बक्सवाहा हमें बचाना है-यह अभियान चलाना है-आँचलिक ख़बरें-महेश प्रसाद मिश्रा

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मध्यप्रदेश के छतरपुर का बक्सवाहा जंगल इन दिनों काफी चर्चा में है। जितना प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से लोग बक्सवाहा को नही जान पाये उससे कहीं ज्यादा लोग सोशल मीडिया के माध्यम से बक्सवाहा जंगल को जान गए और जिन्होंने केवल सुना है कि हमें बक्सवाहा बचाना है उनके मन में भी बक्सवाहा को जानने की उत्सुकता होने लगी और इस तरह से बक्सवाहा जंगल कहां है, क्यो चर्चा में बना हुआ है, इसके पीछे क्या कारण है, यह पूरी खबर आग की तरह पूरे देश में फैल गई, हर एक कोने से पर्यावरण संरक्षण प्रेमी, जीव जंतुओं से प्रेम करने वाले लोग, स्थानीय पत्रकार बंधुओं और भी कई तरह के सामाजिक संगठन, आमजन के माध्यम से बक्सवाहा बचाओ अभियान पर जोर दिया गया यहां तक की जो खबर आ रही है उससे यह जानकारी मिल रही है कि-कुछ सामाजिक संगठनों, पर्यावरण संरक्षण प्रेमियों और व्यक्तिगत रूप से भी बक्सवाहा को बचाने हेतु लोग न्यायालय के शरण में भी गए हैं।

“”क्यों हर एक जुबान पर है ? बक्सवाहा!””
मध्यप्रदेश के छतरपुर बक्सवाहा का अचानक चर्चा में आ जाना जिसे पहले कोई जानता नही था,कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं थी,कोई हलचल नहीं था उस बक्सवाहा का अचानक रातों-रात सुर्खियों में आना यह तो साबित करता है कि वहां जरूर कुछ न कुछ बेशकीमती ख़ज़ाना है, जिसके कारण आज बक्सवाहा चर्चा में है और पूरे देश की नजर बक्सवाहा पर है। प्राप्त जानकारी के अनुसार सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया और छतरपुर बक्सवाहा के स्थानीय मीडिया के माध्यम से जो खबरें सामने आ रही हैं, आखिरकार बक्सवाहा पर अचानक इतनी चर्चाएं क्यों होने लगी तो उसका मुख्य कारण है वहां हीरो की खान जिसे हासिल करने के लिए राज्य सरकार ने एक निजी कंपनी को बक्सवाहा के जंगल को पचास वर्षों के लिए लीज पर दे दिया है।लेकिन जब बक्सवाहा जंगल से हीरे निकाले जाएंगे तब वहां के जंगल से लगभग ढाई लाख पेड़ों को काट दिया जाएगा जिससे पर्यावरण को नुक्सान तो पहुंचेगा ही साथ-ही-साथ जंगलों में रह रहे जंगली जानवरों को भी अपना ठिकाना बदलना पड़ेगा पशु-पक्षियों को भी अपना बसेरा कहीं और ढूंढना होगा जो इतना आसान नही है। साथ-ही-साथ जंगलों को काटकर ख़ज़ाना हासिल करना भी आसान नही है, प्राप्त जानकारी के अनुसार जंगल से लगभग ढाई लाख से ज़्यादा पेड़ो को काटने की तैयारी की जा रही है क्योंकि इस ज़मीन के नीचे पन्ना से 15 गुना ज्यादा हीरे होने की पुष्टि की जा रही है और इन्हीं हीरो को हासिल करने के लिए 382.131 हेक्टेयर के जंगल को काटा जाएगा। जिसके लिए सरकार ने सहमति दे दी है। लेकिन अब बुंदेलखंड के लोग अपने जंगल को इस तरह से काटे जाने के लिए राजी नही हैं। स्थानीय लोगों के द्वारा सरकार के खिलाफ़ बक्सवाहा बचाओ अभियान के तहत प्रदर्शन किया जा रहा है।

