किलोमीटर दूर-सुदूर ग्रामीण अंचल ग्राम मोहतरा के आश्रित ग्राम “करका” जो कोटा विकासखंड में स्थित है। वहाँ से जिला कलेक्टर कार्यालय पहुंचे एक किसान ने कलेक्टर को आवेदन देकर होरीलाल यादव की कृषि भूमि पर नहर परियोजना के लिये अधिग्रहित भूमि की क्षतिपूर्ति  देने की मांग करते हुए कहा कि जल संसाधन विभाग कोटा द्वारा किसानो की जमीन का अधिग्रहण कर, शीघ्र मुआवजा देने के आश्वासन दिया गया था।किन्तु भूमि अधिग्रहण के 40 साल बाद भी अधिग्रहित भूमि का भुगतान अभी तक नही किया गया है,किसान ने एक बार नही बल्कि कई बार सिंचाई विभाग और एसडीएम कोटा को आवेदन दिया, किन्तु अधिकारियों द्वारा महज आश्वासन देकर हमें लौटा दिया गया। यह तो हम गरीब किसानों के साथ छलावा है एक धोखा है तत्कालीन मध्यप्रदेश सरकार और उनके प्रशासनिक अधिकारियों का आख़िर हम किसानों की जमीने उस नहर परियोजना में गई थी,उसका हर्जाना तो देना ही चाहिए।लेकिन ना जाने क्यों शासन हमे हमारा हक नही दे रही है अब तो धीरज भी डोल रहा है। कोई अधिकारी कुछ नही कर रहा है कलेक्टर साहब अब आप ही कुछ कर सके तो अच्छा हो। इतना कहकर अन्नदाता ने फिर कहा कि यदि संबंधित विभाग मुआवजा देने में असमर्थ है तो हमे हमारी जमीन ही लौट दिया जाए,जिससे हमारा गुजर-बसर तो ठीक तरह से हो सके।इसी संदर्भ में पीड़ित किसान होरीलाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में नई सरकार बनने से उम्मीद जागी थी कि किसानों की हितैषी सरकार है मुखिया स्वयं किसान परिवार से हैं, किसानों की पीड़ा को अच्छी तरह से समझते हैं किंतु अधिकारियों की लापरवाही और उदासीनता से बार बार मुआवजा के लिए हमें भटकना पड़ रहा है। पीड़ित किसान ने मीडिया के माध्यम से चेतावनी देते हुए कहा कि अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल व कृषि और सिंचाई मंत्री से मुआवजा दिलाने के लिये गुहार लगना होगा।

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