दिल्ली सरकार ध्यान दे ।
एस. ज़ेड. मलिक(पत्रकार)
दिल्ली के होली फैमली अस्पताल आईसीयू में बिहार से आया अभी तीन दिन से डेंगू का मरीज़ भर्ती – जिसे “बी” पॉज़िटिव ब्लड की ज़रूरत । दो व्यक्तियों के ब्लड देने के बावजूद डॉक्टर अभी और ब्लड मांग रहे है । जबकि प्लेटनेस 70 से नीचे होने के बाद मरीज़ सेंसल्स हो जाता है – लेकिन मैं जिस मरीज़ की बात कर रहा हूँ । वह मरीज़ अभी अच्छे से बात चीत कर रहा लेकिन कमज़ोर है अभी उसका का प्लेटन्स 100 से थोड़ा ऊपर है जिसे डॉक्टर खतरनाक बता कर अटेंडेंट को इतना घबरा दिया है कि उन्हें समझ नही आ रहा है कि क्या करें ? वैसे भी होलीफाइम्ली की मरीजों के प्रति रिपोर्ट अछि नही – वहां अच्छे मरीज़ को भी सीरियस कर देते है विशेष कर यदि बिहार का मरीज़ होली फैमली में गलती फंस गया तो उसे ज़िंदा निकलना न मुमकिन है । आईसीयू ऐसे अस्पताल का एक कमाऊ घर है जहां मरीजों को वायरस मुक्त के नाम पर काल कोठरी में सेपरेट रखा जाता जहां तीमारदारों को मिलने की इजाज़त नही है । अंदर मरीज़ का टेस्ट के नाम पर मैं समझता हूं कि कम से कम 2 यूनिट खून तो खींच ही लिया जाता है । उसपर से आईसीयू का चार्ज इतना कि तीमारदार खुद ही ऐसा बीमार हो जाये कि अंत में वहीं का डॉक्टर ही कहदे की इसे टीवी हो गया है अब इसका बचना मुश्किल है । मेरे पास बिहार दो घटनाव का साक्ष्य है जहां मरीज़ को इलाज के लिये लाया गया और उसे आईसीयू में दाखिल किया गया जब सच यह था कि जिस दिन गया कि नज्जम को एडमिट किया गया वह एडमिट के 24 घण्टे के बाद ही वह दुनियाँ छोड़ चुकी थी । लेकिन होलिफाइम्ली के डॉक्टरों ने उसे वेंडिलेटर लगा कर 36 घण्टे अपने यहां अलग से रखा जब परिजनो डॉक्टरों पर दबाव बनाया तो बताया गया कि वह अब नही है और उसपर से आईसीयू का बिल 4 दिन का 2लाख57हज़ार का तीमारदारों को सौंप दिया मरता क्या करता शरीफ लोग थे और पैसे वाले थे ना नु करके पेड किया और लाश गया ले गये यह घटना 2016 फरवरी की है दूसरी घटना 2018 की जून के महीने की लू लाग्या और वह आईसीयू में एडमिट हुआ और वह ज़िंदा नही आया । यह केवल एक होली फैमली अस्पताल का मामला नही इस जैसे और दिल्ली में प्राइवेट और चैरिटेबल हॉस्पिटल है जहां आये दिन ऐसी घटना होती रहती – कहा जाता बड़े बड़े शहरों में ऐसी छोटी छोटी घटनाएं होती रहती है ।