“”पेड़ जरूरी या हीरा””
कहा जा रहा है कि बक्सवाहा में यह लड़ाई लंबी चलने वाली है
मध्य प्रदेश के छतरपुर इलाके में बक्सवाहा जंगल के नीचे दबे करीब 50,000 करोड़ के हीरा उत्खनन के लिए ढाई लाख से ज्यादा पेड़ों को काटे जाने के खिलाफ शुरू हुआ आंदोलन, वन अधिकार कार्यकर्ता इस क्षेत्र में रहने वाले वन्यप्राणियों और आम लोगों के हित को देखते हुए पेड़ काटे जाने का कर रहे हैं विरोध। प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकार ने 20 साल पहले छतरपुर के बक्सवाहा में बंदर प्रोजेक्ट के तहत सर्वे शुरू किया था। दो साल पहले मप्र सरकार ने इस जंगल की नीलामी की थी, जिसे आदित्य बिड़ला ग्रुप के एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड ने खनन के लिए खरीदा। हीरा भंडार वाली 62.64 हेक्टेयर ज़मीन को मध्यप्रदेश सरकार ने इस कंपनी को 50 साल के लिए लीज पर दिया है। लेकिन कंपनी ने 382.131 हेक्टेयर का जंगल मांगा है। कंपनी का तर्क है कि बाकी 205 हेक्टेयर जमीन का उपयोग खदानों से निकले मलबे को डंप करने में किया जाएगा। कंपनी इस प्रोजेक्ट में 2500 करोड़ रुपए का निवेश करने जा रही है।जमीन से हीरा निकालने के लिए ढाई लाख से ज़्यादा पेड़ों को काटा जाएगा।इसके लिए वन विभाग ने गिनती भी कर दी है। जंगल में बेशकीमती सागौन, जामुन, हेड़ा, पीपल, तेंदु, महुआ समेत कई पेड़ हैं। बिड़ला से पहले ऑस्ट्रेलियाई कंपनी रियोटिंटो ने बक्सवाहा का जंगल लीज़ पर लिया था, लेकिन मई 2017 में संशोधित प्रस्ताव पर पर्यावरण मंत्रालय के अंतिम फैसले से पहले ही रियोटिटों ने यहां काम करने से इंकार कर दिया था। कंपनी ने उस दौर में बिना अनुमति 800 से ज्यादा पेड़ काट डाले थे। अनुमान के मुताबिक बक्सवाहा के जंगलों की जमीन के नीचे 50 हज़ार करोड़ रुपए के हीरे हैं।अब सवाल यह उठता है कि इस महाविनाश को रोकने के लिए सोशल मीडिया पर बक्सवाहाबचाओअभियान जैसे हैशटैग का उपयोग हो रहा है, सरकर के इस फैसले का विरोध हो रहा है। वहीं 05 जून विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर देशभर से पर्यावरणविद इस प्रोजेक्ट का विरोध करने के लिए जगह-जगह जन जागरूकता अभियान चलाकर, धरना प्रदर्शन कर इसका विरोध किए हैं। मीडिया से लेकर ज़मीनी स्तर तक सरकार के इस फैसले का विरोध हो रहा है। स्थानीय युवाओं की तरफ़ से शुरु की गई इस मुहिम ने रंग लाना शुरू कर दिया है। बात करें टि्वटर की तो ट्रेंड हुआ और लोगों की नज़रों में भी आया। लोग किसी भी कीमत पर ये जंगल कटने नहीं देना चाहते हैं। इनका कहना है कि हम अपने इलाकों को तबाह नहीं होने देंगे।

“””पेड़ कटने से नष्ट हो जाएंगी जैव विविधता”””
लगातार यह मुद्दा उठाया जा रहा है और बताया जा रहा है कि जंगल में बेशकीमती पेड़ हैं, जानवर हैं यह क्षेत्र सघन वन से घिरा हुआ है। साथ ही यह क्षेत्र जैव विविधता से भी परिपूर्ण है। मई 2017 में पेश की गई जियोलॉजी एंड माइनिंग मध्यप्रदेश और रियोटिंटो कंपनी की रिपोर्ट में इस क्षेत्र में तेंदुआ, भालू, बारहसिंगा, हिरण, मोर सहित कई वन्य जीवों के यहां मौजूद होने की बात कही गई थी।इतना ही नहीं विलुप्त हो रही प्रजाति गिद्ध भी इस जंगल में हैं।लेकिन दिसंबर में प्रस्तुत की गई नई रिपोर्ट में डीएफओ और सीएफ छतरपुर ने यहां पर एक भी वन्य प्राणी के नहीं होने का दावा किया है। हीरे निकालने से इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में पेड़ काटे जा रहे हैं। वहीं यहां मौजूद वन्य प्राणियों के अस्तित्व पर भी गहरा संकट मंडरा रहा है।
इंडियन काउसिंल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एज्युकेशन के अनुसार एक पेड़ की औसत उम्र 50 साल मानी गई है। ICFRE के मुताबिक 50 साल में एक पेड़ 50 लाख कीमत की सुविधा देता है,और इन 50 सालो में एक पेड़ 23 लाख 68000 रुपए कीमत का वायु प्रदुषण कम करता है। साथ ही 20 लाख रुपए कीमत की भू-क्षऱण नियंत्रण और उर्वरता बढ़ाने का भी काम करता है।अब देखना यह है कि इस जंगल को बचाने और पर्यावरण को बनाए रखने के लिए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड क्या रुख अपनाता है और अपने बोर्ड की तरफ से अनुमति देता है अथवा नही।

विश्व पर्यावरण दिवस और बक्सवाहा जंगल बचाने हेतु मेरी कुछ पंक्तियां भी निम्नांकित हैं।

आओ एक शपथ लें पहले औरों को शपथ दिलाएं हम,
जब तक सांस रहेगी अपनी देश में अलख जगाएं हम,
दिखे कहीं गर बंजर भूमि उद्यान में उसे तब्दील करें,
पर्यावरण बचाने हेतु आओ एक-एक पौध लगाएं हम।

बढ़ते गर्मी के तापमान को अब नहि बढ़ने देंगे हम,
प्राकृतिक संसाधनों का सदा सही उपयोग करेंगे हम,
स्वस्थ्य रहे तन-मन अपना और स्वस्थ्य समाज बना रहे,
स्वस्थ्य रहे जलवायु अपना निकट प्रकृति के रहेंगे हम।

विलुप्त हो रही अंजानी औषधियों को आओ बचाएं हम,
पेड़ों की जड़,शाखाएं गुण पत्तियों के बातलाएं हम,
बूढ़े बरगद की छांव मात्र से शीतलता जब मिल जाती है,
तो करें प्रयास जड़ी-बूटी और आयुर्वेद बचाएं हम।

जंगल नहि कटने पाए अब आओ ऐसा करें नियंत्रण हम,
पानी की ना हो त्राहि-त्राहि श्रमदान का दें आमंत्रण हम,
कुएं,बाबडी,ताल-तलैया का करके हम गहरी करण,
पर्यावरण बचाने हेतु जनमानस को दें निमंत्रण हम।

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