खट्टे-मीठे अनुभवों के बीच गुजरे 74साल-आँचलिक ख़बरें- डॉ0 बुद्धसेन कश्यप

News Desk
By News Desk
7 Min Read
azadi

लेखक – डॉ0 बुद्धसेन कश्यप के 75 स्वतंत्रता के कुछ खट्टे-मीठे अनुभव।

देश को अंग्रेजी दासता(हुकूमत) से आजाद हुए 74 साल बीत गये। इन 74 सालों में देश ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे और आज ऐसे मुकाम पर खड़ा है जहाँ यह कहते जरा भी संकोच नहीं होना चाहिए कि दुनिया हमें एक नयी उम्मीद के साथ देख रही है। हमने अनेक क्षेत्रों में बहुत तरक्की तो की ही है, दूसरे देशों के लिए आदर्श भी बने हैं। जरूरत है हमें और आगे बढ़ने की, देश के अंदर की उन कमियों को दूर करने की, जिससे देश का हर एक आम नागरिक हर तरह से आत्मनिर्भर, खासकर आर्थिक रूप से मजबूत बने। आज देश 75वाँ स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। इस अवसर पर हमें यह भी संकल्प लेना चाहिए कि देश में कोई ऐसा काम न हो जिससे विदेशों में हमारी छवि खराब हो। जय हिन्द, जय भारत।
देश स्वतंत्रता का 75वाँ दिवस मना रहा है यह गर्व की बात है, लेकिन इस बात की टीस भी कि इसी रोज देश का एक हिस्सा हमसे अलग हो गया। पाकिस्तान नाम से एक नये राष्ट्र की नींव रखी गयी। हमारे अपनों को ही दो हिस्सों में बांट दिया गया. सत्ता सौंपने से पहले लाॅर्ड माउंट बेटन ने संभवतः भारत को कमजोर करने की रणनीति के तहत ऐसा किया होगा. हमें इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. दोनों देशों को जो नुकसान उठाना पड़ा वह आज भी जारी है। 14 अगस्त 1947 की आधी रात ब्रिटिश हुकूमत की तरफ से लाॅर्ड माउंट बेटन द्वारा नये प्रधानमंत्री के बतौर पंडित जवाहरलाल नेहरू को सत्ता के हस्तांतरण के साथ ही देश को आजाद घोषित कर दिया गया। ब्रिटिश हुकूमत से देश को आजादी दिलाने में उन महानायकों की महत्वपूर्ण भूमिका रही जिन्होंने इसके लिए अपना सबकुछ न्योछावर कर दिया. देश की मिट्टी से प्यार करनेवाले हिन्दु, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन व अन्य मजहब से ताल्लुकात रखनेवालों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में खुद को न्योछावर कर दिया. जिस समय हम स्वाधीन हुए हमारा देश हर क्षेत्र में बहुत कमजोर था. देश का खजाना खाली था। देश की तरक्की के लिए धन नहीं थे. यहां के लोगों में अदम्य साहस और देश को नयी ऊंचाई तक पहुंचाने की दृढ़ इच्छाशक्ति के सिवा कुछ भी नहीं था. वैसी परिस्थितियों से गुजरने के बावजूद भारतीय लोकतंत्र ने धीरे-धीरे ही सही, देश को नयी दिशा दी. नये कारखानों की स्थापना होती रही और उनकी चिमनियों से लगातार धुएं निकलते रहे. देश को पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह जैसे दूरदर्शी और अदम्य साहस से भरे प्रधानमंत्री मिले जिन्होंने देश को न केवल आर्थिक सम्पन्नता दिलायी बल्कि तकनीक के भी नये-नये आयाम गढ़े़. हम इतने ताकतवर हो गये कि दूसरे देश की जनता ने भी विपत्तियों में सहायता मांगी। हमारे देश ने भी खुलकर उनका सहयोग किया। जरूरत पड़ने पर बांगलादेश की स्थापना और श्रीलंका में शांति – व्यवस्था कायम कराने से भी भारत नहीं चूका। खालिस्तान के रूप में भारत के एक और टुकड़ा कराने के दुश्मन देशों के मंसूबों को ध्वस्त किया। हालांकि इसके एवज में हमने तीन दूरदर्शी और अदम्य साहस से भरपूर नेताओं – लाल बहादुर शास्त्री, इन्दिरा गांधी और राजीव गांधी को खोना पड़ा. बावजूद इसके सामरिक क्षमता में हम अमेरिका और चीन के समकक्ष खड़े होते दिख रहे हैं। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस प्रयास की भी सराहना करनी होगी जिसके तहत उन्होंने दुनिया के अधिकांश देशों में जाकर उनसे नये सम्बंध बनाने की पहल की. देश निरंतर ऊंचाईयों की ओर बढ़ रहा है। फिर भी अभी बहुत से ऐसे काम करने होंगे जिससे देश आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में मजबूत हो सके। इसके लिए संसाधनों की कमी को दूर करने के साथ देश में शांति और सद्भाव का माहौल होना बहुत जरूरी है। इसके बिना हम देश में खुशहाली नहीं ला सकते।
हमारा देश कृषि-प्रधान है. यहां की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक इसी पर निर्भर है। इसलिए कृषि के क्षेत्र में संभावनाओं की तलाश करने की जरूरत है। सरकार को किसानों की समस्याओं को जानने की कोशिश करनी होगी और उन समस्याओं को दूर करने का संकल्प प्राथमिकताओं में शामिल करना होगा। किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए जरूरी है कि सरकार के फैसले को लेकर भ्रम की स्थिति न हो और हर व्यक्ति को भोजन, पानी, आवास और स्वास्थ्य-व्यवस्था का समान लाभ मिले। विश्वव्यापी कोविड-19 की वजह से दुनिया के अन्य देशों की तरह हमारा देश भी तबाह हुआ। समय पर सही चिकित्सा सुविधा नहीं मिलने की वजह से असंख्य जानें गयीं। ऑक्सीजन और एम्बुलेंस तक की समस्या रही. लाखों लोग बेरोजगार हुए। उनके समक्ष परिवार की परवरिश करना कठिन हो गया। ऐसे समय में हमारे देश की जनता और यहां के स्वास्थ्यकर्मियों ने जो हिम्मत और सहनशीलता दिखायी उसकी सराहना होनी चाहिए। लोग अभावों के बीच जीवन जीने को विवश हैं। छात्र-छात्राओं की पढ़ाई काफी प्रभावित हुई। स्वास्थ्य-व्यवस्था को और दुरुस्त करने की जरूरत है। सीएए-एनआरसी बिल हो या जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाना, या फिर किसान के उन्नयन के लिए कानून, इन कानूनों से प्रभावित लोगों और सरकार के बीच टकराव की स्थिति बनी रही। किसानों के लिए बने कृषि बिल को लेकर अभी भी आन्दोलन जारी है। किसानों का मानना है कि नया कानून उनके लिए कम, बड़े उद्योगपतियों को ज्यादा फायदा पहुंचाने के लिए बनाया गया है. इस कानून को लेकर किसानों को इसलिए भी संदेह अधिक हो रहा है कि संसद में बिल बनने से पहले ही देश के बड़े उद्योगपतियों ने बड़े पैमाने पर अनाज के भंडारण के लिए बड़े संख्या में गोदाम बनवा लिये हैं। किसानों का मानना है कि इन गोदामों में उनसे सस्ते में खरीदे गये अनाज को बन्द कर उसे आम जनता को ब्रांडेड कम्पनी के नाम पर मनमाना और ऊंची कीमत पर बेचा जायेगा।

Share This Article
Leave a comment