निजता का अधिकार और पत्रकार का दायरा

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press vs privacy

[इस विषय पर यदि लिखा जाये तो एक पूरी किताब लिखी जा सकती है, फ़िलहाल इस लेख में “निजता के अधिकार और पत्रकार का दायरा” पर एक संक्षिप्त चर्चा कि गयी है, जिससे कि पत्रकार अपने दायरे और निजता के अधिकार को ध्यान में रखकर कार्य कर सकें.]

निजता का अधिकार और पत्रकार का दायरा [भाग-1]
संतोष प्यासा

जिस प्रकार किसी खबर को कवर करना और उसे प्रकाशित करना पत्रकार का अधिकार है, ठीक उसी प्रकार एक आम नागरिक को भी अपनी निजता को सुरक्षित रखने का अधिकार प्राप्त है।

ऐसे में पत्रकार को इस बात का ख़याल रखना बहुत जरुरी है कि कहीं वो खबर प्रकाशित करने के चक्कर में किसी की निजता के अधिकार का हनन करके संविधान का उल्लंघन तो नहीं कर रहा।

क्या है निजता का अधिकार? ‘निजता का अधिकार (राइट टू प्राइवेसी) के मुताबिक कोई भी इंसान किसी भी व्यक्ति के हर उस मामले में दखल देने का अधिकार नहीं रखता, जो मामला किसी व्यक्ति की निजता या निजी जीवन को प्रभावित करती है’।

इन दिनों बहुत से पत्रकारों के द्वारा जाने/अनजाने में निजता के अधिकार का हनन कर दिया जाता है. जो कि उनके (पत्रकारों के) लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है. दरअसल ज्यादातर नौसिखिया और कुछ मंझे हुए पत्रकार भी अपना भौकाल टाइट करने के चक्कर में लगे रहते है, और प्रेस कि आजादी के नाम पर निजता के अधिकार का हनन कर बैठते है.

इस विषय को स्पस्ट करने के लिए दो उदाहरण है।
पहला उदाहरण :मामला जून 2018 का है. उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में एक नवयुगल पुलिस संरक्षण में विधिक रूप से विवाह करने जा रहे थे, इसी क्रम में वो महिला कांस्टेबल के साथ जिला अस्पताल गये थें जहाँ पर कुछ पत्रकार उनकी फोटो व अन्य जानकारी लेने के लिए उनपर दबाव बना रहे थें। इस बात पर महिला डॉक्टर, महिला कॉन्स्टेबल व् उन युगल ने ऐतराज जताया तो पत्रकारों ने रौब झाड़ते हुए कहा था कि फोटो व् जानकारी लेना उनका अधिकार है।

पत्रकारों द्वारा किया गया उपरोक्त कृत निजता के अधिकार का हनन है।
अगर नवयुगल चाहते तो उन पत्रकारों के खिलाफ निजता के अधिकार के हनन को लेकर अभियोग दर्ज करा सकते थें।
लेकिन संभवतः उन्हें निजता के अधिकार(कानून) की जानकारी नहीं थी , तो मामला आगे नहीं बढ़ा नहीं तो उन पत्रकारों को रौब झाड़ना महंगा पड़ जाता।

दूसरा उदाहरण: सन 2017 में केरल के कन्नोर की हायर सेकंडरी टॉपर एक छात्रा ने ख़ुदकुशी कर ली थी जिसके लिए परोक्ष रूप से मीडिया जिम्मेदार है। दरअसल ये छात्रा एक गरीब परिवार से थी और अपनी स्कूल की सहेलियों से उसने अपनी गरीबी छुपा रखी थी, लेकिन मीडिया ने उसकी गरीबी को हाई लाइट कर दिया था। सुसाइड नोट में उस छात्रा ने लिखा था कि, मैंने अपनी सहेलियों को बताया था कि मैं अमीर हूँ लेकिन अब सब जान चुके है कि मैं गरीब हूँ, अब मैं अपनी सहेलियों से नजर नहीं मिला पाऊँगी इस लिए मैं आत्म हत्या कर रही हूँ।

इस मामले में पत्रकारों द्वारा न केवल निजता का उल्लंघन किया बल्कि उनके कृत्य की वजह से एक प्रतिभावान छात्रा ने अपनी जिंदगी ख़त्म कर ली।

उपरोक्त दोनों उदाहरण यह स्पस्ट करते हैं कि आज पत्रकारिता पर जो प्रश्न चिन्ह लगाये जा रहे हैं वह निर्रथक नहीं है। आजकल ज्यादातर पत्रकार और मीडिया संस्थान सामाजिक मुद्दों और पब्लिक इंटरेस्ट को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रहें है।

इनदिनों अधिकांश पत्रकारों पर रौब झाड़ने का नशा चढ़ा हुआ है। गले में प्रेस कार्ड, जेब में पेन, हाथ में कैमरा और माइक लेकर वो एक ऐसी दुनिया में खो जातें है जहाँ उन्हें “स्वयंभू” होने का भ्रम हो जाता है. यही मद और भ्रम उन्हें ले डूबता है.
अधिकांश पत्रकार अपने प्रोटोकॉल से अंजान है। ज्यादातर पत्रकारों को अपना दायरा व् अधिकार ही नहीं पता। ऐसे में पत्रकारिता का स्तर गिरना कोई बड़ी बात नहीं है।
आज के दौर में पत्रकार को अपना दायरा और अधिकार पता होना बहुत आवश्यक है। क्योंकि इस दौर की पत्रकारिता में बहुत सी चुनौतियाँ हैं।

एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए निष्पक्ष व स्वस्थ पत्रकारिता की आवश्यकता होती है. पत्रकारिता तभी निष्पक्ष और स्वस्थ हो सकती है जब पत्रकारों को उनके अधिकार, कर्तब्य व दायरे की जानकारी हो.
आंचलिक ख़बरें ने एक सीरीज शुरू की है जिसमे पत्रकारिता के बारीक़ व महवपूर्ण बिंदुओं,तथ्यों व कानून की जानकारी साझा की जाएगी. अगर आप एक पत्रकार है या एक जागरूक नागरिक हैं तो हमारी इस सीरीज को पढ़ते रहें और एक मजबूत लोकतंत्र व निष्पक्ष पत्रकारिता के निर्माण में सहयोग दें.

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